किसान आंदोलन के समर्थन में बिहार के किसान भी हो रहे हैं गोलबंद


सीपीआई-एमएल के राजाराम सिंह ने बताया कि किसान आदोलन की रणनीति ही तीन स्तरीय बनाई गई है। दिल्ली के आसपास के किसान दिल्ली पहुंचेगे और संसद भवन को घेरने का प्रयास करेंगे। दूसरे स्तर पर किसान दिल्ली के रास्तों को जाम करेगे। दिल्ली में प्रवेश करने के पांच मुख्य मार्ग हैं। उन सबों को घेरा जाएगा।


अमरनाथ झा
बिहार Updated On :

पटना। नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के समर्थन में बिहार के किसान भी गोलबंद हो रहे हैं। विधानसभा चुनाव और फिर दिवाली-छठ जैसे पर्वों की वजह से किसान संगठन दिल्ली चलो अभियान की तैयारी नहीं कर सके, पर दो दिवसीय आम-हड़ताल के साथ एकजुटता जताने के लिए जगहृ-जगह धरना-प्रदर्शन हुआ।

वामपंथी विधायकों ने दोनों दिन विधानसभा भवन के सामने नए कृषि कानून और श्रम कानूनों को वापस लेने की मांग लेकर प्रदर्शन किया। साथ ही नए कृषि कानूनों के बारे में आम-लोगों को जागरुक करने के लिए बकायदा अभियान चलाने का निर्णय किया गया। इसी क्रम में दो दिसंबर को जगह-जगह धरना, प्रदर्शन और छोटी-छाटी सभाएं की गई।

राजधानी पटना में भी बुध्दा स्मृति पार्क के पास तीनों वामपंथी पार्टियों के संबंधित किसान संगठनों की ओर से प्रदर्शन किया गया। वाम व लोकतांत्रिक दलों के किसान संगठनों ने कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों का दमन करने की कार्रवाइयों की निंदा की।

हालांकि बिहार में कृषि उपज की खरीद-बिक्री के लिए मंडी प्रणाली बाध्यताकारी नहीं है। इसे नीतीश सरकार ने 2006 में ही समाप्त कर दिया था। न्यूनतम समर्थन मूल्य भी यहां के किसानों को आम तौर पर नहीं मिल पाता।

धान और गेहू की सरकारी खरीद प्राथमिक सहकारी साख समितियों (पैक्स) के माध्यम से होती जरूर है। पर इसमें कई तरह की घपले बाजी है और सरकारी खरीद काफी देर से शुरु होती है, तब तक किसान अपनी उपज को बिचौलियों के हाथों बेच चुके होते हैं। दूसरे मोटे अनाज खासकर मक्का की सरकारी खरीद तो होती नहीं जबकि मक्का बिहार के बड़े इलाके की मुख्य फसल है।

बिहार के किसान संगठनों के आंदोलन की रूपरेखा के बारे में सीपीआई की किसान महासभा के अशोक ने बताया कि वामपंथी किसान संगठनों ने तय किया है कि 8 दिसंबर से 10 दिसंबर के बीत राज्य भर में प्रखंड मुख्यालयों का घेराव किया जाएगा और आमलोगों को नए कृषि कानूनों के बारे में बताया जाएगा।

उन्हेंने कहा कि मामला केवल कृषि कानूनों का ही नहीं है, सरकार ने आवश्यक वस्थु अधिनियम 1955 के दायरे से खाद्यान्य को बाहर कर दिया है। इससे अनाजों की जमाखोरी बढ़ेगी। यह कानून ही अनाज की जमाखोरी को रोकने के लिए आजादी के फौरन बाद बना था क्योंकि तब गोदामं अनाज भरे होने के बावजूद भूखमरी से लाखों लोग मारे गए थे।

सीपीएम नेता गणेश शंकर सिंह ने बताया कि वर्तमान किसान आंदोलन में देश के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय 242 संगठनों की हिस्सेदारी है। इसे केवल पंजाब और हरियाणा के किसानों का आंदोलन कहना गलत है। हालांकि आवागमन की असुविधाओं की वजह से दूसरे जगहों के किसान अभी दिल्ली के आसपास नहीं पहुंच पाए हैं, पर जो जहां है वहीं आदोलन में हिस्सेदार है।

सीपीआई-एमएल के राजाराम सिंह ने बताया कि किसान आदोलन की रणनीति ही तीन स्तरीय बनाई गई है। दिल्ली के आसपास के किसान दिल्ली पहुंचेगे और संसद भवन को घेरने का प्रयास करेंगे। दूसरे स्तर पर किसान दिल्ली के रास्तों को जाम करेगे।

दिल्ली में प्रवेश करने के पांच मुख्य मार्ग हैं। उन सबों को घेरा जाएगा। जो किसान वहा भी नहीं पहुंच पाएंगे, वे प्रदेश मुख्यालय जिला व प्रखंड मुख्यालय पर घेराव करेंगे और स्थानीय अधिकारियों के माध्यम से अपनी बातों को केन्द्र के पास भेजेगे।

 



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