
संभल। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश को देश का सर्वोत्तम प्रदेश बनाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। राज्य की जनता-जनार्दन की सेवा के लिए उन्होंने कोरोना जैसे जानलेवा दुश्मन की परवाह किए बगैर जिले-जिले जाकर अपने नागरिकों का कुशलक्षेम लिया और उन्हें राज्य के मजबूत सुरक्षा कवच का एहसास कराया।
वहीं दूसरी ओर राज्य के कुछ अधिकारी और मंत्री निजी हितों के लिए सांठ-गांठ करके कीमती जमीनों की कब्जेदारी का ‘शातिराना खेल’ बेहद चालाकी से खेल रहे हैं। इसकी तस्दीक करता हुआ जिला है संभल। संभल में जमीन कब्जेदारी की 31 जुलाई की घटना पर गौर किया जाए, तो कुछ अफसरों और कुछ मंत्रियों की शातिराना हरकतें उत्तर प्रदेश की बनती खूबसूरत शक्ल पर तेजाबी हमले जैसी हैं।
संभल में बेशकीमती सरिता विहार कालोनी में सरकार की पुलिसिया ताकत और जेसीबी जैसी बड़ी मशीन चलाकर जमीन की ऐसी कब्जेदारी कराई गई, मानो इसका फरमान राज्य के मुखिया की ओर से आया हो। समाचार मिला है कि संभल में रजिया खातून और लईक अहमद समेत लगभग आधा दर्जन मुस्लिम लोगों का जमीनी विवाद बीते एक दशक से चल रहा है। दोनों पक्षों का विवादित जमीन का मुकदमा न्यायालय सिविल जज चंदौसी के यहां चल रहा है, जिसकी मूलवाद संख्या 82/2019 है। इसके अलावा इसी विवादित भूमि का पार्टीशन सूट (सिविल मुकदमा) एसडीएम कोर्ट संभल के यहां पर विचाराधीन है।
बताया जा रहा है कि रजिया खातून की रजिस्ट्री 2008 में हुई थी। उसके बाद ये जमीनी विवाद न्याय के लिए अदालत के मंदिर में पहुंच गया।
हालात बताते हैं कि सत्ता कोई भी हो उसकी साख और सुंदरता को शर्मसार कराने का काम शातिर और बदनीयत रखने वाले अफसर और नेता ही करते हैं। संभल में जबरन जमीनी कब्जादारी के बारे में चर्चा-ए-आम है कि इस कीमती जमीन पर कब्जा कराने के लिए प्रदेश के मंत्री बलदेव सिंह औलख ने जिलाधिकारी अविनाश कृष्ण सिंह पर बेतहाशा दबाव डाला। जिसका अंजाम हुआ कि सरेआम पुलिस और जेसीबी मशीन सड़क पर उतर आई और जिस तरह से जमीन पर कब्जेदारी का नंगा खेल खेला जाता है, वो उसी तरह पूरा हुआ। इस प्रकरण की जानकारी शासन और प्रशासन के ज्यादातर शीर्ष अधिकारियों और पदाधिकारियों तक पहुंची हुई है।
संभल में जबरन जमीनी कब्जादारी के बारे में चर्चा-ए-आम है कि इस कीमती जमीन पर कब्जा कराने के लिए प्रदेश के मंत्री बलदेव सिंह औलख ने जिलाधिकारी अविनाश कृष्ण सिंह पर बेतहाशा दबाव डाला। जिसका अंजाम हुआ कि सरेआम पुलिस और जेसीबी मशीन सड़क पर उतर आई और जिस तरह से जमीन पर कब्जेदारी का नंगा खेल खेला जाता है, वो उसी तरह पूरा हुआ।
किसी जिले में पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, कानूनगो, पटवारी की मौजूदगी में दहशत पैदा करके जबरन कब्जे के लिए जेसीबी चलाई गई हो, तो वहां के जिलाधिकारी का वक्तव्य यह आता है कि उनकी जानकारी में ऐसा कोई प्रकरण नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि यदि जिलाधिकारी महोदय को इस आग उगलती घटना की जानकारी नहीं है। इससे उनकी संवेदशीलता, सत्यनिष्ठा और सरकार के प्रति समर्पण की शुद्धता आंकी जा सकती है।
हैरतअंगेज खबर यह है कि 31 जुलाई को जिस समय संभल में जबरन जमीनी कब्जेदारी (अदालत की गरिमा की सरेआम धज्जियां उड़ाते हुए) हो रही थी, तब जनता, पुलिस, प्रशासन, अधिकारी सभी इसी मसले को लेकर चर्चा में मशहूल थे। वहीं दूसरी ओर जिले के अधिकारी अपने को घटना से अनभिज्ञ बताते रहे। जब समाचार लिखे जाने से पहले संभल के जिलाधिकारी अविनाश कृष्ण सिंह से इस बारे में सच्चाई जानने की कोशिश की गई, तो उन्होंने बड़े खूबसूरत नाटकीय अंदाज में ये बताया कि मुझे ऐसी किसी भी घटना की जानकारी नहीं है, जबकि जानकारों के मुताबिक, जिलाधिकारी इस प्रकरण की हर पल की जानकारी ले रहे थे।
अखबार की ओर से घटना की सच्चाई जानने के लिए जब मंत्री बलदेव सिंह औलख और पुलिस अधीक्षक संभल से बात करने की कई बार कोशिश की गई तो, दोनों के फोन पर नो रिप्लाई मिला। समाचार को अंतिम रूप दिए जाने तक दोनों महानुभावों का कोई जवाब नहीं आया था, आम जनता का तो हाल ही छोड़िए।
राज्य के लोकप्रिय मुख्यमंत्री जहां एक ओर प्रदेश में विकास और जन विश्वास के लिए दिन-रात अपना पसीना बहा रहे हैं। वहीं कुछ शातिर किस्म के अधिकारी और नेता बहुत बेशर्मी से सरकार की साख पर बट्टा लगवाने में जरा भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। वह भी केवल अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए।
जन विश्वास के लिए जरूरी है कि सरकार की साख को दागदार करने वाले चर्चित बेशर्म अफसरों और नकाबपोश नेताओं के कारनामों की गहराई से जांच हो, ताकि भविष्य में प्रदेश के 75 जिलों में कोई भी अधिकारी या नेता सत्ता की फर्जी धौंस देकर जबरन कब्जेदारी या सत्ता का दुरुपयोग करने की जुर्रत ही न कर सके।
किसी जिले में पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, कानूनगो, पटवारी की मौजूदगी में दहशत पैदा करके जबरन कब्जे के लिए जेसीबी चलाई गई हो, तो वहां के जिलाधिकारी का वक्तव्य यह आता है कि उनकी जानकारी में ऐसा कोई प्रकरण नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि यदि जिलाधिकारी महोदय को इस आग उगलती घटना की जानकारी नहीं है। इससे उनकी संवेदशीलता, सत्यनिष्ठा और सरकार के प्रति समर्पण की शुद्धता आंकी जा सकती है। अब जांच भी इन कृत्यों की सही जानकारी समाज और सरकार तक पहुंचा सकती है।
जन विश्वास के लिए जरूरी है कि सरकार की साख को दागदार करने वाले चर्चित बेशर्म अफसरों और नकाबपोश नेताओं के कारनामों की गहराई से जांच हो, ताकि भविष्य में प्रदेश के 75 जिलों में कोई भी अधिकारी या नेता सत्ता की फर्जी धौंस देकर जबरन कब्जेदारी या सत्ता का दुरुपयोग करने की जुर्रत ही न कर सके।