
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब के किसान सड़कों और रेलवे ट्रैक पर धरने तक सीमित नहीं है। पंजाब के किसान पहली बार मुकेश अंबानी औऱ गौतम अडाणी को निशाना बना रहे है। पंजाब में अडाणी ग्रुप के अनाज भंडार के बाहर किसानों का धरना जारी है। लोगों ने रिलांयस के पेट्रोल पंपों का बॉयकॉट शुरू कर दिया है। रिलांयस के मॉलों का भी लोग विरोध कर रहे है। कारपोरेट जगत के दो बड़े घराने पहली बार आम जन के निशाने पर है। पहली बार खुलकर पंजाब में आम किसान अडाणी और अंबानी ग्रुप के साथ सरकारी गठजोड़ का आरोप लगा रहे है। पंजाब के नेता भी खुलकर अडाणी और अंबानी पर निशाना साध रहे है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह से लेकर विपक्षी अकाली दल नेता सुखबीर बादल का आऱोप है कि अडाणी और अंबानी पंजाब की खेती को कंट्रोल करना चाहते है। उनका आरोप है कि पंजाब की सरकारी मंडियों को बीएसएनएल के तर्ज पर तबाह करने की योजना है। हालांकि रिलांयस का विरोध करने वाले नेताओं के पास खुद रिलांयस का पेट्रोल पंप है। बादल परिवार के पास पंजाब के मुक्तसर जिले में रिलांयस के दो पेट्रोल पंप है। इस पेट्रोल पंप के पास भी किसानों ने धरना दिया। वहीं कुछ कांग्रेसी नेताओं के पास भी रिलांयस का पंप है।
पंजाब के मालवा बेल्ट में रिलांयस के खिलाफ विरोध तेज हो गया है। किसानों औऱ युवाओं के निशाने पर केंद्र सरकार है। साथ ही निशाने पर मुकेश अंबानी की कंपनी रिलांयस है। गौतम अडाणी को भी किसानों ने निशाने पर ले रखा है। मालवा इलाके में रिलांयस इंडस्ट्री के लगभग दो दर्जन पेट्रोल पंप किसानों ने बंद करवा रखे है। वीरवार को बरनाला, भटिंडा, मानसा, लुधियाना और संगरूर में कई पेट्रोल पंपों को लोगों ने बंद करवा दिया। भुच्चों, भटिंडा और अमृतसर में रिलांयस माल किसानों के विरोध के कारण बंद रहे। दूसरी तरफ केंद्र सरकार के खासे नजदीक गौतम अडाणी की कंपनी अडाणी एग्री लॉजिस्टिक के मोगा और संगरूर स्थित अनाज भंडारों के बाहर किसानों का धरना चल रहा है। किसान और युवा जियो का सिम सरेंडर कर रहे है। उसकी जगह एयरटेल और दूसरी कंपनियों का सिम ले रहे है।
किसान साफ शब्दों में कह रहे है कि कारपोरेट सेक्टर किसानों को तबाह करने पर तुला है। अंबानी और अडाणी जैसे कारपोरेट घराने पूरे देश को तबाह कर रहे है। उनके निशाने पर मंडियों के छोटे व्यापारी भी है। वैसे में इन दो घरानों के साथ सीधे संघर्ष के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। आंदोलन कर रहे किसानों का आऱोप है कि अडाणी और रिलांयस इंडस्ट्री की रूचि कृषि क्षेत्र में काफी लंबे समय से है। ये दोनों उस वैश्विक कारपोरेट डिजाइन का अनुसरण कर रहे है जिसमें वैश्विक कारपोरेट खेती और पानी पर कब्जे करने की योजना बना रहा है। क्योंकि कृषि लाभकारी क्षेत्र है।
दोनों कारपोरेट घरानों को पता है कि दूसरे सेक्टरों में मंदी आ सकती है। लेकिन खाद्य और पानी के क्षेत्र में मंदी नहीं आएगी। लैटिन अमेरिकी देशों में में तरीके से कारपोरेट घरानों ने खाद्य और पानी को अपने नियंत्रण में लिया। भारत की आबादी एक अरब से ज्यादा है। बेशक भारत जैसे देश में सारे सेक्टर में मंदी आ जाए, लेकिन लोग जीवन बचाने के लिए खाना खाएंगे। इसलिए अडाणी और अंबानी दोनों घरानों की योजना कृषि को नियंत्रित करने की है। सवाल यह है कि सरकार के उपर कौन सा दबाव था कि राज्यों से विचार विमर्श किए बिना केंद्र सरकार ने कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन अध्यादेश जारी कर दिए ? राज्यसभा में हंगामे के बीच नियम कानून को तोड़ कृषि क्षेत्र के बिलों को पारित करवा लिया गया? पंजाब के किसान यही सवाल पूछ रहे है।
अभी तक अडाणी और अंबानी देश के पढ़े लिखों में ही चर्चा का विषय रहे है। अडाणी और अंबानी के कारोबार को लेकर आम लोगों की समझ बहुत ज्यादा नहीं रही है। पर पंजाब में किसान और युवा पहली बार अडाणी और अंबानी को लेकर उग्र है। विश्लेषकों के अनुसार देश के विकास में कारपोरेट सेक्टर का योगदान रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं है। टाटा और बिड़ला घराने विकास के प्रतीक रहे। उन्हें जनता ने सम्मान दिया। उन्हें कभी गाली नही दी है। उनका विरोध नहीं किया है। उन्हें सम्मान की नजर से आज भी देखते है।
लेकिन अंबानी और अडाणी की लोग आलोचना कर रहे है। उनपर कारपोरेट लूट का आरोप लगा रहे है। आर्थिक ममलों के जानकार इसके कुछ वाजिब कारण बताते है। विशेषज्ञों के अनुसार अडाणी ग्रुप और रिलांयस इंडस्ट्री के निशाने पर दूसरे कारपोरेट घराने भी है। अडाणी और अंबानी कई बड़े सेक्टरों में अपना एकाधिकार चाहते है। अडाणी उर्जा सेक्टर में एकाधिकार चाहते है। देश के रेलवे और उडडयन सेक्टर में अपना एकाधिकार चाहते है।
वहीं मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस टेलीकॉम से लेकर रिटेल में अपना एकाधिकार चाहती है। अंबानी के जियो ने सार्वजनिक सेक्टर के बीएसएनल को तबाह कर दिया। लेकिन जियो ने साथ ही निजी क्षेत्र की टेलीकॉम कंपनी एयरटेल और वोडाफोन को भी तबाह किया। बीएसएनएल की तबाही में रिलांयस को अप्रत्यक्ष सरकारी सहयोग मिला। जबकि भारत से अलग चीन जैसे देश में सरकारों ने सार्वजनिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र से बचा कर रखा। निजी कारपोरेट घरानों के मुकाबले सार्वजनिक क्षेत्र को खड़ा किया।
रिलायंस इंडस्ट्री की घुसपैठ भारत सरकार में 1980 के दशक से रही है। कांग्रेस के कई बड़े नेता रिलांयस के मददगार रहे है।धीरू भाई अंबानी और मुकेश अंबानी के कांग्रेस से अच्छे संबंध रहे है। कांग्रेस के कार्यकाल में भी रिलांयस की बदनामी कुछ मसलों पर जनता के सामने हुई थी। लेकिन जनता की उग्र आलोचना की शिकार कांग्रेस के कार्यकाल में रिलांयस नहीं हुई।आखिर नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में रिलांयस इंडस्ट्री से जनता सीधे नाराज क्यों हो रही है?
रिलांयस इंडस्ट्री पर कुछ सवाल उठने वाजिब है। कोविड महामारी के दौर में कई बडे कारपोरेट घरानों की हालात काफी खराब है।लेकिन अंबानी ग्रुप मुनाफे में है। बैंकों दवारा उधोग जगत को दिए गए कर्ज वापस करने की स्थिति में उधोग जगत नहीं है।बैंकों का लगभग 15 लाख करोड़ का कर्ज कोविड महामारी के कारण दबाव में आ गया है। वैसे में अंबानी कर्जमुक्त होने का दावा कर रहे है।
रिलांयस इंडस्ट्री का बाजार मूल्य 200 अरब डालर पार कर गया। कतर और न्यूजीलैंड की अर्थव्यवस्था रिलांयस इंडस्ट्री से पीछे हो गई है। रिलांयस इंडस्ट्री को 100 से 150 अऱब डालर के बाजार मूल्य तक पहुंचने में 12 साल से ज्यादा समय लग गया। लेकिन कोविड महामारी के दौर में रिलांयस इंडस्ट्री ने 50 अरब डालर का मार्केट वैल्यू बढ़ा लिया।