नई दिल्ली। संस्कृति हमें दृष्टि देती है, साध्य देती है। सभी धर्म संस्कृति की देन हैं। संस्कृति संस्थाएं देती है, परिवार संस्था, विवाह संस्था। अलग-अलग काल खण्डों, वर्गों में अलग-अलग परम्पराएं देती है। संस्कृति मनुष्यों को आदर्श देती है; आदर्श परिवार, आदर्श व्यक्ति। भाषा-भूषा, धर्म व भोजन और उच्चतर स्तर पर साहित्य, कला, संगीत ये सभी संस्कृति को परिभाषित करते हैं। प्रत्येक संस्कृति का अपना भौतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष होता है। संस्कृति मनुष्यों को, सभी जीवों जोड़ती है किन्तु उचित उच्च-नीच के अंतर के साथ। संस्कृति नदी के समान प्रवाहपूर्ण है। जो बनती है, बढ़ती है और विस्तार ग्रहण करती है।
ये बातें राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक समिति द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार संस्कृति के मायने कार्यक्रम के पहले दिन के आमंत्रित मुख्य वक्ता प्रोफेसर आनंद कुमार ने कही।
कार्यक्रम की शुरूआत राजधानी कॉलेज की संगीत सोसाइटी रुबायत द्वारा सरस्वती वंदना के गायन से हुआ। वेबिनार के विषय, उद्देश्य और इसके गल्प से सांस्कृतिक समिति संस्कृति की संयोजक डॉ. वर्षा गुप्ता ने सभी को परिचित करवाया।
अपने वक्तव्य में उन्होंने संस्कति क्या है,इसको सभी के सामने रखा। उन्होंने बताया कि संस्कृति को जीवन जीने का तरीका बताया गया है। संयोजक ने संस्कृति की तुलना एक हिमशिला से की है। यहाँ समुद्र में ऊपर दिख रहा हिमशिला का शिखर लोगों के रोजमर्रा के व्यवहार का प्रतीक है जबकि हिमशिला का बड़ा हिस्सा जो की समुद्र मे छुपा है वो लोगों की उस सोच, समझ और विश्वास का प्रतीक है, जिनसे उनका व्यवहार संचालित होता है। हमारे जीवन मूल्य संस्कृति से जुड़े होते हैं जो संस्कृति से ही हमें मिलते हैं। उन्होंने संस्कृति के मानी को समझने के लिए कॉलेज को एक अच्छा उदाहरण बताया, जहाँ देश के विभिन्न भागों से विभिन्न भाषा-भूषा, वर्ग, समुदाय के छात्र आते हैं और कॉलेज की संस्कृति को स्थापित करते हैं।
कार्यक्रम में आगे त्र्यम्बकं के सदस्य आयुष द्वारा भारतीय संस्कृति की कवि-कविताओं की परंपरा से सभी को परिचित करवाया, जिन्हें शायद अधिकांश लोग भूल चुके हैं। नटराज सोसाइटी की सदस्य प्रियालक्ष्मी कॉल द्वारा सांस्कृतिक नृत्य कत्थक सभी के सामने प्रदर्शित किया। ताकि संगीत-नृत्य और कला के सांस्कृतिक महत्व को हम समझें।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर बलराम पानी ने भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों के बारे में बताते हुए कहा कि देश की विविधता के सम्बंध में एकता की, उसके विकास, संस्कृति के वैज्ञानिक मूल्यों, सामूहिक विशेषताओं और इसकी समझ के बारे में बात की।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर आनंद कुमार द्वारा संगोष्ठी के विषय संस्कृति के बारे में अपने विचार रखें। अपने वक्तव्य में प्रोफेसर कुमार ने संस्कृति के विभिन्न आयामों, संस्कृति क्या है, संस्कृति के तत्व, संस्कृति का महत्व और संस्कृति के समक्ष विभिन्न समस्याओं व भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों और समस्याओं पर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि संस्कृति एक पहचान है जो जीवन की समझ हमें देती हैं। विभिन्न रूपकों जैसे; सूर्य, नदी आदि, के माध्यम से संस्कृति को समझने की बात कही। सूर्य जो कि जीवन और ऊर्जा का स्त्रोत है,उससे संस्कृति की तुलना की गई है।
प्रोफेसर कुमार ने संस्कृति के विभिन्न तत्वों समाजशास्त्रीय दृष्टि, राजनीति विज्ञान से दृष्टि; संस्कृति के विभिन्न पक्षों भौतिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष; विभिन्न आधारों व्यक्तिगत, सामुदायिक और मानवीय। प्रत्येक संस्कृति का एक मानवीय पक्ष होता है। इसके आगे संस्कृति के समक्ष समस्याओं के बारे में बताते हुए, समावेशन और बहिष्करण की समस्या पर उन्होंने सभी का ध्यान खींचा। संस्कृति के जीवंत पक्ष; भाषा की समस्या को बताया।बताया कि वर्तमान में 800 भाषाएं मरणासन्न हैं, बड़ी भाषाएं छोटी भाषाओं को खा रही हैं।
उन्होंने संस्कृति के अध्ययन के लिए तीन कसौटियों पर बात करने को कहा जिसमें; काल की कसौटी, देश की कसौटी और पात्र की कसौटी के बारे में बताया। सभ्यता और संस्कृति के अंतर को बताते हुए प्रोफेसर कुमार ने कहा कि सभ्यता एक निश्चित कालखण्ड से जुड़ी होती है, जबकि संस्कृति एक परम्परा का नाम है। संस्कृतियों में आत्मशोधन और लचीलेपन को महत्वपूर्ण बताया। अंत में मुख्य वक्ता से विभिन्न प्रश्न पूछे गए, जिनका संतोषप्रद जवाब प्रोफेसर आनंद कुमार ने दिया।
संगोष्ठी का अगला सत्र हाशिये में संस्कृति विषय पर आयोजित किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्रो. अमितेश मुखोपाध्याय ने की। साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देव नाथ पाठक ने अपने वक्तव्य में हाशिये की संस्कृति और हमारे दैनिक अभ्यास की संस्कृति को पुनः परिभाषित करने की ज़रूरत को बताया। संस्कृति में अंतर का मतलब किसी प्रकार का अलगाव नहीं है। यह सिर्फ एक तरह की स्वायत्तता है। जेएनयू के डॉ. ब्रह्म प्रकाश ने कहा कि संस्कृति मानव संकाय का उत्पादन है। किसी अन्य के संबंध में संस्कृति के विशेषाधिकारों ने आधिपत्य का गठन किया है।
दिल्ली विश्व विद्यालय की डॉ. मिताश्री श्रीवास्तव ने बौद्ध समय में महिलाओं की स्थिति के बारे में बताया। संस्कृति और लोकतंत्र विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर मिश्र ने की। इस सत्र में जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमिया दास, पंजाब विश्व विद्यालय के प्रोफेसर संतोष सिंह और डॉ. नूपुर चौधरी ने विचार व्यक्त किए।
वक्ताओं ने संस्कृति और लोकतंत्र के सम्बन्ध में अपने विचार सबके समक्ष रखे। लोकतंत्र में विभिन्न संस्कृतियों का समन्वय के महत्व को दर्शाया। लोकतंत्र एक ऐसी राजनीतिक शासन व्यवस्था है जिसमें विभिन्न संस्कृतियां वास करती हैं और लगातर विकास करती है।