यौन अपराध को पलट तो नहीं सकते पर मुआवजा देकर मनोवैज्ञानिक सुरक्षा दे सकते हैं : हाई कोर्ट

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दिल्ली Updated On :

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने यौन शोषण के छह साल के पीड़ित को छह लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देते हुए कहा कि व्यवस्था इस अपराध को तो नहीं पलट सकती लेकिन वह अपराधी को सजा देने के अलावा पीड़ित को वित्तीय मदद देकर मनोवैज्ञानिक सुरक्षा या सशक्तिकरण मुहैया करा सकती है।

उच्च न्यायालय ने पीड़ित लड़के को 50,000 रुपये का अंतरिम मुआवजा देने के निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए मुआवजा राशि छह लाख रुपये तक बढ़ा दी और कहा कि पहले का मुआवजा बहुत कम था।

न्यायमूर्ति अनूप जयराम भम्भानी ने कहा कि पीड़ित को दिया जाने वाला मुआवजा बढ़ाते हुए अदालत की कोशिश उतनी वित्तीय भरपाई करने की तो होनी चाहिए जितनी इस अपराध की क्षतिपूर्ति के लिए आवश्यक है। अदालत ने कहा कि बच्चा शारीरिक और मानसिक सदमे से गुजरा है और उसके मन को भावनात्मक चोट पहुंची है।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘चूंकि व्यवस्था घड़ी की सुइयों को पीछे नहीं ले जा सकती और न ही अपराध को ‘बदल’ सकती है तो अदालत अपराधी को सजा देने और पीड़ित को वित्तीय मुआवजा देकर मनोवैज्ञानिक सुरक्षा तथा सशक्तिकरण की भावना पैदा करने का काम तो कर ही सकता है।’’

छह साल के बच्चे से उसके ही घर में उसके अंकल द्वारा यौन शोषण किया गया। अदालत को बताया गया कि पीड़ित बच्चा बहुत ही गरीब परिवार से आता है और उसकी मां घरेलू सहायिका का काम करती है और पिता बीमार हैं तथा परिवार की मासिक आमदनी करीब 6,000 रुपये है जिसमें चार सदस्यों को गुजारा करना होता है।



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