प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग को ‘आरक्षित चुनाव चिन्हों’ के ‘दुरुपयोग’ से संबंधित एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील को निर्देश दिया कि मामले की जांच करें और जवाब दाखिल करें।
प्रतीक (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 5 के तहत, आरक्षित चुनाव चिन्ह एक प्रतीक है, जिसे किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के “प्रत्याशियों के अनन्य आवंटन” के लिए आरक्षित किया जाता है।
याचिकाकर्ता ने चुनाव के बाद भी राजनीतिक दलों द्वारा आरक्षित चुनाव चिन्हों के प्रयोग पर आपत्ति जताई। उसने अपील की कि चुनाव चिन्ह को केवल और केवल एक उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के उद्देश्य से आवंटित किया जाना चाहिए, किसी अन्य उद्देश्य से नहीं।
याचिकाकर्ता ने कहा कि यदि राजनीतिक दलों को चुनाव के अलावा किसी अन्य उद्देश्य से चुनाव चिन्ह का उपयोग करने की अनुमति दी जाती है तो यह अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण होगा। ऐसे उम्मीदवार, जो मान्यता प्राप्त दलों से संबद्ध नहीं हैं, उनके पास चुनाव चिन्हों का हमेशा प्रचार करने का मौका नहीं होगा, जैसा कि मान्यता प्राप्त राजनीहतिक दलों के उम्मींदवारों के पास है।
जनप्रतिनिधित्व कानून और 1968 के आदेश के तहत, चुनाव चिन्हों की अवधारणा केवल चुनाव के उद्देश्य से लागू होती है और ऐसे चिन्हों का उपयोग किसी राजनीतिक दल के प्रतीक के रूप में नहीं किया जा सकता।
चुनाव चिन्हों की वैधता, मान्यता प्राप्त दल के उम्मीदवार के लिए आरक्षित चिन्ह की थी, केवल एक विशिष्ट चुनाव के लिए है और उसी चिन्ह को अन्य मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों या अन्य चुनावों में अन्य उम्मीदवारों (निर्दलीय) को भी आवंटित किया जा सकता है।