कोविड के बाद जीवनयापन के लिए बढ़ा संघर्ष, स्थानीय रोजगार में आई कमी


पहले हमलोग बाहर जाकर भी मजदूरी कर लिया करते थे, लेकिन कोरोना के कारण उत्पन्न हुई स्थितियों के बाद अब परिवार के लोग भी बाहर मजदूरी करने के लिए जाने से मना करते हैं।


प्रदीप सिंह प्रदीप सिंह
मध्य प्रदेश Updated On :

भोपाल। कोविड-19 के बाद स्थानीय रोजगार में बेहद कमी आई है। इसके पहले रोजगार की उपलब्धता भले ही कम थी लेकिन थोड़ा-बहुत ही सही, रोजगार जरूर मिल जाता था। अब जीवनयापन के लिए जरूरी संसाधन जुटा पाना भी हमारे लिए मुश्किल हो गया है। पहले हमलोग बाहर जाकर भी मजदूरी कर लिया करते थे, लेकिन कोरोना के कारण उत्पन्न हुई स्थितियों के बाद अब परिवार के लोग भी बाहर मजदूरी करने के लिए जाने से मना करते हैं।

उक्त बातें गुना जिले के मजदूर कमल सिंह ने एकता परिषद और सर्वोदय समाज द्वारा आयोजित 12 दिवसीय न्याय और शान्ति पदयात्रा में बताई। न्याय और शान्ति पदयात्रा मध्यप्रदेश के 27 जिलों सहित देश के 105 जिलों में चल रही है। इस यात्रा में स्थानीय रोजगार का मुद्दा एक बड़े मुद्दे के रूप में उभर रहा है।

पदयात्रा में शामिल रायसेन के रणधीर सिंह परते मजदूरी करते हैं। वे कहते हैं, ‘‘कोरोना से पहले स्थानीय रोजगार के साथ-साथ हमारे जैसे मजदूर आस-पास के फैक्ट्रियों में काम करने चले जाते थे। कोरोना के समय कई फैक्ट्री लंबे समय तक बंद रही और इसका असर सीधा हम मजदूरों और हमारे परिवारों पर पड़ा। कोरोना के बाद फैक्ट्रियां खुली लेकिन छंटनी के साथ। इस छंटनी में कई मजदूरों ने अपना रोजगार खो दिए हैं। अब हमारे जैसे मजदूरों के लिए जीवनयापन करना दिन-ब-दिन बेहद मुश्किल होता जा रहा है।’’

पदयात्रा में शामिल गुना जिले के मजदूर नंदलाल कहते हैं कि कोरोना के बाद मेहनत-मजदूरी बिल्कुल खत्म ही हो गई है। पहले यदि मनरेगा में रोजगार नहीं मिल पाता था तो हम आस-पास के रोजगार पर निर्भर रहते थे। लेकिन कोरोना के बाद हम केवल मनरेगा पर निर्भर हो गए हैं। मनरेगा में भी अब ज्यादा रोजगार नहीं है। सांची के ईश्वर सिंह बताते हैं, ‘‘लॉकडाउन में एकता परिषद ने श्रमदान के रूप में हमें रोजगार मुहैया कराया। श्रमदान के रूप में अगर हमें रोजगार नहीं मिलता, तो कोरोना के बाद हमारा जीवनयापन का संघर्ष ज्यादा कठिन हो जाता। हमारे लिए रोजगार का संकट एक बड़ा संकट है।

एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रनसिंह परमार कहते हैं, “कोविड के समय से ही लोगों का रोगजार चला गया था, लोग बीच में ही अपने कामों को छोड़ कर मजबूरन पलायन कर अपने घर वापस आ गए। इस दरम्यान लोगों ने जो कुछ कमाया था वह भी खर्च हो गया। अभी कोविड समाप्त भी नहीं हुआ और ग्वालियर तथा चंबल क्षेत्र के लोगों को अतिवर्षा के कारण बाढ़ का सामना करना पड़ गया। लोगों ने जो भी राशन अपने और अपने परिवारों के लिए बचा रखा था या तो वह बाढ़ में बह गया या भींग कर खराब हो गया। इस स्थिति में सरकार को चाहिए की एक महीने का मनरेगा के समान मेहनताना मजदूरों के खाते में ट्रांसफर कर दे ताकि फौरी तौर पर मजदूरों की मदद हो सके।”

 

“न्याय और शान्ति पदयात्रा – 2021” की शुरुआत 21 सितम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति दिवस के मौके पर शुरू की गई है। पदयात्रा देश के 105 जिलों के साथ-साथ विश्व के 25 देशों में आयोजित की जा रही है। यात्रा के दौरान लगभग पांच हजार पदयात्री पैदल चल रहे हैं और लगभग दस हजार किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। इस ऐतिहासिक पदयात्रा का समापन 2 अक्तूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर की जाएगी। 2 अक्तूबर को दुनिया में अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।



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