रघु ठाकुर के तीसरे कविता-संग्रह ‘ईश्वर तुम कहां हो’ का विमोचन


रघु ठाकुर ने बताया कि डाक्टर राममनोहर लोहिया ने आजादी की लड़ाई में कठोर यातनाएं सहीं थी लेकिन भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से स्वतंत्रता सेनानियों की जो सूची जारी की थी उसमें लोहिया जी का नाम इसलिए नहीं था कि उन्होंने इस की कोई पेंशन या आर्थिक लाभ लेना स्वीकार नहीं किया था।


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दिल्ली Updated On :

नई दिल्ली। भेदभाव के रहते कोई भी समाज और देश तरक्की नहीं कर सकता। रघु ठाकुर जी की कविताएं हमें अपने समय की पीड़ा से परिचित कराती हैं और संवेदनशील बनाती हैं। प्रसिद्ध समाजवादी नेता रघु ठाकुर के कविता- संग्रह ‘ ईश्वर तुम कहां हो ‘ के विमोचन के अवसर यह विचार व्यक्त कर रहे थे राज्यसभा- सदस्य संजय सिंह।

संजय सिंह ने रघु ठाकुर को समाजवाद का जीता जागता उदाहरण बताते हुए कहा कि रघु जी की कविताएं न केवल हमारे अपने समय की पीड़ाओं को दर्ज करती हैं बल्कि समय की सत्ता और ईश्वर की उपस्थिति पर सवालिया निशान भी लगाती हैं। संजय सिंह ने आश्चर्य व्यक्त किया कि हाल में कोरोना की त्रासदी को भोगने के बाद भी समाज कैसे फिर से संवेदनहीनता के उसी स्तर पर वापस लौट आया। संजय सिंह ने कहा कि मौजूदा दौर में देश का एक वर्ग खुद को दोयम दर्जे का नागरिक मान रहा है। सरकार बेरोजगारी, शिक्षा, गैर बराबरी, आर्थिक विषमता जैसे बुनियाद मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने के लिए समाज को ठीक वैसे ही बांट कर रखना चाहती है जैसे एक समय अंग्रेज करते थे।

वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी ने कहा कि रघु ठाकुर का काव्य-संग्रह मूलतः यथार्थवादी है। जिन्हें सच्चाई और बदलाव से मोहब्बत है उन्हें रघु ठाकुर की कविताएं रास आयेंगी। बाराबंकी के समाजवादी नेता राजनाथ शर्मा ने कहा कि समाजवादी आन्दोलन में जिन्होंने यातनाएं सहीं है उनमें रघु जी सबसे आगे हैं। देश और समाज से उनका रिश्ता है इसीलिये वे अपनी कविता में साधारण जन की पीड़ा को व्यक्त कर सके हैं।

रघु ठाकुर ने वर्तमान समय को ‘अघोषित आपातकाल’ बताते हुए कहा कि सन् 1975 के आपातकाल में और आज में इतना ही अंतर है कि उसे इंदिरा गांधी की सरकार ने जनता पर थोपा था और आज हमने खुद इसे स्वीकार कर रखा है। यह हमारी कायरता का परिचायक है। लड़ने और बोलने का साहस जहां न हो क्या वहां लोकतंत्र रह सकता है। आज सबका दिमाग धर्म और जाति पांति में बंटा है इसीलिए पूंजी का तांडव चल रहा है। कोविड के दौर में देश के आम आदमी की आमदनी जहाँ पच्चीस फीसदी घटी है वहीं पूंजीपतियों की आमदनी में 219 गुने का इजाफा हुआ है।

रघु ठाकुर ने बताया कि डाक्टर राममनोहर लोहिया ने आजादी की लड़ाई में कठोर यातनाएं सहीं थी लेकिन भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से स्वतंत्रता सेनानियों की जो सूची जारी की थी उसमें लोहिया जी का नाम इसलिए नहीं था कि उन्होंने इस की कोई पेंशन या आर्थिक लाभ लेना स्वीकार नहीं किया था। आज लोहिया जी से प्रेरणा लेकर लोगों को मीसाबंदी या स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन छोड़कर जनता की लड़ाई लड़नी चाहिए। हम सब एक ऐसा समाज बनाएं जिसमें पीड़ा और आंसू न हों। इसके लिए सबको एकजुट होना पड़ेगा।

‘ईश्वर तुम कहाँ हो’ कविता-संग्रह का आवरण चित्र मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध कलाकार आलोक शर्मा ने तैयार किया है। विमोचन समारोह में उन्हें सम्मानित किया गया। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर नीलिमा ने नज्म ‘जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं’ का पाठ करते हुए आशा व्यक्त की कि नये समाज के निर्माण में रघु जी की कविताएं मील का पत्थर सिद्ध होंगी।

लेखक-साहित्यकार प्रदीप चौधरी ने कहा रघु जी की कविताएं लोहिया जी के ‘इंटरवल ड्यूरिंग पालिटिक्स’ के लेखों कि याद दिलाते है। ये कविताएं उन लोगों के कष्ट को व्यक्त करती हैं जो खुद अपना दर्द बयां नही कर सकते। आरम्भ में साहित्यकार जयन्त तोमर ने पुस्तक परिचय देते हुए कहा कि ये कविताएं अगर आम जन तक पहुंच सकीं तो बदलाव का मानस बनेगा। समाज के लिए लड़ने वालों को ये प्रेरक शक्ति साबित होगी। समारोह के अवसर पर गांधी शांति प्रतिष्ठान के खचाखच भरे सभागार अनेक विशिष्ट जन उपस्थित थे। अनीता सिंह की विशेष उपस्थिति रही। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाविद प्रोफेसर नीलिमा आधार ने की। संचालन अरुण प्रताप सिंह व धन्यवाद ज्ञापन मुकेश चंद्रा ने किया।