छत्तीसगढ़ में थर्मल पावर हाउस निर्माण को नहीं किया गया सर्वेक्षण: सीएजी

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रायपुर। देश के नियंत्रक महालेखा परीक्षक यानि सीएजी ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में थर्मल पावर हाउस के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले विस्तृत सर्वेक्षण नहीं किया गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शुक्रवार को विधानसभा में 31 मार्च वर्ष 2018 को समाप्त वर्ष के लिए भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक से प्राप्त सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर प्रतिवेदन सदन के पटल पर रखा।

इसमें कहा गया है कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कम्पनी लिमिटेड के अटल बिहारी वाजपेयी ताप विद्युत गृह, मड़वा के निर्माण और परिचालन पर लेखापरीक्षा से जानकारी मिली है कि 80 प्रतिशत भूमि बंजर तथा 20 प्रतिशत कृषि भूमि थी। जिसके लिए विस्तृत सर्वेक्षण नहीं किया गया था।

प्रतिवेदन के अनुसार कम्पनी ने कुल 1,728.73 एकड़ भूमि अधिग्रहित की, जिसमें से सिर्फ 283.77 एकड़ (16.41 प्रतिशत) भूमि बंजर थी तथा शेष 1,444.96 एकड़ (83.59 प्रतिशत) कृषि भूमि थी। जिसके कारण पुनर्वास और पुनर्स्थापना के 15 प्रकरण, भू-विस्थापितों का विरोध, हड़ताल, कामरोको, तालाबंदी जैसी घटनाएं हुई, जिससे परियोजना के कार्य में रुकावटें आई।

प्रतिवेदन के अनुसार कम्पनी ने भूमि का अधिग्रहण किया जो निर्धारित सीमा से 38 प्रतिशत अधिक थी जिसके लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार से कोई भी स्वीकृति प्राप्त नहीं की गई, परिणामस्वरूप परियोजना की लागत में 63.32 करोड़ रूपए की वृद्धि हुई।

सीएजी ने अनुशंसा की है कि कम्पनी को भूमि के अधिग्रहण के लिए कार्यवाही से पहले हमेशा भूमि के विस्तृत सर्वेक्षण का निर्धारण और क्रियान्वयन करना चाहिए। कम्पनी उन जिम्मेदार अधिकारियों के विरूद्ध कार्यवाही करने पर भी विचार कर सकती है जो भूमि की प्रकृति का निर्धारण करने में असफल रहे। प्रतिवेदन में सलाहकार के कार्यों में त्रुटियों को लेकर भी टिप्पणी की गई है।

प्रतिवेदन के अनुसार सलाहकार ने 60 किलोग्राम/मीटर रेल की आवश्यकता के अनुरुप के स्थान पर 52 किलोग्राम/मीटर रेल के लिए इन-मोशन वे ब्रिज के लिए डिजाईन स्वीकृत किया। इन-मोशन वे-ब्रिज की विशिष्टताओं में असंगति होने के कारण इसे मई 2019 तक स्थापित नहीं किया जा सका।

प्रतिवेदन में कहा गया है कि परियोजना की इकाई-एक तथा दो क्रमशः 42 और 44 महीने के विलंब से चालू हो सकी। इसके परिणामस्वरुप 16,440.07 मिलियन यूनिट की उत्पादन हानि हुई, जिसका मूल्य 4,438.82 करोड़ रूपए था। वहीं, पावर फायनेंस कॉर्पोरेशन के ऋण पर मिलने वाली 17.95 करोड़ रूपए के ब्याज की छूट से वंचित होना पड़ा तथा छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कम्पनी लिमिटेड को 315.32 करोड़ की उच्च दर पर विद्युत के क्रय पर व्यय करना पड़ा।

प्रतिवेदन में कहा गया है कि विद्युत संयंत्र की दोनों इकाईयों के चालू होने के बाद भी कम्पनी कम से कम 850 मेगावाट प्रति घण्टा (85 प्रतिशत प्लाण्ट लोड फेक्टर) विद्युत उत्पादन के उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल रही यह केवल 575 मेगावाट प्रतिघण्टा ही उत्पादन कर सकी। वहीं कम्पनी ने भारत सरकार और छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड द्वारा निर्धारित विभिन्न अधिनियमों, विनियमों और मानदण्डों के प्रावधानों का पालन नहीं किया, जो कि पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।