नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की किताब ‘‘सनराइज ओवर अयोध्या : नेशनहुड इन आवर टाइम्स’’ के प्रकाशन, प्रसार और बिक्री पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली याचिका बृहस्पतिवार को खारिज करते हुए कहा कि अगर लोग ‘‘इतना संवेदनशील महसूस’’ कर रहे हैं तो वह क्या कर सकता है।
वकील विनीत जिंदल की याचिका पर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा सुनवाई कर रहे थे। जिंदल की याचिका में दावा किया गया है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री की किताब ‘‘दूसरों की आस्था को चोट पहुंचाती है’’। इस पर न्यायमूर्ति वर्मा ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह लोगों से कहें कि “किताब पढ़ें ही नहीं।”
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील ने कहा कि किताब अपने एक अध्याय ‘द सैफरन स्काई’ में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे कट्टरपंथी संगठनों से करती है जिससे सार्वजनिक शांति भंग हो सकती है।
न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा, “लोगों से कहिए कि किताब नहीं खरीदे या नहीं पढ़ें। लोगों को बताइए कि यह खराब तरीके से लिखी है, कुछ बेहतर पढ़िए। जो लोग नाराज हैं, उन्हें अपना अध्याय खुद लिखना चाहिए।” अदालत ने कहा कि “समूची किताब” उसके समक्ष मौजूद नहीं है।
शांति को कायम रखना सभी व्यक्तियों का दायित्व होने का दावा करते हुए वकील ने कहा कि लेखक (खुर्शीद) सार्वजनिक जीवन में हैं और किताब को लेकर हिंसा की एक घटना पहले ही हो चुकी है।
वकील की इस दलील से असहमति जताते हुए अदालत ने कहा, “हम क्या कर सकते हैं अगर लोग इतना संवेदनशील महसूस कर रहे हैं? वे अपनी आंखें बंद कर सकते हैं। किसी ने उनसे इसे पढ़ने को तो नहीं कहा है?”
सुनवाई के दौरान, वकील ने कहा कि अभिव्यक्ति की मुफ्त स्वतंत्रता थी और प्रकाशन के लिए “लाइसेंस देने से पहले सरकार को देखना चाहिए”।
अदालत ने प्रतिवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि “सरकार ने कोई लाइसेंस नहीं दिया है और एक प्रकाशक को लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है।”
वकील ने तर्क दिया कि आपत्तिजनक हिस्सों को इसके प्रचलन से पहले पुस्तक से हटा दिया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता वकील ने दावा किया था कि पुस्तक के कुछ अंश राष्ट्र की सुरक्षा, शांति और सद्भाव के लिए खतरा पैदा करते हुए “हिंदू समुदाय को उत्तेजित कर रहे हैं”।
इससे पहले यहां एक अतिरिक्त दीवानी न्यायाधीश ने 17 नवंबर को, खुर्शीद की पुस्तक के प्रकाशन, प्रसार और बिक्री पर रोक लगाने के लिए हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर एक वाद पर तत्काल कोई निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा था कि लेखक और प्रकाशक को किताब लिखने तथा प्रकाशित करने का अधिकार है।