राजस्थान का नाम लेते ही हमारे मन में तपते रेगिस्तान, रेत के टीले और सूखी हवाओं की तस्वीर उभर आती है। लेकिन अब इस तस्वीर में धीरे-धीरे एक नया रंग जुड़ रहा है, वह है हरियाली का। यह बदलाव नजर आता है बीकानेर जिले की लूणकरणसर तहसील में स्थित नकोदेसर गांव में, जहाँ कभी धूल भरी आंधियां और बंजर जमीन आम बात थी, वहाँ आज पेड़ों की कतारें, झाड़ियाँ और हरे पौधे नए जीवन का प्रतीक बन चुके हैं। इससे यहां का पर्यावरण भी बेहतर हो रहा है।
यह परिवर्तन संभव हुआ है राजस्थान सरकार के “हरियालो राजस्थान” और “मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना” के कारण। इन अभियानों ने इस गांव को एक नई दिशा दी है। यह केवल पर्यावरण को हरा-भरा करने की पहल नहीं, बल्कि ग्रामीण जीवन में खुशहाली और आत्मनिर्भरता लाने का जरिया बन चुकी है।
राजस्थान सरकार ने वर्ष 2025-26 के लिए इन अभियानों के तहत 10 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है, जबकि अगले पांच वर्षों में 50 करोड़ पौधे लगाने की योजना बनाई गई है। पिछले वर्ष यह लक्ष्य 7 करोड़ का था, जिसे पार करते हुए 7.5 करोड़ पौधे लगाए गए यानी जनता और सरकार की साझा कोशिशें अब सिर्फ कागज़ों पर नहीं, धरती पर भी हरी परत चढ़ा रही हैं।
“हरियालो राजस्थान” अभियान के तहत हर पंचायत में पौधारोपण को उत्सव की तरह मनाया गया, और “मुख्यमंत्री वृक्षारोपण प्रोत्साहन योजना” ने ग्राम पंचायतों, स्कूलों और स्वयंसेवी संगठनों को जोड़कर इसे सामुदायिक प्रयास बना दिया। नकोदेसर गाँव, जो कभी अपने सूखे खेतों और गर्म हवाओं के लिए जाना जाता था, अब हरियाली की नई पहचान बन रहा है।
गाँव की गलियों और खेतों के किनारे लगाए गए नीम, खेजड़ी, शीशम और रोहिड़ा जैसे पेड़ों ने यहाँ की हवा और मिट्टी दोनों में सुधार किया है। पहले गर्मियों में मिट्टी उड़ती रहती थी और दोपहर में बाहर निकलना मुश्किल होता था, लेकिन अब गाँव की हवा में ठंडक और जीवन की गंध महसूस होती है।
गाँव की महिला कामवी देवी बताती हैं, “पहले हमें ईंधन और चारा लाने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। अब पेड़ लगने से हमारे आस-पास ही झाड़ियाँ और चारा उपलब्ध है। अब मैं दो घंटे में वह काम कर लेती हूँ जो पहले आधा दिन लेता था। बचा समय अब बच्चों की पढ़ाई और घर के कामों में दे पाती हूँ।” कामवी की बात में छिपा है उस हरियाली का मानवीय अर्थ यह केवल प्रकृति नहीं, बल्कि महिलाओं की मेहनत, बच्चों की शिक्षा और परिवार की शांति से जुड़ा बदलाव है।
इसी गांव के बुजुर्ग हरीनाथ अपनी झुर्रियों में मुस्कान लिए बताते हैं, “पहले हमारे खेतों में मिट्टी उड़ती थी, धूल इतनी होती कि आँखें भी खुली नहीं रहतीं। अब जब मैं सुबह खेत जाता हूँ तो हवा ठंडी लगती है। मिट्टी की पकड़ भी बढ़ गई है। पहले हम पेड़ काटते थे, अब बच्चे खुद पेड़ बचाने को कहते हैं। यही सबसे बड़ा बदलाव है।”
उनकी यह बात दर्शाती है कि कैसे एक गाँव की सोच, पीढ़ियों के बीच संवाद और पर्यावरणीय समझ धीरे-धीरे बदल रही है। हरियाली का असर सिर्फ हवा और मिट्टी तक सीमित नहीं रहा। पेड़-पौधों ने यहाँ के लोगों की आजीविका में भी योगदान दिया है। गाँव के पास लगाए गए फलदार पौधों से अब कुछ परिवारों को अतिरिक्त आय मिलने लगी है। कई महिलाओं ने अपनी छोटी नर्सरी शुरू की हैं, जहाँ वे पौधे तैयार करके पंचायत और स्कूलों को देती हैं। इससे न केवल आत्मनिर्भरता बढ़ी है, बल्कि पर्यावरण से जुड़ाव भी मजबूत हुआ है।
वृक्षारोपण से जल संरक्षण में भी सुधार हुआ है। पहले जहां बारिश का पानी बहकर चला जाता था, अब पेड़ों की जड़ों ने मिट्टी को थाम लिया है। खेतों में नमी बढ़ी है और कई किसानों ने बताया कि उन्हें अब सिंचाई में पहले से कम पानी लग रहा है। पानी की बचत का यह लाभ आने वाले वर्षों में गाँव की खेती को और टिकाऊ बना सकता है। नकोदेसर में कई जगहों पर अब छोटे तालाबों के चारों ओर वृक्षों की पंक्तियाँ बनाई गई हैं, जिससे जल स्तर में सुधार हो रहा है।
गाँव की स्कूल टीचर सुनीता चौधरी बताती हैं, “हमारे स्कूल के बच्चे अब हर पेड़ को अपने नाम से पहचानते हैं। वे पौधों को पानी देते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। इससे बच्चों में जिम्मेदारी और प्रकृति के प्रति प्यार बढ़ा है। पहले बच्चे स्कूल के बाद मोबाइल में लगे रहते थे, अब वे अपने ‘पेड़ दोस्त’ को देखने जाते हैं।” यह दृश्य इस बात का प्रमाण है कि हरियाली केवल पर्यावरण नहीं, बल्कि शिक्षा और व्यवहार में भी परिवर्तन ला रही है।
नकोदेसर की कहानी इस बात का प्रमाण है कि जब सरकार की नीति, स्थानीय भागीदारी और सामुदायिक संवेदना मिलती है, तो परिवर्तन केवल कागजों पर नहीं, ज़मीन पर दिखता है। यहाँ के लोगों ने समझ लिया है कि हर पेड़ केवल छाँव ही नहीं देता, बल्कि मिट्टी को थामता है, बारिश को रोकता है, हवा को साफ करता है, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य तैयार करता है। यानी जीवन की पूरी गारंटी भी देता है।
आज जब आप नकोदेसर की पगडंडियों पर चलेंगे, तो बच्चों के हंसने की आवाजों के बीच हवा में बहती मिट्टी की जगह अब पत्तों की सरसराहट सुनाई देगी। यह हरियाली गाँव की साँसों में बस चुकी है। राजस्थान की यह नई तस्वीर बताती है कि मरुस्थल भी हरा हो सकता है बस जरूरत है विश्वास, प्रयास और समुदाय की एकजुटता की। यही प्रयास और एकजुटता ही गांव को शुद्ध और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराने का माध्यम और इस रेत में हरियाली का माध्यम बने हैं।
(राजस्थान के लूणकरणसर से ममता नायक की ग्राउंड रिपोर्ट)
