नई दिल्ली। दिल्ली की अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी के उत्तर पूर्व जिले में फरवरी 2020 में हुए दंगे के सिलसिले में नौ आरोपियों के खिलाफ दंगा और आगजनी के अभियोग तय करते हुए कहा कि अगर सरकारी गवाहों के बयान दर्ज होने में महज देरी की वजह से अभियोजन के मुकदमे को रद्द कर दिया जाता है तो यह ‘‘ न्याय प्रणाली की असफलता’’ होगी।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट ने कहा कि पुलिस द्वारा गवाहों के बयान दर्ज करने में हुई देरी जानबूझकर या दुराग्रह की वजह से नहीं हुई बल्कि दंगो के बाद उत्तर पूर्व दिल्ली के इलाकों में उत्पन्न स्थिति की वजह से हुई।
पुलिस के मुताबिक 25 फरवरी 2020 को नौ आरोपी गैरकानूनी तरीके से जमा होने और करोड़ों रुपये की संपत्ति को क्षतिग्रस्त करने एवं लूटने, कई घरों, दुकानों, स्कूलों और वाहनों में आग लगाने में शामिल थे। पुलिस ने इसके साथ चार सरकारी गवाहों के बयान दर्ज किए हैं।
न्यायाधीश ने बचाव पक्ष के इस तर्क पर आपत्ति जताई कि जनता के गवाह भरोसेमंद नहीं है क्योंकि कथित घटना के एक महीने बाद उनके बयान गढ़े गये हैं।
इस पर न्यायाधीश ने रेखांकित किया कि दंगे के बाद कई दिन तक इलाके में आंतक और अफरा-तफरी का माहौल था और सरकारी गवाह भयभीत थे और जांच एजेंसी के समक्ष पेश होने को लेकर अनिच्छुक थे।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश भट ने 11 अक्टूबर को दिए फैसले में कहा, ‘‘इन परिस्थितियों पर गौर करने के बाद, यह न्याय प्रणाली की विफलता होगी अगर इस स्तर पर इन गवाहों के बयानों पर अविश्वास किया जाए और अभियोजन पक्ष के मुकदमे को केवल इसलिए रद्द कर दिया जाए कि बयान घटना के एक महीने बाद दर्ज किए गए हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस अदालत की राय है कि गवाहों के बयान दर्ज करने में हुई देरी जानबूझकर या दुराग्रह की वजह से नहीं हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि दंगे के बाद इलाके की स्थिति की वजह से यह देरी हुई और इसलिए आरोपी केवल इस आधार पर आरोप मुक्त करने का दावा नहीं कर सकते हैं।’’
सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया कि नौ आरोपियों ने जनता को धमकी देकर और आतंकित कर समाज में सद्भावना का माहौल खराब किया और उनकी गतिविधियां न केवल राष्ट्र विरोधी थी बल्कि दिल्ली की कानून व्यवस्था के लिए भी चुनौतीपूर्ण थी।
वहीं, बचाव पक्ष ने कहा कि आरोप पत्र में जो सीसीटीवी फुटेज जमा किया गया है वह 24 फरवरी का है जबकि घटना 25 फरवरी 2020 को हुई है। आदेश के मुताबिक बचाव पक्ष के वकील ने रेखांकित किया कि 25 फरवरी की घटना का कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं है। इस तथ्य का अभियोजन पक्ष ने भी विरोध नहीं किया।
हालांकि, अभियोजक ने कहा कि यह मामला केवल सीसीटीवी वीडियो फुटेज पर आधारित नहीं है बल्कि अन्य सबूत भी हैं जिनमें गवाहों के बयान शामिल हैं।
अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने और तमाम तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि प्रथमदृष्टया आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा- 147 (दंगा करना), 148 (हथियार और प्राण घातक हथियरों से दंगा करना), 149 (अवैध समागम), 380 (चोरी), 427 (उपद्रव), 436 (आगजनी) और 452 (जबरन घर में घुसना) के तहत मामला बनता है और उन्हें इन धाराओं के तहत अभियोजित किया जाता है।