BSP : रंग-रोगन से पार्टी में गुटबाजी खत्म करने की हो रही कवायद


इसी मंथन में उनको पता चला कि वरिष्ठ नेताओं  ने अपना-अपना कुनबा बना लिया है। वे उसी कुनबे के लिए काम करने में जुटे हैं। पार्टी के लिए  काम करने की फुर्सत नहीं है। शायद इसीलिए  बसपा सुप्रीमो ने पार्टी में फेरबदल करने का निर्णय लिया। उसकी एक वजह आकाश भी बताए जा रहे हैं। 



लखनऊ। मायावती बसपा को युवा बनाने में  जुटी है। इसी कारण बसपा में बहुत फेरबदल देखने को मिल रहा है। वे नेता जो पार्टी का चेहरा माने जाते हैं और जिन्हें सीधे आलाकमान का संरक्षण हासिल है, उनके पर कतर दिए गए है। उनको ड्राइविंग सीट की बजाए मार्गदर्शक मंडल में बैठा दिया गया है।

ऐसा फैसला  गुटबाजी  खत्म करने के लिए हुआ है। बिना उसके बसपा में नई जान फूंकी नहीं जा सकती थी। इस कारण  बसपा सुप्रीमो ने गुटबाजी तोड़ने का मन बना लिया। 

मन अचानक नहीं बना। पिछले महीने भर से वे लखनऊ में बैठकर समीक्षा बैठके कर रही है। हो इसलिए रही है ताकि पार्टी  के भीतर चल रही राजनीति का पता लगे। बाहर का उनको दिख ही रहा है, जो नहीं दिख रहा, उसे जोनल और सेक्टर प्रभारी दिखा और बता देते हैं।

इसी मंथन में उनको पता चला कि वरिष्ठ नेताओं  ने अपना-अपना कुनबा बना लिया है। वे उसी कुनबे के लिए काम करने में जुटे हैं। पार्टी के लिए  काम करने की फुर्सत नहीं है। शायद इसीलिए  बसपा सुप्रीमो ने पार्टी में फेरबदल करने का निर्णय लिया। उसकी एक वजह आकाश भी बताए जा रहे हैं। 

जो भी हो नीचे से ऊपर तक कई नेताओं को पद से हटाया गया तो कई नये चेहरों को जगह दी।  तभी से यह चर्चा शुरू हो गई है कि आलाकमान भतीजे के लिए पार्टी को तैयार कर रही है। उसके तहत देवीपाटन मण्डल, आजमगढ़ मण्डल और  आगरा मण्डल में परिवर्तन किया गया।

दिलचस्प बात यह है कि इसमें एक मंडल पूर्वी उत्तर प्रदेश का है। इसमें बनारस, मिर्जापुर और गोरखपुर आता है। यहां से बसपा के तीन बड़े ब्राह्मण चेहरे आते हैं। फेरबदल करते समय, पार्टी ने उनकी अनदेखी क्यों की, यह बड़ा सवाल है। राजनीतिक गलियारों में इसकी खासी चर्चा है। तरह-तरह की अटकलें भी लगाई जा रही है।

मगर जिस बात की सबसे ज्यादा चर्चा है, वह भाईचारा समिति है। यह वही समिति है जिसे 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा सुप्रीमो ने भंग कर दिया था। यह समिति सवर्णों को बसपा से जोड़ने के लिए बनी थी। खास जोर ब्राह्मणों पर था।  इस बार भी जोर उसी पर है। खुद बसपा सुप्रीमो कई बार ब्राह्मण जोड़ने की बात कह चुकी है। 

बावजूद इसके वह काम तो हो नहीं रहा। अलबत्ता कई ब्राह्मण क्षत्रप अन्य पार्टियों की ओर खिसक रहे हैं। लखीमपुर खीरी की पूरी जिला इकाई ही सपा में शामिल हो गई। कई तैयारी में है। जाहिर है इससे ब्राह्मण जोड़ों अभियान को धक्का लगा है। वह इसलिए क्योंकि जो जोड़ते रहे हैं  वे तो निष्क्रिय है। बिरादरी के नेताओं से ही परहेज कर रहे हैं। मिलना तो छोड़िए फोन भी नहीं उठा रहे हैं। इस कारण बसपा कार्यकर्ताओं में गजब नाराजगी है।

बसपा सुप्रीमो को समीक्षा बैठक में इन बातों से रूबरू कराया गया।  माना जा रहा कि इस कारण वे नाराज भी है। तभी भाईचारा समितियों की कमान आलाकमान ने अपने पास रखी है। वे जोनल कोआर्डिनेटर के जरिए समितियों को संचालित करेगी।



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