बांग्ला भाषा आंदोलन की उपज है अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस

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दिल्ली Updated On :

नई दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के पूर्व 20 फरवरी 2022को आरजेएस -टीजेएपीएस केबीएसके की आजादी की‌ अमृत गाथा का 52वां वेबीनार आयोजित किया गया। इसमें विद्वतजनों डा. कमल किशोर गोयनका, प्रो परिचय दास, डा. हरिसिंह पाल, डा. राजलक्ष्मी और प्रो.आर‌.कृष्णन, बालेंदु शर्मा दाधीच, प्रो. बिजॉन कुमार मिश्रा और प्रकाशभाई बोसामिया आदि ने मातृभाषाओं में सांस्कृतिक विरासत और “बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बहुत ही सार्थक चर्चा की।

आरजेएस सकारात्मक भारत-उदय वेबीनार का आयोजन, वेबीनार के मॉडरेटर प्राचार्या डा.पुष्कर बाला, प्रभारी आरजेएस सकारात्मक सूचना केंद्र, जमशेदपुर झारखंड के सहयोग से राम जानकी संस्थान के राष्ट्रीय संयोजक और तपसिल जाति आदिवासी प्रकटन्न सैनिक कृषि बिकाश शिल्पा केंद्र ,पश्चिम बंगाल के सचिव सोमेन कोले की अगुवाई में किया गया।

प्रख्यात हिंदी साहित्यकार और केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष डा. कमल किशोर गोयनका ने कहा कि राष्ट्रीय एकता के लिहाज से यह आवश्यक है कि हम देश के विभिन्न क्षेत्रों की भाषाओं को तकनीक और प्रोद्योगिकी की मदद से सीखें।

वेबीनार के दौरान जाने-माने हिंदी तकनीकविद् बालेन्दु शर्मा दाधीच के सवाल के जवाब में डा. गोयनका ने कहा कि दक्षिण भारत तथा पूर्वोत्तर की भाषाएँ सीखने के लिए उत्तर भारत में देवनागरी के जरिए तमिल, कन्नड़, तेलुगू और मलयालम आदि भाषाओं को सिखाने वाले शिक्षक उपलब्ध कराने होंगे। इसी तरह तमिलनाडु या पूर्वोत्तर भारत में बैठा आदमी उत्तर भारत के शिक्षकों से ऑनलाइन हिंदी सीख सकता है। प्रौद्योगिकी के माध्यम से ये एक अद्भुत उपलब्धि हो सकती है। सरकारों और शिक्षा संस्थानों को चाहिए कि इंटरनेट के माध्यम से अपने अपने प्रदेश की भाषाओं को सिखाने की प्रक्रिया शुरू करें। इससे तो एक क्रांति हो जाएगी।

दाधीच ने पिछली जनगणना के आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा कि हिंदी बोलने वालों की संख्या में 25% तक की वृद्धि हुई है। इसका एकमात्र समाधान यह है कि हर राज्य की नीति में वहां की अपनी भाषा को ज्ञान-विज्ञान की भाषा बना दिया जाए । आरजेएस फैमिली के सलाहकार जानेमाने कंज्यूमर ऐक्टिविस्ट प्रो बिजाॅन कुमार मिश्रा ने कहा कि भाषा थोपने की चीज नहीं बल्कि आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ाने की चीज है। उन्होंने निजी विचार दिया कि भारतीय तीन भाषाएं जानने पर उन्हें गर्व होता है। वहीं प्रो.बिजॉन मिश्रा ने, बांग्ला, अंग्रेजी और हिंदी, ओमप्रकाश झुनझुनवाला ने संस्कृत, सुदीप साहू ने अवधी, डा आर.के. गुप्ता ने ब्रज और गुजरात से जुड़े प्रकाश भाई बोसामिया ने गुजराती भाषा में अपने विचार व्यक्त किए।

अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए नव नालंदा महाविहार सम विश्वविद्यालय, नालंदा के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष प्रोफ़ेसर परिचय दास ने कहा कि मातृभाषा केवल संचार का माध्यम नहीं है अपितु आचरण की संहिता भी है। उसमें मौखिक परंपराएं, अभिव्यक्ति के अनेक आयाम, गीतों की तरलता तथा जीवन के विविध रंग मिलते हैं ।

आज विभिन्न स्थानों पर अनेक भाषाएँ मर रही हैं। इसका बड़ा कारण है : वैश्वीकरण, आधुनिकता और अंतरराष्ट्रीय संस्कृति का सम्मिश्रण । मातृभाषा को बचाने का सबसे बड़ा आधार उसको बोलना, लिखना और बरतना है। उसमें ज्ञान और विचार का विमर्श आवश्यक है। परिचय दास  ने अपनी मातृभाषा भोजपुरी पर बल देते हुए कहा कि सभी को अपनी मातृभाषा को आवश्यक रूप से बरतना चाहिए, वैज्ञानिकता के साथ। उन्होंने कहा कि भोजपुरी साहित्य को भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मानों : ज्ञानपीठ सम्मान और सरस्वती सम्मान तक ले जाना, भोजपुरी के साहित्यकार का वास्तविक सम्मान है। आज भोजपुरी जैसी मातृभाषा में लिखने वालों के लिए बड़े प्लेट फॉर्म नहीं है। सिर्फ विजुअल माध्यम ही किसी साहित्य की सघनता को नहीं दर्शा सकते।

चेन्नई, तमिलनाडु से वेबीनार को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता युगल जोड़ी  कृष्णन और प्रोफेसर डा. राजलक्ष्मी कृष्णन ने तमिल, अंग्रेजी और हिंदी में मातृभाषाओं की वकालत करते हुए अपने विचार साझा किए और कहा कि तमिल तथा हिब्रू भाषा का इतिहास दो हजार साल पुराना है।अलग अलग राज्यों के साहित्य-संस्कृति और इतिहास का सही आकलन करने के लिए अलग-अलग मातृभाषा सीखना आवश्यक है।

अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉक्टर हरिसिंह पाल  ने कहा कि 1952 में बांग्लादेश में चले बांग्ला भाषा आंदोलन से प्रेरित होकर यूनेस्को ने 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की आज आरजेएस के इस सेमिनार में आंदोलन के अगुआ धीरेंद्र नाथ दत्त और उनके बेटे की शहादत को याद करने का दिन है उन्होंने कहा कि 50 सालों में भारत से 1500 भाषाएं विलुप्त हो गईं। लोग आधुनिक बनने के शौक में मातृ भाषाओं के लिए चुनौती पैदा कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में पढ़ाई की योजना को उन्होंने सही ठहराया।