चुनाव आयोग ने की चुनावी खर्चों की सीमा तय, बढ़ते महंगाई का रखा गया ध्यान


इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान होने वाले खर्च के लिए निर्वाचन आयोग ने अलग- अलग मदों में खर्च की जाने वाले रकम की सीमा तय कर दी है। अब होने वाले विधानसभा चुनाव के उत्तर प्रदेश में जारी चार्ट के मुताबिक ही उम्मीदवार चुनाव में आने वाले खर्च का ब्योरा देगा। चूंकि चुनाव प्रचार में विभिन्न क्रिया कलाप में कार्यकर्ताओं की संख्या भी सीमित है तो खर्च भी बेपनाह नहीं कर सकते…



भारत की चुनावी प्रक्रिया में राज्य विधानसभा चुनावों के लिए कम से कम एक महीने का समय लगता है जबकि आम चुनावों के लिए यह अवधि और अधिक बढ़ जाती है। इस लंबे चुनावी प्रक्रिया में पार्टियां अपने कार्यकर्ता से लेके मतदाताओं को तरह-तरह से लुभाने के लिए लाखों और करोड़ों में खर्च करते हैं लेकिन निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने में चुनाव आयोग की भूमिका अहम होती है इसलिए हर बार चुनाव के चुनाव आयोग खर्चे तय करते हैं ताकि सभी पार्टी उसी तय खर्चे में चुनाव के सारे खर्चे करने होते हैं।

चुनाव के दौरान हर पार्टी को प्रतिदिन डीजल, पेट्रोल, बैनर, होर्डिंग्स, पर्चे, और अन्य प्रचार सामग्री, वाहन किराया, टीवी और अखवारों में मार्केटिंग पर होने वाला खर्च पार्टी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं के खाने पीने का खर्च, और कुछ मामलों में तो मतदाताओं को सीधे तौर पर नकदी भी उपलब्ध करायी जाती है और अब तो फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से भी प्रचार शुरू हो गया है। समय, स्थान और स्थिति के मुताबिक हर चुनाव में ये दर सूची जारी होती है। चुनाव आयोग की ओर से मुख्य निर्वाचन अधिकारी ये सूची जारी करते हैं।

इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान होने वाले खर्च के लिए निर्वाचन आयोग ने अलग- अलग मदों में खर्च की जाने वाले रकम की सीमा तय कर दी है। अब होने वाले विधानसभा चुनाव के उत्तर प्रदेश में जारी चार्ट के मुताबिक ही उम्मीदवार चुनाव में आने वाले खर्च का ब्योरा देगा। चूंकि चुनाव प्रचार में विभिन्न क्रिया कलाप में कार्यकर्ताओं की संख्या भी सीमित है तो खर्च भी बेपनाह नहीं कर सकते।

नए चार्ट के मुताबिक एक उम्मीदवार चार पूरी, सब्जी और एक मिठाई के लिए 37 रुपये प्रति प्लेट और एक समोसा और एक कप चाय के लिए 6-6 रुपये तक खर्च कर सकता है। वहीं दूसरी तरह फूलों की माला के लिए भी दर तय है। कोई भी उम्मीदवार प्रचार और छोटी मोटी सभा के दौरान 16 रुपये प्रति मीटर की दर तक फूलों की माला खरीद सकते हैं। चुनाव प्रचार के लिए अधिकतम तीन ढोल वाले प्रति दिन 1,575 रुपये की दिहाड़ी पर बुला सकते हैं। मिनरल वाटर की बोतलें एमआरपी यानी अधिकतम खुदरा मूल्य या कहें तो प्रिंट रेट पर खरीदी जा सकती हैं।

सभी वाहनों के रेट प्रति किमी के हिसाब से हुए तय

चुनाव प्रचार के दौरान प्रत्याशी और उनके कार्यकर्ता जिन वाहनों का इस्तेमाल करते हैं वह भी चुनाव खर्च में आता है। इस खर्च का आकलन करने के लिए वाहनों के रेट प्रति किमी के हिसाब से तय कर दिए गए हैं। उन्हें दूरी, ईंधन, टोल और अन्य खर्च का पाई पाई का ब्योरा जमा करना पड़ता है। इस सिलसिले में बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज जैसी लग्जरी कारों का किराया 21,000 रुपये प्रति दिन, जबकि एसयूवी मित्सुबिशी पजेरो स्पोर्ट के लिए अधिकतम 12,600 रुपये प्रति दिन किराए पर लिया जा सकता है।

इसके अलावा इनोवा, फॉर्च्यूनर, क्वालिस जैसी एसयूवी कारों का किराया 2,310 रुपये प्रति दिन, स्कॉर्पियो और टवेरा के लिए 1,890 रुपये प्रति दिन जबकि जीप, बोलेरो और सूमो के लिए 1,260 रुपये प्रति दिन तक किराया तय किया गया है। इसी धनराशि में ईंधन और लागत सभी शामिल है। इससे पहले, महीने की शुरुआत में निर्वाचन आयोग ने राज्य विधानसभा चुनावों के लिए खर्च की सीमा 28 लाख रुपये से बढ़ाकर 40 लाख रुपये कर दी थी।

चुनाव प्रचार में इस्तेमाल होने वाले लाउडस्पीकर का किराया 1900 रुपये प्रति दिन के हिसाब से प्रत्याशी के खर्च में जोड़ा जाएगा। होटल में रुकने के लिए कमरे का किराया 1100 से 1800 रुपये तक होगा। जेनरेटर का खर्च 506 रुपये प्रतिदिन, बाल्टी 4 रुपये प्रति नग, ट्यूबलाइट 60 रुपये, खाना 120 रुपये प्रति व्यक्ति, कोल्डड्रिंक 90 रुपये प्रति दो लीटर और बैज बिल्ला 600 रुपये सैकड़ा के हिसाब से खर्च में जोड़ा जाएगा।

आपको बता दें कि ये खर्च महंगाई बढ़ने के साथ- साथ वर्चुअल मोड में प्रचार करने डिजिटल और सोशल मीडिया पर होने वाले प्रचार अभियान के अतिरिक्त खर्च को ध्यान में रखते हुए बढ़ाया गया है। अब आयोग और प्रचार में लगे उम्मीदवारों के लिए चुनौती है कि वो इन मदों में खर्चा कैसे दिखाएंगे और आयोग के उड़नदस्ते उन पर कैसे अपनी पैनी निगाह रखेंगे।



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