कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के बीच बिहार में एक और संकट में फंसता दिख रहा है। अधिकारियों के अनुसार प्रदेश में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार के मामले इस साल भी आने शुरू हो गए हैं और इस बीमारी से मुज़फ़्फ़रपुर के श्रीकृष्णसिंह मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में साढ़े तीन साल के एक बच्चे की मौत की पुष्टि हुई है। अस्पताल के सुपरिटेंडेट डॉक्टर सुनील कुमार के अनुसार मुज़फ़्फ़रपुर के सकरा का एक बच्चा और मोतिहारी की एक बच्ची इसी बीमारी के सिंड्रोम से ग्रसित पाए गए थे। बच्चे के ब्लड सुगर का लेबल काफी कम हो गया था, जिसे हम बचा नहीं सके। बाकी एक बच्ची अब रिकवर कर रही है। उम्मीद है कि हमलोग जल्द ही डिस्चार्ज भी कर देंगे। सुपरिटेंडेंट शाही के मुताबिक चमकी बुखार के मामले इक्के-दुक्के हमेशा आते रहते हैं, लेकिन पिछले साल जून-जुलाई के बाद से यह पहली मौत है। चुनावी तैयारियों ने ली सैकड़ों बच्चों की जान जहां तक बात चमकी बुखार के आने की है तो बिहार में इसके मामले हर साल आते हैं। साल 1995 से इस बीमारी की पहचान एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम के रूप में की गई। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार पिछले साल केवल इसकी चपेट में आकर 185 बच्चों की मौत हुई थी। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र जो चमकी बुखार पर किए गए एक सर्वे का नेतृत्व कर चुके हैं, कहते हैं, “2014 तक हर साल लगभग 200-250 बच्चों की मौत इस बीमारी से हुई, लेकिन 2014 के बाद से इस पर काफी हद तक काबू पा लिया गया था। मामले आने कम हो गए थे। मगर पिछले साल फिर से इसका कहर बरपा, क्योंकि लोकसभा के चुनाव के कारण तैयारियों में काफी असर पड़ा था। जागरूकता और जमीनी स्तर पर काम करने वाली आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को चुनावी ड्यूटी पर लगा दिया गया था। वहीं कुछ जानकारों का कहना है कि एईएस की यह दस्तक इसलिए बड़े संकट की ओर इशारा कर रही है, क्योंकि इस वक्त बिहार का पूरा स्वास्थ्य महकमा कोरोना से निपटने की तैयारियों में लगा हुआ है, एईएस से निपटने के लिए जो काम और इंतजाम किए जाने चाहिए थे, वे अभी तक नहीं हो सके है।