देश में लोकतंत्र कैसे बचेगा यह रास्ता दिखा रहा है किसान आंदोलन


आजाद भारत का यह पहला किसान आंदोलन है जो दो कॉरपोरेट घरानों के विरुद्ध किया गया आंदोलन भी है और इसमें महिलाओं की भारी भागीदारी है। देश में लोकतंत्र कैसे बचेगा यह किसान आंदोलन रास्ता दिखा रहा है।



नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली की सीमा पर करीब दो महीनों से कृषि कानून वापसी के लिए आंदोलन कर रहे किसानों के लिए दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में बुधवार को जेपी फाउंडेशन और सुनील मेमोरियल ट्रस्ट ने “भारत मे कृषि कानून, खाद्य सुरक्षा और लोकतंत्र” विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी तथा गांधीवादी लेखक सत्या साहू ने गांधी के चम्पारण आंदोलन, खेड़ा आंदोलन तथा पटेल के बारडोली आंदोलन से इस किसान आंदोलन की तुलना की और कहा कि इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बताया कि आजाद भारत का यह पहला किसान आंदोलन है जो दो कॉरपोरेट घरानों के विरुद्ध किया गया आंदोलन भी है और इसमें महिलाओं की भारी भागीदारी है। देश में लोकतंत्र कैसे बचेगा यह किसान आंदोलन रास्ता दिखा रहा है।

18 जनवरी को महिलाओं ने महिला किसान दिवस मना कर देश भर में आंदोलन में अपनी भागेदारी की। आंदोलन में भाग लेने वाली महिलायें बिजली बिल, खेत, अनाज सहित तमाम विषयों पर अपनी राय रख रही हैं। उन्होंने कहा कि 25 नवंबर से आंदोलन पर बैठे किसानों के लिए सरकार के पास कोई प्लान नही है।

प्रोफेसर अरुण कुमार ने अपने रिकॉर्ड किये भाषण में कहा कि देश के विभिन्न भागों से दिल्ली के बॉर्डर पर किसान आंदोलन में देश के किसान भाग ले रहे हैं जो मौजूदा सरकार द्वारा जारी कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के हित इस कानून से कैसे बुरी तरह प्रभावित होंगे और उसका आर्थिक पहलू विस्तार से समझाया।

प्रो. रीतिका खेड़ा ने अपने रिकॉर्ड कर भेजे संबोधन में इन किसान विरोधी कानूनों के कारण आगे खाद्य संकट पैदा होने की आशंका प्रकट की और कहा कि इससे पीडीएस व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी।