नई दिल्ली। राज्यसभा में एक मनोनीत सदस्य ने शुक्रवार को दुनिया भर में मौजूद, भारत की पाण्डुलिपियों को वापस लाने और राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के तहत इकट्ठा किए गए दस्तावेजों के हिंदी अनुवाद में तेजी लाने की मांग की।
उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए राकेश सिन्हा ने कहा कि भारत की सभ्यता और संस्कृति कितनी समृद्ध रही है और इसका कितना प्रभाव रहा है, यह हमारी पाण्डुलिपियों में देखने को मिलता है।
सिन्हा ने कहा, ‘‘आज देश में पाण्डुलिपियों के राष्ट्रीय मिशन के तहत लगभग 44 लाख पाण्डुलिपियों को इकट्ठा किया गया है। आज भी 95 प्रतिशत पाण्डुलिपियों का अनुवाद नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि एक अनुमान के अनुसार, देश और विदेशों में लगभग चार करोड़ पाण्डुलिपियां हैं जबकि यूरोप के पास दो लाख पाण्डुलिपियां हैं।
उन्होंने कहा कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के मुख्य पुस्तकालय में भारत की 35,000 पाण्डुलिपियां हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और नीदरलैंड जैसे देशों में भी 50,000 से अधिक पाण्डुलिपियां मौजूद हैं।
सिन्हा ने पूर्ववर्ती सरकारों पर इन पाण्डुलिपियों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया और राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन की शुरुआत करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सराहना की।
अपनी मांगे रखते हुए उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न विश्वविद्यालयों में पाण्डुलिपियों के शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाए, विदेशों में मौजूद पाण्डुलिपियों को वापस लाया जाए और भारत में इकट्ठा पाण्डुलिपियों के अनुवाद की गति बढ़ाई जाए।’’ उन्होंने कहा कि यह पाण्डुलिपियां भारत की समृद्ध सभ्यता और संस्कृति को दर्शाती हैं।