इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नहीं दिया मोहर्रम पर ताजिया जुलूस निकालने की अनुमति

जेपी सिंह
उत्तर प्रदेश Updated On :

प्रयागराज। कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोहर्रम पर ताजिया का जुलूस निकालने की अनुमति के लिए दायर की गईं सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। जस्टिस शशिकांत गुप्ता व जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने शनिवार को याचिकाओं के एक बैच को खारिज़ करते हुए कहा कि भारी मन के साथ कहना पड़ रहा रहा है कि इन कठिन समयों में, मोहर्रम के 10 वें दिन से जुड़े शोक अनुष्ठानों/परंपराओं को विनियमित करने के लिए कोई दिशानिर्देश प्रदान कर पाना और निषेध उठाना संभव नहीं है। उधर बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई में मुहर्रम पर ताज़िया जुलूस की अनुमति दे दी है। इसमें पांच से अधिक लोगों को शामिल होने की इजाजत नहीं होगी। महाराष्ट्र में कहीं भी किसी अन्य जुलूस की अनुमति नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने रोशन खान और कई अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद शुक्रवार को फैसला सुरक्षित रखा था। शनिवार को यह फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धार्मिक समारोहों के आयोजन पर लगी रोक को हटाकर मोहर्रम का ताजिया निकालने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ताओं के वकील ने मोहर्रम में ताजिया जुलूस पर रोक को धार्मिक आजादी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया था। यह भी कहा था कि प्रदेश सरकार ने अन्य धर्मों के समारोहों को इसी समय में अनुमति दी है। सिर्फ मोहर्रम के जुलूस पर पाबंदी सरकार के स्तर पर एक विभेदकारी निर्णय है।

याचिका में मोहर्रम में ताजिये को जुलूस के साथ कर्बला में दफन करने की अनुमति की मांग की गई थी। अपने निर्णय में हाईकोर्ट ने शासनादेश को विभेदकारी नहीं मानते हुए चुनौती याचिकाओं को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 10 अगस्त को आदेश जारी कर मुहर्रम में ताजिया पर पूर्ण प्रतिबंध की घोषणा की थी। पीठ ने कहा कि जुलूस में सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों को पालन करना संभव नहीं हो सकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कब्रगाहों पर ताजि़यों को दफन करना मुहर्रम के रिवाज का पवित्र और महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक इलाके/कॉलोनी का ताजिया होता है, अलग-अलग परिवार का भी अपना ताजिया होता है, सभी को दफनाने के लिए क्रबगाह पर जाना पड़ता है, क्योंकि ताजिया का दफन कोई और नहीं कर सकता है, यह व्यक्तिगत रूप से ही किया जाता है। ऐसा कोई भी तंत्र नहीं है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी व्यक्तियों को ताजिया दफनाने की अनुमति दे दी जाए और सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों का पालन भी हो सके, जो इस अभूतपूर्व समय में एक परम आवश्यकता हैं।

याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना था कि उच्चतम न्यायालय ने जुलाई में पुरी की रथयात्रा की इजाजत दी थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वीएम जैदी, एसएफए नकवी, केके राय ने बहस की। राज्य सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने इसका विरोध किया। उन्हों ने तर्क रखा कि धार्मिक स्वतंत्रता पर कानून व्यवस्था, नैतिकता, लोक स्वास्थ्य को देखते हुए प्रतिबंधित किया जा सकता है। सरकार ने अगस्त माह में भी सभी धार्मिक समारोहों पर रोक लगाई। जन्माष्टमी पर झांकी और गणेश चतुर्थी पर पंडाल पर भी रोक लगाई गई। इसमें किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया है। कोरोना के प्रकोप को देखते हुए सभी से घरों में रहकर ही धार्मिक कार्यक्रम करने का अनुरोध किया गया है।उसी तरह मोहर्रम में ताजिया निकालने पर भी रोक लगी है। किसी समुदाय को लक्ष्य बनाने का आरोप निराधार है।

खंडपीठ ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद शुक्रवार को फैसला सुरक्षित कर लिया था। शनिवार को दोपहर बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए धार्मिक कार्यक्रम पर रोक के शासनादेशों के खिलाफ याचिकाएं खारिज कर दीं। फैसला सुनाते हुए खंडपीठ ने कोरोना को लेकर गहरी चिंता भी जताई। खंडपीठ ने कहा कि हम समुद्र के किनारे खड़े हैं, कब कोरोना लहर हमें गहराई में बहा ले जाएगी,इसका अंदाजा नहीं लगा सकते। हमें कोरोना के साथ जीवन जीने की कला सीखनी होगी।’

इसके पहले गुरुवार को उच्चतम न्यायालय ने मुहर्रम जुलूस के लिए दायर की गई एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश भर के मांगी जा रही इस अनुमति से अराजकता फैल सकती है। वह ऐसे आदेश पारित नहीं करेगा जो इतने लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल दे। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इलाहाबाद उच्च न्यायालय जाने के लिए कहा था।

चीफ जस्टिस एस.ए.बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने शिया धर्मगुरु सैयद कल्बे जवाद की याचिका पर सुनवाई के बाद उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता देशभर में शनिवार और रविवार को मुहर्रम जुलूस की इजाजत चाह रहे थे। याचिका पर अदालत की तरफ से जगन्नाथ पुरी रथयात्रा के आयोजन की अनुमति का हवाला दिया गया था। चीफ जस्टिस ने कहा कि आप पुरी जगन्नाथ यात्रा का संदर्भ दे रहे हैं, जो एक जगह पर और एक रुट पर तय था। उस केस में हमने खतरे का आंकलन कर आदेश दिया था। दिक्कत ये है कि आप देशभर के लिए आदेश देने की इजाजत मांग रहे हैं। अगर आपने एक जगह के लिए इजाजत मांगी होती तो हम उस खतरे का आकलन कर सकते थे। उच्चतम न्यायालय ने पूर्ण रूप से देशभर में इजाजत की मुश्किलों के बारे में बताते हुए कहा कि राज्य सरकारें भी इस याचिका के पक्ष में नहीं हैं।’ सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इससे अराजकता हो सकती है और कोरोना वायरस को फैलाने के लिए एक समुदाय को निशाना बनाया जा सकता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने ताजिया जुलूस की अनुमति दी

उधर बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई में मुहर्रम पर ताज़िया जुलूस की अनुमति दे दी है। इसमें पांच से अधिक लोगों को शामिल होने की इजाजत नहीं होगी। महाराष्ट्र में कहीं भी किसी अन्य जुलूस की अनुमति नहीं है। जस्टिस एसजे काठावाला और जस्टिस माधव जामदार ने स्थानीय शिया संगठन की याचिका पर सुनवाई के बाद इजाजत दे दी। याचिका में कोविड-19 महामारी के बीच सांकेतिक रूप से मुहर्रम का जुलूस निकालने की अनुमति मांगी गई थी। राज्य सरकार और याचिकाकर्ता ऑल इंडिया इदारा-ए-तहफ्फुज-ए-हुसैनियत ने आपसी सहमति कायम करके शुक्रवार को कोर्ट को इसकी जानकारी दी, जिसके बाद कोर्ट ने जुलूस की इजाजत दी।

कोर्ट के आदेश के अनुसार शिया मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को 30 अगस्त शाम साढ़े चार बजे से साढ़े पांच बजे के बीच पहले से तय किसी एक मार्ग पर केवल ट्रक पर जुलूस निकालने की अनुमति होगी। पैदल जुलूस की इजाजत नहीं है।आदेश में कहा गया है कि एक ट्रक में अधिकतम पांच लोगों के ही सवार होने की अनुमति होगी। वहीं ‘ताजिया’ के साथ भी केवल पांच लोगों की ही चयनित मार्ग पर आखिरी 100 मीटर पैदल चलने की इजाजत होगी। कोर्ट ने कहा कि जुलूस में हिस्सा लाने वाले पांच लोगों को अपने घर के पते और मुंबई पुलिस को देने होंगे।



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