
नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा आज भैरव प्रसाद गुप्त के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। आलोचक एवं कवि राजेंद्र कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि भैरव प्रसाद गुप्त का मानना था कि लेखक का हर शब्द ध्वज वाहक होना चाहिए। उनके उपन्यासों में आजादी के बाद के किसानों के संघर्ष की पूर्व पीठिका तैयार हुई। उनका सबसे तेजस्वी स्वरूप साहित्यिक संपादक के रूप में हमारे सामने आया। उन्होंने प्रेमचंद को अपना आदर्श मानते हुए नई कहानी के लेखकों और कथा आलोचकों की एक पूरी पीढ़ी तैयार की। नई कहानी का इतिहास उनकी परिवर्तनकारी भूमिका के बिना अधूरा है।
प्रसिद्ध आलोचक हरिमोहन शर्मा ने कहा कि “भैरव प्रसाद को हम अक्सर एक संगठन कर्ता और संपादक रूप में ही याद करते हैं जबकि वे एक प्रतिबद्ध रचनाकार भी थे। हमें उनका आकलन एक प्रतिबद्ध रचनाकार के रूप में भी करना चाहिए। उन्होंने नई कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया। उनकी कहानियों के पात्र निष्ठावान हैं।”
प्रख्यात कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि “वे सही अर्थों में प्रतिबद्ध रचनाकार थे। उन्होंने हमेशा शोषण और सत्ता के प्रति विद्रोह को अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया। उनका दृष्टिकोण बहुत व्यापक था और उसको समझने के लिए हमें भी एक व्यापक दृष्टि की जरूरत है। उनके उपन्यासों में गांव के किसानों का ही संघर्ष नहीं मजदूरों का संघर्ष भी है और विभिन्न समुदायों की नारियों के स्वर भी मुखर होते हैं।”
ज्योतिष जोशी ने कहा कि “हिंदी आलोचना का यह पक्ष बड़ा त्रासद है जिसमें वह अपने कई बड़े रचनाकारों को उपेक्षित कर उनका सार्थक मूल्यांकन नहीं करता है। भैरव जी के साथ भी ऐसा हुआ है। पल्लव ने उनके संपादन पक्ष पर बोलते हुए कहा कि उन्होंने केवल हिंदी ही नहीं बल्कि सभी भारतीय भाषाओं के लेखकों को अनूदित कर अपनी पत्रिकाओं में प्रकाशित किया। उन्होंने बताया कि मंटो की प्रसिद्ध कहानी टोबा टेक सिंह और उनका पहला उपन्यास भी उनके संपादन में ही प्रकाशित हुआ। भारतीय भाषाओं के कई महत्वपूर्ण उपन्यास उनके संपादन में ही प्रकाशित हो पाए।”
वैभव सिंह ने उनको एक ऐसे बहुआयामी वैचारिक व्यक्तित्व के रूप में याद किया जिन्होंने सामाजिक और राजनीतिक बदलावों के लिए कई संस्थाओं-संगठनों का निर्माण किया। अब ऐसे बुद्धिजीवी का पाना दुर्लभ है।
अमरेंद्र कुमार शर्मा ने उनके उपन्यासों पर बात करते हुए कहा कि उनके सभी उपन्यासों में उस समय की तात्कालिक राजनीतिक स्थितियों को चित्रित किया गया है। आगे उन्होंने कहा कि वे महावीर प्रसाद द्विवेदी की परंपरा के संपादक थे और उनको यह सम्मान मिलना चाहिए।
सूर्य नारायण ने कहा कि भैरव जी को एक रचनाकार के रूप में जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पाया।
मनोज कुमार सिंह ने कहा कि भैरवजी ने गांव और कस्बे के बीच सेतु का काम किया। विशाल श्रीवास्तव ने उन्हें प्रेमचंद की परंपरा का वाहक मानते हुए कहा की वे निर्भीक चरित्र तैयार करते हैं।