श्रद्धांजलि : अंबरीष भाई ! बहुत याद आयेंगे आप और आपकी वह बेलौस हँसी


अभी 4-5 दिन पहले ही उनसे बात हुई थी। मैं भी कोरोना संक्रमित हूँ, अम्बरीष भाई को इसकी कहीं से खबर लगी थी। उन्होंने खुद काल करके मेरा हालखबर पूछा और जरूरी ऐतिहात बरतने की हिदायतें भी दी थी। अम्बरीष जी आपकी आपकी स्मृतियों को नमन!



नई दिल्ली। अंबरीष राय भी कोरोना के संक्रमण से हार गये। एक क्रन्तिकारी छात्रनेता के रूप में सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाले अम्बरीष राय उत्तर प्रदेश कपड़ा मिल मजदूरों के आन्दोलन, ट्रेड यूनियनिस्ट के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मजदूर आंदोलन, किसान नेता एव आरटीई फोरम के संयोजक के रूप में सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनो में लंबे समय तक नेतृत्वकारी भूमिका में थे। वो एक प्रभावशाली वक्ता भी थे। अंबरीष हाल-फिलहाल शिक्षा का अधिकार (RTE) फोरम के संयोजक थे और देश भर में शिक्षा का अधिकार कानून को सही ढंग से लागू करवाने के संघर्ष में लगे थे।

बचपन बचाओ आंदोलन में काम करने वाले ओमप्रकाश पाल लिखते हैं- अम्बरीष भाई भी चले गए। मित्र मुजाहिद नफीस की फेसबुक वाल से पता चला। एकबारगी तो इस खबर पर विश्वास नही हो रहा था। फिर मनोज सिंह और मुजाहिद से फोन पर बात कर कन्फर्म किया। अम्बरीष जी की मौत भी समय पर हॉस्पिटल में भर्ती न हो पाने और ऑक्सीजन के अभाव में हुई।

अभी 4-5 दिन पहले ही उनसे बात हुई थी। मैं भी कोरोना संक्रमित हूँ, अम्बरीष भाई को इसकी कहीं से खबर लगी थी। उन्होंने खुद काल करके मेरा हालखबर पूछा और जरूरी ऐतिहात बरतने की हिदायतें भी दी थी। अम्बरीष जी आपकी आपकी स्मृतियों को नमन!

कोरोना के खिलाफ जंग में हमारे डॉक्टरों के तमाम प्रयासों और कड़ी मेहनत के बावजूद ऑक्सीजन के अभावों में नागरिकों की दुर्भाग्यपूर्ण मौतें- लचर व्यवस्था व नागरिकों की जान बचाने के प्रति सत्ता तंत्र के अगम्भीर रुख का परिणाम है।

मान लिया कि कोरोना की अभी कोई दवाई नही है। लेकिन कोरोना से बचाव के लिए जो उपाय किया जा सकता है उसके प्रति भी तो गंभीरता नहीं दिखती है। कोरोना के दूसरे वेब में ज्यादातर मौतें ऑक्सिजन की आपूर्ति की कमी से हो रही हैं। जबकि देश मे ऑक्सीजन उत्पादन कोई बड़ी समस्या नही है। ऑलरेडी ऑक्सीजन के प्रोडक्शन यूनिट्स देश मे हैं। यदि फिर भी समस्या है, तो वह है।

वरिष्ठ पत्रकार पंकज श्रीवास्तव लिखते हैं- सिर्फ़ दो दिन में ‘है’ से ‘थे’ हो गये अंबरीष राय। परसों अस्पताल में भर्ती हुए और आज सुबह कहानी ख़त्म हो गयी। 5 अप्रैल को पहला टीका लग चुका था, पर उसका असर होने से पहले ही कोरोना अपना काम कर गया।

अंबरीष भाई से पहली मुलाक़ात इलाहाबाद मे छात्र जीवन में हुई थी। वे लखनऊ विश्वविद्यालय में एआईएसएफ़ के नेता थे लेकिन बाद में सीपीआई (एमएल) के साथ आ गये थे। बेहद प्रभावशाली वक्ता रहे अंबरीष भाई वहाँ एक लंबी सक्रियता के बाद बच्चों की शिक्षा के मुद्दे पर सक्रिय हुए और आजकल राइट टू एजूकेशन फ़ोरम के संयोजक बतौर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।

अंबरीष भाई बेहद ख़ुशदिल इंसान थे। जब भी मिले हँसते हुए मिले। राजनीतिक मोर्चे पर सीधे सक्रिय न होने के बावजूद हर आंदोलन में उन्हें देखा जा सकता था। बीते कुछ समय में जब भी बात हुई, फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ एक व्यापक मोर्चे की ज़रूरत पर चर्चा करते थे जिसमें वामपंथी दलों से लेकर कांग्रेस तक शामिल हों।

बहरहाल एक झटके में वे सारी चिंताओं से मुक्त हो गये। अब सारी चिंताएँ उनके ज़िम्मे जो कोरोना काल के गुज़र जाने के बाद गुज़रे नहीं कहलाएँगे।

आख़िरी सलाम अंबरीष भाई। बहुत याद आयेंगे आप और आपकी वह बेलौस हँसी।