
वैसे तो हम सभी जानते हैं कि तंबाकू, शराब और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन इस जागरूकता को लाने में एक भूमिका वैज्ञानिकों की भी है। क्योंकि यूं बेबुनियाद तो किसी चीज़ को नुकसानदेह या फायदेमंद नहीं कहा जा सकता। कोई चीज़ कितनी नुकसानदेह या कितनी फायदेमंद है, इस बात का निर्णय सतत शोधकार्यों के ज़रिए बारीकी से पड़ताल करने के बाद होता है।
इस पड़ताल के दौरान वैज्ञानिकों को न सिर्फ अनुसंधान सम्बंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है बल्कि उन्हें ऑनलाइन धमकियां, मुकदमे, सायबर हमले, और यहां तक कि, जान से मारने की धमकियां तक झेलनी पड़ती हैं। इन वैज्ञानिकों को बदनाम करने और स्वास्थ्य से जुड़े अहम नियमों को टालने के लिए तंबाकू उद्योग ऐसी ही रणनीतियां अपनाते हैं। हाल ही में हुए एक अध्ययन में इस समस्या पर प्रकाश डाला गया है।
हेल्थ प्रमोशन इंटरनेशनल में प्रकाशित अध्ययन में वर्ष 2000 से 2022 के बीच 64 प्लेटफॉर्म पर दर्ज हुए उत्पीड़न के मामलों की समीक्षा की गई: करीब आधे मामले वैज्ञानिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को अखबारों, सोशल मीडिया, विज्ञापनों और टीवी के ज़रिए बदनाम करने के संगठित प्रयास थे।
तंबाकू और अन्य उद्योग आम तौर पर शोधकर्ताओं को ‘चरमपंथी’ या ‘पाबंदीपसंद’ साबित करने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, पोलैंड में एक तंबाकू कंपनी ने इन वैज्ञानिकों को ‘लड़ाकू चरमपंथी’ कहा है। कड़े नियमों की मांग करने वाले शोधकर्ताओं को ‘निकोटीन नाज़ी’, ‘स्वास्थ्य तानाशाह’ और ‘प्रतिबंधवादी’ जैसे आपत्तिजनक नामों से पुकारा जाता है।
इन आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है, जिसका मकसद जन स्वास्थ्य उपायों को बाधित करना और तंबाकू, मीठे पेय और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों पर नियंत्रण वाले कानूनों के क्रियांवयन को टालना या रोकना है।
कभी-कभी तो ये दहशतगर्दियां हिंसा तक पहुंच जाती हैं; ऐसा छ: मामलों में देखा गया है। नाइजीरिया में तंबाकू नियंत्रण के पक्ष में बोलने वाले एक कार्यकर्ता और उनके बच्चों को बंदूक की नोक पर धमकाया गया। इस घटना में उनके साले और गार्ड की हत्या कर दी गई।
कोलंबिया में, डॉ. एस्पेरैंज़ा सेरॉन को मीठे पेय पर कर लगाने के समर्थन में अभियान चलाने पर धमकियां मिलीं, डरावने फोन कॉल्स आए और मोटरसाइकिल सवार लोगों ने उनका पीछा किया; बाद में उन्हें जान से मारने की धमकी मिली।
इन दहशतों के बावजूद, अधिकतर शोधकर्ता अपने काम पर डटे रहे। वैसे डराने-धमकाने के कारण बहुत थोड़े लोग पीछे भी हटे या हिचके।
युनिवर्सिटी ऑफ बाथ में तंबाकू नियंत्रण पर शोध कर रही वैज्ञानिक डॉ. केरन इवांस-रीव्स ने बताया कि उन्हें सोशल मीडिया पर उपहास का सामना करना पड़ा, तंबाकू कंपनियों ने उनकी आलोचना की और उन पर कानूनी कार्रवाई की धमकी भी दी। उन्होंने इस बात को साझा किया है कि उनके काम पर लगातार निगरानी रखने से उन्हें मानसिक रूप से कितना दबाव झेलना पड़ा। अलबत्ता, उन्होंने अपना शोध जारी रखा।
यह अध्ययन उन अदृश्य दिक्कतों को उजागर करता है, जिनका सामना जन स्वास्थ्य की रक्षा के लिए काम करने वाले शोधकर्ताओं को करना पड़ता है। अध्ययन इस बात पर भी ज़ोर देता है कि वैज्ञानिकों को वैश्विक समर्थन की ज़रूरत है ताकि वे डर और हिंसा के बिना अपना काम कर सकें।
इन शोधकर्ताओं की दृढ़ता यह दर्शाती है कि जोखिमों के बावजूद वे स्वस्थ समाज बनाने के अपने मिशन में अडिग हैं। यह शोध हमें याद दिलाता है कि शक्तिशाली उद्योगों के खिलाफ यह संघर्ष जारी है और उन लोगों की सुरक्षा बेहद ज़रूरी है जो समाज के हित में काम कर रहे हैं।