नौकुचियाताल : खूबसूरत भी संत्रास भी!

गांवों के खेत तेजी से कालोनियों मे बदलते जा रहे हैं। महानगरों से ऊबे तमाम लोग यहां अपने ग्रीष्म कालीन बसेरा बना रहे हैं। खासतौर पर रिटायर्ड या टायर्ड लोग। रिटायर्ड फौजी अफसरों की भी यह जगह पसंदीदा बनती जा रही है।

आजकल मैं नौकुचियाताल में हूं। ये खूबसूरत जगह नैनीताल से महज बीस किमी दूर है। यहां नौ कोनों वाली झील है। इसी से इसका नामकरण नौकुचियाताल हुआ। पहले आठ दस गांवों का समूह ही नौकुचियाताल कहलाता था। अलग अलग गांव पंचायतें होती थीं। पिछले कुछ महीनों से यह पूरा इलाका भीमताल नगर परिषद में आ गया है। सो शहरी सुविधाएं बढ़ी हैं। लेकिन मूल प्रकृति में यह क्षेत्र धुर गंवई ही है।

लेक में वाटर स्पोर्टस का आकर्षण काफी विकसित हो चला है। पैराग्लाइडिंग भी सबसे बेहतर यहीं होती है। इससे रोज कुछ हलचल रहती है। लेकिन यहां पर्यटन का सीजन कुल मिलाकर चार पांच महीने का ही रहता। बाकी समय सन्नाटा ही रहता है। भीमताल से आने वाली सड़क का यहीं दि इंड हो जाता है। ऐसे में शाम होते होते सड़कों में लगभग सन्नाटा छा जाता है। लेक के किनारे पहाडों से घिरे हैं। वृक्षों और झाड़ियों से आच्छादित प्रकृति का सुंदर नजारा शाम सुबह बहुत खूबसूरत होता है।

मेरे प्रवास से हर समय लेक का नजारा दिखता है। महज सवा सौ मीटर दूर से झील शुरू हो जाती है। पानी साफ रहता है। इसमें प्राकृतिक पानी के स्त्रोत हैं। सो साल भर ये लबालब भरी रहती है। खासी लंबी चौड़ी और गहरी है। एक तरह से लेक ही यहां की लाइफ लाइन है। स्थानीय लोगों की रोजी रोटी इसी पर टिकी है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से। मैं पिछले दो दशकों से यहां नियमित तौर पर आता रहा हूं।

गांवों के खेत तेजी से कालोनियों मे बदलते जा रहे हैं। महानगरों से ऊबे तमाम लोग यहां अपने ग्रीष्मकालीन बसेरा बना रहे हैं। खासतौर पर रिटायर्ड या टायर्ड लोग। रिटायर्ड फौजी अफसरों की भी यह जगह पसंदीदा बनती जा रही है। पहाडियों में चढ़ने उतरने की रोमांचक जगहें हैं। लंबे जंगली रास्ते हैं। युवा खासा मजा लेते हैं। लेखकों और कवियों के लिए यह उत्प्रेरक जगह मानी जाती है। कुछ नामी गिरामी हस्तियों ने यहां रिटायर्ड जीवन बिताना शुरू किया है।

यहां अलसुबह तरह तरह की चिड़ियां आपको जगा देती हैं। उनकी चहचाहट मधुर संगीत लगता है। बीच बीच में जंगली जानवरों के स्वर भी मिलते हैं। मिक्सिंग स्वर लहरी का आनंद मिलता है। मेरे यहाँ से पहाड़ कुछ मीटर पर ही है एकदम सामने। उसमे अनुशासित ढंग से खड़े कतारबद्ध चीड़ के वृक्ष, पूरे नजारे को और खूबसूरत बना देते हैं। ठीक सामने आम, नाशपाती और चकोतरा के वृक्ष। रंगबिरंगी छठा वाली झाडियां, फूलों से लदी रहती हैं।

लेकिन यहां सब खूबसूरत ही नहीं है। आसपास के गांववालों का जीवन खासा तकलीफ देय भी है। पास में ही है चुनौती गांव। लेक के दूसरे छोर पर है। यह गांव शहरी परिषद में नहीं आया। खेती होती है लेकिन किसानी करने वाले तबाह हो रहे हैं। क्योंकि आसपास के जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। इससे हिरण और बारहसिंगा झुंडों में आकर गेहूं जैसी फसलें, कुछ घंटों में चट कर जाते हैं। जितना खाते हैं, उससे ज्यादा उछलकूद से बर्बाद कर जाते हैं।

वन्यजीव संरक्षण नियमों के तहत संरक्षित श्रेणी के इन माननीय चौपायों को चोट भी नहीं पहुंचा सकते। हाथ जोड़ने से ये जाते नहीं। एक बुजुर्ग बताते हैं अब ये जानवर खासे चतुर हो गये हैं पहले खेत में धोख खड़े करने से डर जाते थे अब धोख को ही गिरा देते हैं। इस साल गेहूं की पूरी खेती चट कर गये। प्रशासन कोई मदद नहीं कर रहा।

गांव वाले रोकर पीड़ा बताते हैं। इधर दो सालों से गांव वालों की नावें भी कम चल पाती हैं। सो आमदनी का ये जरिया भी ठप है। वे अपनी किस्मत को ही कोस कर लंबी उदासी भरी सांस लेते नजर आते हैं। पिछले सालों से यहां रात में गुलदार आ जाते हैं। जंगल उजड़े, तो उन्हें शिकार नहीं मिलते। सो वे इस क्षेत्र की बस्तियों में कुत्तों की तलाश में आ धमकते हैं। इनके डर से लोग अपने पालतू कुत्तों को घरों के अंदर छिपाकर रखते हैं। लेकिन बेघर गली के कुत्ते राम भरोसे रहते हैं। इधर गुलदार के खौफ ने इन्हें भी एका का मंत्र दे दिया है।

दिन में एक दूसरे को देखकर गुर्राने वाले अवारा श्वान रात होते ही दोस्त बन जाते हैं। वे झुण्ड में रहना सीख गये हैं। एक रात स्थानीय रामलीला मैदान में करीब पचास कुत्तों को एक साथ देखा, मै हैरान था। पास के दुकानदार ने जानकारी दी इन बेचारे बेघर कुत्तों ने गुलदार से बचने के लिए ये अपनी यूनियन बना ली है। रात दस बजे, ये सब अपना इलाका छोड़कर यहां आ जाते हैं। यहां गुलदार आता भी है तो ये नजारा देखकर खुद उल्टे पूछ दबाकर भाग जाता है। एका के जोर पर कुत्तों का झुंड बाघ गुलदार पर भारी पड़ता है। काश! बेघर गरीब भी इन चौपायों जितनी भी समझ पुख्ता कर लें! तो क्या सामाजिक परिदृश्य कुछ बदल नहीं सकता?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

First Published on: March 29, 2021 9:22 AM
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