वाराणसी। बीएचयू में पिछले 3 नवम्बर से लंका गेट पर आईआईटी की घटना के ख़िलाफ़, पीड़िता को न्याय दिलाने, दीवार उठाने के फैसले के ख़िलाफ़ और परिसर में छात्राओं की सुरक्षा के लिए GSCASH का गठन करने जैसे तमाम मुद्दों पर धरनारत छात्र-छात्राओं पर एबीवीपी द्वारा हमले और न्याय की मांग करने वाले छात्राें पर ही एफआईआर दर्ज़ करने की छात्र संगठनो ने कड़ी निन्दा की है।
आइसा, बीएसएम और दिशा के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त बैठक के बाद इन संगठनो के प्रतिनिधियों ने साझा बयान ज़ारी करते हुए कहा कि पुलिस प्रशासन, एबीवीपी और विश्वविद्यालय प्रशासन का त्रिकोण परिसर के जनवादी माहौल को तहस-नहस करने में लगा हुआ है। आन्दोलनरत छात्र-छात्राओं पर हमला करना और उन पर गम्भीर धाराओं में एफ़आईआर दर्ज़ करना इनकी मंशा को दर्शाता है।
ग़ौरतलब है कि 3 नवंबर को बीएचयू के स्टूडेंट्स द्वारा यह धरना शुरू किया गया और धरने के तीसरे दिन यानी 5 नवम्बर को धरना स्थल पर प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने धरने में शामिल छात्र-छात्राओं के साथ मारपीट की तथा प्रदर्शन में शामिल आयुर्वेद संकाय के शोध छात्र रोशन को पुलिस उठा ले गयी। लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन कर रही छात्राओं के साथ प्रॉक्टोरियल बोर्ड द्वारा बदसलूकी की गयी। पुरुष गार्ड ने भी छात्राओं के साथ धक्का मुक्की की और महिला गार्डों ने छात्रों के गुप्तांगों पर हमला किया। इसी दौरान बड़ी संख्या में एबीवीपी के गुण्डों ने हमला किया। उन्होंने यह झूठ फैलाना शुरू किया कि यहां धरना कैम्पस के इन सवालों पर नहीं हो रहा। उन्होंने धरने में शामिल तमाम संगठनों के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार शुरू किया। पुलिस प्रशासन की उपस्थिति में एबीवीपी के गुण्डों ने कई बार हमला किया, कई छात्राओं के कपड़े फाड़ दिए, उनके साथ छेड़खानी, गाली गलौज करते हुए धमकियों दी गईं। जो पुलिस छात्रों पर लाठी बरसाने के लिए तैयार थी, वह मूकदर्शक बनी रही।
बाद में एबीवीपी ने नकली मरहम पट्टी करवाकर उल्टे आन्दोलनरत छात्र संगठनों पर ही हिंसा का आरोप मढ़ दिया तथा टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारी स्टूडेंट्स पर गम्भीर धाराओं में मुकदमें दर्ज़ कर दिये गये।
जाहिर है कि भारी संख्या में धरना स्थल पर एबीवीपी द्वारा हमला करना कोई अकस्मात घटना नहीं थी बल्कि यह सुनियोजित साज़िश थी। इस पूरे मामले की सच्चाई को इसी से समझा जा सकता है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जो छात्राएं हमला करने के बाद मीडिया को बयान देते समय बिलकुल ठीक थी, उन्होंने शाम को मरहम पट्टी कराकर ख़ुद के पीड़ित होने जा झूठ फैलाया। इतना ही नहीं, पहले दिन आन्दोलन में शामिल होने वाली छात्राओं को एबीवीपी की ओर से रोकने की कोशिश की गयी। आन्दोलन के समर्थन में एमएमवी में अभियान चला रही छात्राओं को एबीवीपी की महिला कार्यकर्ताओ द्वारा धमकी दी गयी। एबीवीपी द्वारा धरनास्थल पर पहुंच कर अराजकता फैलाने की कोशिश की गई जिसकी आशंका प्रदर्शनकारी छात्रों ने पहले ही प्रॉक्टोरियल बोर्ड से लिखित रूप में जाहिर की थी।
वास्तव में एबीवीपी जैसे संगठन जो पूरे कैम्पस में दीवार उठाने के नाम पर इस पूरे प्रकरण को एक भावनात्मक मुद्दा बनाने में लगे हुए थे, उनके बरक्स इस धरने में पीड़िता को न्याय और सुरक्षा के सवाल को एक ठोस सवाल बनाते हुए प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करने की बात की जा रही थी जिससे प्रशासन घबराया हुआ था। पुलिस प्रशासन और सरकार पर सवाल न उठे, इसलिए विद्यार्थी परिषद के द्वारा इस तरह के फर्ज़ी दुष्प्रचार किया जा रहा है।
इस मामले पर बीएचयू के चीफ प्रॉक्टर शिव प्रकाश सिंह ने एबीवीपी की दलाली करते हुए झूठा बयान दिया है कि एबीवीपी की दो छात्राओं के हाथ और पैर में फ्रैक्चर हुआ है, जिसका इलाज उन्होंने ट्रॉमा सेंटर से करवाया है। चीफ प्रॉक्टर हो कर ऐसा बयान देना शर्मनाक है। इस पूरे मामले को लेकर हमने अपनी तरफ़ से भी तहरीर देने का प्रयास किया लेकिन चीफ प्रॉक्टर ऑफिस से उसको फॉरवर्ड करने से साफ़ इंकार कर दिया, जिससे इनका पक्षपात साफ़ नज़र आता है।
हमारी मांग है कि –
- पीड़िता को जल्द से जल्द न्याय सुनिश्चित किया जाये। अपराधियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी की जाए।
- आन्दोलनकारी छात्रों पर मुक़दमा रद्द किया जाये।
- एबीवीपी की एफआईआर दर्ज़ कराने वाली छात्राओं की मेडिकल जांच करायी जाए।
- झूठे बयान देने पर चीफ प्रॉक्टर स्टूडेंट्स से माफ़ी मांगे और इसके लिए उनको बर्खास्त किया जाय।
- कमेटी गठित करके पूरे प्रकरण की जांच की जाये।
- आन्दोलनरत छात्रों की मांगें जल्द से जल्द पूरी की जाएं।
बैठक में आइसा की नेशनल जॉइंट सेक्रेटरी चन्दा, बीएसएम की अध्यक्ष आकांक्षा आज़ाद और दिशा के इकाई प्रभारी अमित आदि शामिल रहे।