रायपुर। लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक-संरक्षक रघु ठाकुर ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह पर जोर देते हुए एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत बताई है जहां आंदोलनों का एजेंडा भारतीय हो, जनता के साधनों से आंदोलन चलें। इसी के समानांतर शासन और प्रशासन मानवीय बने, जनता से संवाद करे, उसकी बात सुने। रघु ठाकुर रायपुर के मोतीबाग स्थित प्रेस क्लब में ‘सविनय अवज्ञा, आदिवासी समाज, लोकतंत्र और सत्याग्रह’ विषय पर बोल रहे थे।
शासन के द्वारा वंचित आदिवासी समाज की नीतियों की विसंगति पर विस्तार से बोलते हुए रघु ठाकुर ने कहा जहां शांतिपूर्ण सत्याग्रह चल रहे हैं उनका सम्मान शासन और प्रशासन को करना चाहिए। जिन्होंने तिल तिल कर शांतिपूर्ण आंदोलनों में अपना जीवन होम कर दिया, जिनकी कई पीढ़ियां अपने बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष करते खप गईं, शासन-प्रशासन की प्राथमिकता में यदि व रहेंगे तो एक आदर्श की व्यवस्था बनेगी।
लेकिन विडम्बना यह है कि हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में सुविधाओं के नाम पर पैसा भी पानी की तरह बहाया जा रहा है और जो निरंतर शांतिपूर्ण सत्याग्रह चला रहे हैं उनकी कोई सुनवाई नहीं है। प्रशासन उनका ज्ञापन तक लेने समय पर नहीं पहुंचता।
धमतरी जिले में नगरी- सिहावा के आंदोलन को एक आदर्श आन्दोलन बताते हुए रघु ठाकुर ने कहा सन् 1952 में डा. राममनोहर लोहिया ने यहां उमरादेहान गांव से आदिवासियों के वनाधिकार का आंदोलन शुरू किया था। यहां के लोगों ने हर घर से एक एक किलो धान इकठ्ठी कर लोहिया जी की प्रतिमा हाल में लगाई है। भारत में पहला वनग्राम सम्मेलन यहीं हुआ। देश के ढाई लाख वनग्रामों को राजस्व ग्राम जैसी सुविधाओं के मूल में यहीं के लोगों का संघर्ष है।
सन् 2007 में बने वनाधिकार अधिनियम का उद्गम नगरी सिहावा के आंदोलन से ही है। महात्मा गांधी और डॉ लोहिया की राह पर चल रहे इस क्षेत्र के लोगों ने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया।लेकिन विडम्बना यह है कि यहां के पांच गांवों के आदिवासियों को 1987में तत्कालीन सरकार के लिखित समझौते के बाद भी अब तक उनके पट्टे की जमीन का अधिकार पत्र नही मिला न अन्य सुविधाएं।
यह क्षेत्र अहिंसा का टापू है लेकिन सबसे ज्यादा उपेक्षा यहीं के लोगों की है। इस क्षेत्र में पांच- पांच बांध हैं पर आदिवासी को पानी नसीब नहीं है। यहां शिक्षा की उचित व्यवस्था नहीं होगी तो बदलाव कैसे होगा।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जिस तरह समयबद्ध ढंग से नक्सली हिंसा को समाप्त करने का निर्णय लिया है उस पर बोलते हुए रघु ठाकुर ने कहा दोनों ओर से आदिवासी मर रहे हैं, सलवा जुडूम में जो लोग अपने गांव से हटाए गए ए वे तेलंगाना में फंसे हैं उनकी वापसी की भी बात होनी चाहिए। समुदाय में शांति और शासन के प्रति विश्वास बहाली एक प्रक्रिया से ही सम्भव है।
रघु ठाकुर ने कहा सरकार कह रही है कि नक्सलवाद खत्म हो जायेगा तो क्षेत्र का विकास हो जायेगा, लेकिन यह भी तो बताया जाये कि जहां नक्सलवाद नहीं है क्या वहां विकास हो गया? सरकार की नीतियां ही विकास विरोधी और हिंसा को बढ़ावा देने वाली हैं।
दिल्ली के जिस लुटियन जोन में किसी भी नये निर्माण की मनाही थी वहां पच्चीस हजार करोड़ का विस्टा प्रोजेक्ट लाकर नयी संसद, नया सचिवालय, सांसदों के नये आवास की योजना बना दी गई। दूसरी ओर रायगढ़ में केलो नदी का पानी जनता को नसीब नहीं है, उस पर निजी उद्योग का कब्जा है। आदिवासी अंचल में बांध हैं पर उन्हें पानी नहीं मिल रहा। सरकार उद्योगपतियों को तीन हजार करोड़ देने को तैयार है लेकिन गंगरेल बांध का मुआवजा गरीब आदिवासियों को अब तक नहीं दिया। ऐसी गलत नीतियों को गरीब जनता कब तक बर्दाश्त करेगी?
रघु ठाकुर ने कहा आदिवासी समाज में लोकतांत्रिक परम्पराएं बहुत पुरानी हैं। राज्य जब खुद हिंसा का स्रोत बनता है तो आदिवासी समाज भी उससे अछूता नहीं रहता। अब लोकतंत्र को चुनाव तक सीमित कर दिया गया है। अभिव्यक्ति को दबाने के लिए शासन की ओर से हिंसा होती है तो इसकी प्रतिक्रिया भी वैसी ही होती है। जहां हिंसा होगी वहां लोकतंत्र की सम्भावना भी कम होती जाती है। हिंसा बंदूक से खत्म नहीं होती। विचार की हिंसा खत्म होना जरूरी है। सरकार पहले हिंसा को पालती हे फिर खत्म करने के नाम पर हिंसा होती है। सिहावा अंचल इसीलिए अहिंसा का टापू है क्योंकि वहां सविनय अवज्ञाकी परंपरा से हिंसा का जन्म ही नहीं हो सका।
आदिवासी अंचल के लिए सम्यक विस्थापन नीति की जरूरत बताते हुए रघु ठाकुर ने कहा आदिवासी अंचल में यदि उद्योग लगें तो उसमें पच्चीस फीसदी हिस्सेदारी आदिवासियों की हो। उन्हें विस्थापन का उचित मुआवजा मिले और जहां वे बसें वहां स्कूल – बिजली – सड़क – पानी का इंतजाम हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि बुनियादी सुविधाओं को सबको देना सरकार का दायित्व है और आम जन का समान हक है।
लेकिन विडम्बना यह है कि आदिवासियों को विस्थापन के एवज में उनका वाजिब हक तो मिला नहीं, उनके लिए आंदोलन करना भी मुश्किल किया जा रहा है। प्रशासन ने रायपुर शहर से दूर नवा रायपुर में धरना – प्रदर्शन की जगह तय की है। जिनके पास साइकिल भी नहीं वे वहां अपने हक के लिए आंदोलन करने कैसे जायेंगे। शासन प्रशासन का ध्यान समस्याओं के प्रति आकर्षित कैसे करें।
देश के बहुसंख्यक पीड़ित समुदाय के लिए अब अपनी आवाज़ उठाना कठिन कर दिया गया है। संवेदनशीलता और न्यायप्रियता के मामले में आज के जनप्रतिनिधियों की स्थिति राजा महाराजाओं से भी ज्यादा बदतर है। लोग भयभीत और परेशान हैं। ऐसे में लोकतंत्र कैसे विकसित होगा। लोकतंत्र लगातार सिकुड़ रहा है। हिंसा फैलेगी तो लोकतंत्र चल नहीं पायेगा। आज स्थिति यह है कि नक्सली क्षेत्र में शंका के आधार पर लोगों को मार दिया जाता है जबकि नैसर्गिक सिद्धांत यह है कि किसी बेगुनाह को दंड न मिले।
आदिवासी अंचल में धर्म- परिवर्तन के विषय में बोलते हुए रघु ठाकुर ने कहा लालच से किया गया कोई भी धर्म- परिवर्तन स्वीकार्य नहीं हो सकता। महात्मा गांधी भी कहते थे कि सेवा ही करनी है तो निस्वार्थ भाव से करें, किसी के धर्मांतरण के लिए नहीं।