भाषा रणभूमि है और लीला भूमि भी: अनामिका


नमक कविता के पाठ से प्रो. अनामिका ने अपने वक्तव्य की शुरुवात की एवं कई अन्य कविताओं का पाठ किया जिसमें नमस्कार 2064, जहां उन्होंने पर्यावरणीय संरक्षण की बात को रखा तत्पश्चात चल पुस्तकालय, सार्वजनिक पुस्तकालय के माध्यम से समाज की विभिन्न रीतियों, समस्याओं और समाधानों की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित किया।


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दिल्ली Updated On :

नई दिल्ली। काव्यांजलि: रचनात्मक लेखन सोसाइटी राजधानी महाविद्यालय द्वारा वार्षिक कार्यक्रम सृजन के द्वितीय संस्करण का आयोजन हुआ जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात भारतीय लेखिका प्रो. अनामिका मुख्य अतिथि के रूप में एवं इसके साथ ही राजधानी महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर राजेश गिरी एवं काव्यांजलि की संयोजिका प्रोफेसर वर्षा गुप्ता भी अन्य शिक्षक गणों एवं विद्यार्थियों के साथ उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और रूबैयत समिति की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत किए गए मंगलाचरण से हुई। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. राजेश गिरी ने पादप एवं पुस्तक भेंट कर एवं समिति की संयोजिका ने शॉल भेंट कर मुख्य अतिथि का स्वागत किया।

अपने वक्तव्य में प्राचार्य महोदय प्रो. राजेश गिरी ने इस आयोजन की बधाई दी तथा काव्यांजलि के प्रदुर्भव का ऐतिहासिक परिपेक्ष्य सभी के सम्मुख प्रस्तुत किया। काव्यांजलि समिति के गठन की महत्ता को दर्शाते हुए उन्होंने कहा कि कविता जीवन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालती है और अपने आप में समेटती है। इसी संचयन के द्वारा सामाजिक, आर्थिक भावात्मक तथा अन्य विषयों पर कविता का निर्माण होता है। उन्होंने विद्यार्थियों को विभिन्न गतिविधियों पर सामंजस्य स्थापित करने पर जोर दिया।

समिति की संयोजिका प्रो. वर्षा गुप्ता द्वारा मुख्य अतिथि का अकादमिक परिचय कराया गया। उन्होंने प्रो. अनामिका के हिंदी कविता के प्रति योगदान की महत्ता को सबके समक्ष रखा और उनकी एक प्रभावी पहचान से सबको अवगत कराया।

“दुनिया में कुछ और रहे न रहे , रहेगा नमक-

ईश्वर ने आंसू और आदमी का पसीना ,

ये ही वो नमक है जिसमे थिराई रहेगी ये दुनिया”

नमक कविता के पाठ से प्रो. अनामिका ने अपने वक्तव्य की शुरुवात की एवं कई अन्य कविताओं का पाठ किया जिसमें नमस्कार 2064, जहां उन्होंने पर्यावरणीय संरक्षण की बात को रखा तत्पश्चात चल पुस्तकालय, सार्वजनिक पुस्तकालय के माध्यम से समाज की विभिन्न रीतियों, समस्याओं और समाधानों की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित किया। उनकी कविता वृद्धायें में वृद्धों की भावात्मक मूल्य, संस्कारिक मूल्य के परिपेक्ष्य में अपने विचार साझा किए।

उन्होंने अपने वक्तव्य में कई महत्वपूर्ण बाते बताई जैसे-कविता में सहज भाव की अत्यंत आवश्यकता होती है। नदी की रवानी की तरह सहजता है कविता। सरल होना आसान नहीं है और इसके लिए हमे अपने कई आवरण छोड़ने होते है, और एक मिस्टीरियस इंटरनल की बात की। भाषा एक रणभूमि और लीला भूमि है। गीता और रामायण का उदहारण देकर समझाया। पूर्वाग्रहों से रिक्त होने पर कविता प्रेम उमड़ता है। अपनी कविता शीरो के माध्यम से ज्वलंत सामाजिक समस्याओं से हमे अवगत कराया और सब्र का धागा और चाक दिलो की रफ्फुगिरी की बात को हमारे समक्ष रखा। उन्होंने यह भी कहा की प्रेम की पात्रता धैर्य से आती है।

अंत में प्रश्नोत्तरी का दौर प्रारंभ हुआ जिसमे छात्रों एवं छात्राओं ने कविता कैसे लिखे, क्या सिर्फ जो हमारे मन में आता है उसे हम कागज पर उतार देते है वही कविता है अगर नहीं तो इसमें कैसे सुधार करे जैसे और कई अन्य प्रश्न पूछे और प्रो. अनामिका ने बहुत ही सहज और सरल भाषा में उनको जवाब दिया।

पूरे कार्यक्रम के दौरान डॉ. रविंद्र कुमार दास ( संस्कृत विभाग , राजधानी कॉलेज) ने मंच का संचालन किया। कार्यक्रम के अंत में समिति की संयोजिका प्रो. वर्षा गुप्ता द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया। अंततः उन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी का आभार जताया।