संस्मरण : जब सीओ चिल्लाए इस गुंडे को अंदर खींच लाओ और मुझे पकड़ कर हवालात में डाल दिया


एक दिन कचहरी में एक मजदूर जिसने अपना नाम बीएन तिवारी और बीईएल में नौकरी करना बताया, मेरे चैंबर पर आए और किसी औद्योगिक विवाद में जमानत कराने का अनुरोध किया। तब तक मैं बीएमएस के बीएन तिवारी जी को चेहरे से पहचानता नहीं था। लेकिन ये जानता था कि बीएन तिवारी बीएमएस के नेता हैं और बीईएल में नौकरी करते हैं।



देश की आजादी के समय पाकिस्तान से विस्थापितों ने गाजियाबाद को औद्योगिक नगरी का रुतबा दिलाया था। गाजियाबाद ऑयल इंजनों के लिए देश भर में विख्यात हुआ। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरू ने गाजियाबाद के ऑयल इंजनों के उत्पादों को पहचान देने के लिए स्वयं गाजियाबाद के इंजन बनाने वाली फैक्ट्री गुरु नानक इंजीनियरिग कम्पनी का दौरा किया था।

पश्चिमी बंगाल में कम्युनिस्टों के उभार के कारण बड़ी संख्या में उद्योगों का पलायन हुआ और उसमें से एक अच्छी खासी संख्या ने गाजियाबाद का रुख किया। एक समय मे गाजियाबाद में टाटा ऑयल मिल, हिंदुस्तान लिवर, अमृत बनस्पति, स्वदेशी पॉलिटिक्स, हिंडन रिवर मिल, पोयसा, जैन ट्यूब कम्पनी, जैन शुद्ध बनस्पति जैसी कई और कम्पनियां थीं जिनमें प्रत्येक फैक्ट्री में तीन हजार से लेकर पांच हजार तक मजदूर काम करते थे। कानपुर के बाद गजियाबाद उत्तर प्रदेश का औद्योगिक नगर विकसित हो रहा था। 70 और 80 का दशक गाजियाबाद के औद्योगिक वैभव का काल था।

उद्योगों के साथ ही मजदूर यूनियनों का भी प्रादुर्भाव हुआ। कम्युनिस्टों से सम्बद्ध यूनियन एटक, सीटू, कांग्रेस से सम्बद्ध इंटक समाजवादियों से सम्बद्ध एसएमएस और आरएसएस से प्रेरित बीएमएस मजदूर क्षेत्र में सक्रिय थीं। लेकिन अधिकतर फैक्ट्रियों में दबदबा कम्युनिस्टों की यूनियन एटक और सीटू का ही था। बीएमएस की सबसे मजबूत यूनियन बीईएल भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड में ही थी। हड़ताल, जलूस, मारपीट रोज का क्रम था।

फैक्ट्री मालिकों से संघर्ष तो था ही, आपस मे भी यूनियनों में गला काट प्रतियोगिता थी। कई मजदूर नेता उस हिंसा में मारे गए। फैक्ट्रियों के बंदी साथ ही उन मजदूरों के हिंसक आंदोलनों का उतार हुआ। कारण और भी होंगे लेकिन गाजियाबाद की आबाद इंडस्ट्रीज के उजड़ने का एक प्रमुख कारण ये यूनियन और इनके हिंसक आंदोलन थे। गाजियाबाद को बड़ा खामियाजा उठाना पड़ा। औद्योगिक नगरी से उपभोक्ता नगर रह गया। सभी बड़े उद्योग बन्द हो गए। लाखों मजदूर बेरोजगार होकर पलायन को विवश हुए।

उन दिनों हम वकालत करते थे और भाजपा के कार्यकर्ता थे। भारतीय मजदूर संघ, आरएसएस से प्रेरित थी इसलिए उनसे से भी हमदर्दी थी। अक्सर उनसे भेंट मुलाकात होती रहती थी। रमतेराम रोड के सुभाष मार्किट में ऊपर बने फ्लैट में भाजपा के कार्यालय के सामने ही बीएमएस का कार्यालय था।। ओमप्रकाश शर्मा बीएमएस के प्रमुख कर्ताधर्ता थे उनसे स्नेहवत सम्बन्ध बन गए। बीएन तिवारी बीएमएस के बहुत सक्रिय कार्यकर्ता थे, स्वयं बीईएल में नौकरी करते थे। लंबे समय तक बीएमएस के जिलाध्यक्ष रहे।

एक दिन कचहरी में एक मजदूर जिसने अपना नाम बीएन तिवारी और बीईएल में नौकरी करना बताया, मेरे चैंबर पर आए और किसी औद्योगिक विवाद में जमानत कराने का अनुरोध किया। तब तक मैं बीएमएस के बीएन तिवारी जी को चेहरे से पहचानता नहीं था। लेकिन ये जानता था कि बीएन तिवारी बीएमएस के नेता हैं और बीईएल में नौकरी करते हैं। मैंने उनकी जमानत कराई और उनसे पैसे नहीं लिए। शाम को ओमप्रकाश शर्मा जी को बताया कि बीएन तिवारी जी और उनके साथ आये मजदूरों की जमानत करा दी थी। तब शर्मा जी ने बताया कि जिनकी आपने जमानत कराई है, वे दूसरे बीएन तिवारी हैं और वे सीटू के बड़े नेता हैं। बीएमएस के बीएन तिवारी नहीं हैं।

बीएन तिवारी नौकरी तो बीईएल में करते थे लेकिन बीएमएस के नेता होने के कारण अन्य उद्योंगो में अपनी यूनियन की गतिविधियों में भाग लेते रहते थे। गाजियाबाद के चौधरी मोड़ से कोट गांव जाने वाले रास्ते पर स्मिता कंडक्टर नाम की एक वायर बनाने की फैक्टरी थी। बीएमएस उंसके गेट पर मीटिंग करना चाहते थे। उस सभा को बीएन तिवारी स्वयं सम्बोधित करने वाले थे। मालिकों ने मौके पर पुलिस बुला ली। पुलिस ने तिवारी जी से कहा कि गेट मीटिंग की अनुमति लाओ तब गेट मीटिंग कर सकते हो। तिवारी जी और ओमप्रकाश शर्मा जी मेरे पास आये कि गेट मीटिंग की अनुमति दिलाने के लिए थाने तिवारी जी के साथ चले जाओ।

मैं और तिवारी जी घण्टाघर कोतवाली पहुंच गए, वहां सीओ सिटी डीसी पांडेय अपने कार्यालय में बैठे थे। मैंने गार्ड से कहा कि मुझे स्मिता कंडक्टर पर गेटमिटिंग की अनुमति के लिए सीओ साहब से मिलना है। सीओ अंदर से ही चिल्लाए इस गुंडे को अंदर खींच लाओ और फिर स्वयं बाहर आ गए और मुझे पकड़ कर हवालात में बंद कर दिया। स्वयं फिल्मी स्टाइल में सलाखें पकड़ कर मुझे मां बहन की गंदी गन्दी गाली देने लगे। जब थक गए तो अपने दफ्तर मैं बैठ गए फिर थोड़ी देर बाद वही गालियां देने लगे। बीएन तिवारी तो सम्भवतः गेट पर ही छूट गए। मैं हैरान था, मेरे साथ इस तरह का सलूक किसी ने पहली बार किया था और वह भी बिना किसी दोष के।

थोड़ी देर में कोतवाली के इंस्पेक्टर केपी शर्मा हवालात पर आए उनकी पोस्टिंग सम्भवतः एक सप्ताह पहले ही यहां हुई थी। उन्होंने मुझे गौर से देखा और पूछा आप तो वकील हैं। मैंने उत्तर दिया हाँ। उन्होंने कहा कि कल एसडीएम कोर्ट के बाहर आप ही सभा को सम्बोधित कर रहे थे, मैंने कहा हाँ। उन्होंने पूछा आज क्या हुआ? मैंने कहा कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। मैं तो बीएमएस वालों को गेट मीटिंग की अनुमति दिलाने तिवारी जी के साथ आया था। उन्होंने पूछा तिवारी जी कहाँ हैं, मैंने कहा, वे तो कही पीछे छूट गए। थोड़ी देर बाद मुझे छोड़ दिया।

जब मैंने कचहरी में अपने साथ हुई घटना की जानकारी दी तो अगले दिन वकीलों ने कचहरी से जलूस निकालकर कोतवाली पर प्रदर्शन किया। और अगले दिन भाजपा के लोगों ने मेरे साथ हुई घटना के विरोध में घण्टाघर पर धरना दिया। पुलिस ने शांतिपूर्वक धरने पर बैठे लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया। कई लोग घायल हो गए। तेलूराम काम्बोज, नरसिंह अरोड़ा, रविन्द्र कांत त्यागी, ओमपाल त्यागी, अरविंद भारती और भिककन सिंह घायल हुए तेलूराम और कांता जी तो निकल गए बाकी सभी घायलों को और दिनेशचंद गर्ग को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।

शाम को तेलूराम काम्बोज दिल्ली जाकर अटल बिहारी वाजपेयी से मिले और अपने और कांता जी के शरीर पड़ी लाठियों के गहरे निशान दिखाए। अटल जी चोटों को देखकर बेचैन हुए और इन्होंने कहा कि जाओ मैं तरसों आऊंगा सभा की तैयारी करो। नवयुग मार्किट में सभा रखी गई। अटल जी आये और अपने साथ आडवाणी जी, विजयकुमार मल्होत्रा, केदारनाथ साहनी और कई बड़े नेताओं को लेकर आये। सभी बस में बैठकर आये, जेल जाने की तैयारी से बिस्तर लेकर आये।

नवयुग मार्किट में सभा हुई, अभूतपूर्व भीड़ थी। अटल जी ने अपना भाषण समाप्त करते हुए कहा कि धरना देना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है। पुलिस ने हमारे कार्यकर्ताओं को लाठी चार्ज करके जेल भेजा है ।हम उसी स्थान पर जाकर धरना देंगे। पुलिस प्रशासन चाहे तो हमे गिरफ्तार कर ले हम अपने अधिकार को स्थापित करेंगे। ये कह कर वे स्वयं मंच से उतर कर पैदल ही घण्टाघर के लिए चल दिये। हजारों की संख्या में लोग नारे लगाते हुए चल दिये। वह अभूतपूर्व दृष्य था। अटल जी के नेतृत्व में घण्टाघर पर सभी बड़े नेता धरने पर बैठ गए और वक्ताओं ने गिरफ्तार करने की चुनौती दी लेकिन पुलिस प्रशासन गिरफ्तारी के लिए आगे नहीं आया। अटल जी ने कहा कि हमने अपने धरने के अधिकार को स्थापित कर दिया है। धरना समाप्त हो गया।

बाद में प्रशासन ने पहल करके मामले में समझौता किया और सभी गिरफ्तार लोगों को रिहा कर दिया। अटल जी के बीच मे आने से मजदूर क्षेत्र में बीएन तिवारी जी और उनके बीएमएस का रुतबा और बढ़ गया था। 1992 में जब मैं गृह राज्य मंत्री बना तब उक्त पुलिस अधिकारी डीसी पांडेय डीआईजी बन गए थे। एक दिन वे उस कड़वाहट को समाप्त करने के लिए मिलने आये। मैने उन्हें आश्वस्त किया कि हम तो उस घटना को भूल चुके हैं। अब हमें आपसे कोई गिला नहीं है।

(बालेश्वर त्यागी पूर्व मंत्री हैं और गाजियाबाद में रहते हैं।)



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