आजादी की लड़ाई में जनजातियों का योगदान

देश की आजादी के 75वें वर्ष में पूरे देश में 'आजादी का अमृत महोत्सव' मनाया जा रहा है। इस कड़ी स्वतंत्रता संग्राम के उन गुमनाम नायकों के याद किया जा रहा है जिन्हें किन्हीं कारणों से इतिहास में जगह नहीं मिली है।

देश की आजादी के 75वें वर्ष में देश भर में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाया जा रहा है। इस कड़ी में डॉ.बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू एवं हेरीटेज सोसाईटी, पटना के संयुक्त रुप से एक कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम का विषय ‘मध्य भारत के भूले-बिसरे स्वतंत्रता सेनानी’ था।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र के नाती एवं इतिहासकार डॉ.जयंत वर्मा ने कहा कि,भारतीय स्वाधीनता संग्राम जनजातीय समाज का बहुत बड़ा योगदान रहा।आम आदमी के साथ किसानों और मालगुजारों ने आगे बढक़र लड़ाई लड़ी’। 

वर्मा ने स्वाधीनता संग्राम में उन तमाम लोगों का स्मरण किया जिन्हें समय के साथ विस्मृत करने की कोशिश की गई और जिनके बिना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अधूरा है।

इसी के साथ ही उन्होेंने अनेक अनछुये संदर्भों का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे अंग्रेजी शासन के साथ मिलकर विश्वासघात किया गया था और हमारे नायकों को अंग्रेजों के दमन का शिकार होना पड़ा था। सुभाष बाबू के आजाद हिन्द फौज के असंख्य लोगों ने देश की स्वाधीनता संग्राम में प्राणों की आहुति दी लेकिन तत्कालिन सत्ता ने इन्हें स्वाधीनता सैनिक मानने से इंकार कर दिया।

इतिहासकार वर्मा ने सशस्त्र विद्रोह, मुक्ति संग्राम और बुंदेला विद्रोह के साथ अनेक विद्रोह का विस्तार से उल्लेख करते हुए ऐसे प्रसंगों से परिचित कराया जिनके बारे में कभी सुना नहीं गया था। अंग्रेजों के साथ मिलकर विश्वासघात करने के दो बड़े प्रसंग का उल्लेख उन्होंने किया जिसमें साथी के विश्वासघात के कारण जनजातीय समाज के एक बड़े लड़ाकू भीमा नायक को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया था। भीमा नायक अंग्रेजों के लिए एक बड़ी मुसीबत बन चुके थे।

एक अन्य घटना राजा हिरदेशाह के बारे में भी बताया कि वे भी विश्वासघात के शिकार हुए थे। असंख्य वीर जवानों के नामों का उल्लेख करते हुए वर्मा ने बताया कि रघुनाथ शाह और शंकर शाह, दोनों पिता पुत्र थे और अंग्रेजों ने उन्हें तोप में बांधकर उड़ा दिया था। मौत की सजा पहले उन्होंने कहा कि उनके बच्चे (प्रजा) सुरक्षित रहें और अंग्रेजी शासन का अंत कर सकें।

अझमेरा के बख्तावर, खाज्या नायक और ट्ंटया भील की वीरता का उल्लेख करते हुए कहा कि इन लोगों ने अंग्रेजी शासन को चैन से बैठने नहीं दिया। स्वाधीनता संग्राम में केवल पुरुषों का योगदान नहीं रहा, महिलाओं ने भी बढ़-चढक़र हिस्सेदारी की। इस संदर्भ में उन्होंने रामगढ़ की रानी अवंतिबाई का उल्लेख करते हुए उनकी वीरता की कहानी को सप्रसंग सुनाया।

इतिहासकार जयंत वर्मा ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि स्वाधीनता संग्राम का इतिहास दोषपूर्ण लिखा गया है ताकि भारत के युवा उनसे अपरिचित रहें। अब समय आ गया है कि इतिहास का पुनरावलोकन किया जाए और स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को पुन: लिखा जाए।

वर्मा ने कहा कि अनेक शहीदों के परिवार गुमनामी के शिकार हैं और उनके पास दो वक्त की रोटी का भी इंतजाम नहीं है। ऐसे परिवारों को तलाश कर उनका सम्मान किया जाना चाहिए। जबलपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद पर जीत जाने के बाद गांधी और नेहरू के साथ असहमति के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।

इसके बाद सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया। आजाद हिन्द फौज के असंख्य लोगों ने देश की स्वाधीनता संग्राम में प्राणों की आहुति दी। लेकिन लोगो ने इन्हें स्वाधीनता सैनिक मानने से इंकार कर दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अतिथि वक्ता वर्मा का स्वागत किया। कार्यक्रम के सह-संयोजक हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक अनंताशुतोष द्विवेदी ने विषय के बारे में जानकारी दी एवं कार्यक्रम का संचालन डॉ. कृष्णा सिन्हा ने किया।

First Published on: July 28, 2021 5:06 PM
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