
अपनी मर्जी से प्रेम विवाह करने वाले प्रेमी जोड़ों द्वारा बेवजह पुलिस सुरक्षा की मांग किए जाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अपनी मर्जी से शादी करने मात्र से जोड़े को सुरक्षा की मांग करने का कोई विधिक अधिकार नहीं मिल जाता है। इस मामले में अदालत ने कहा है कि यदि उनके साथ दुर्व्यवहार या मार-पीट की जाती है और सुरक्षा को लेकर कोई खतरा होता है तो ही कोर्ट व पुलिस उनके बचाव में आएगी और मामलों में दखल देगी।
कोर्ट ने कहा है उन्हें एक दूसरे के साथ खड़े होकर समाज का सामना करना चाहिए और परिस्थितियों से निपटना चाहिए। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा है कि कोर्ट ऐसे युवाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नहीं बनी है, जिन्होंने अपनी मर्जी से शादी कर ली हो। कोर्ट ने कहा है कि सुरक्षा गुहार लगाने के लिए उन्हें वास्तविक खतरा होना चाहिए।
हाईकोर्ट ने कहा है कि याचियों ने एसपी चित्रकूट को प्रत्यावेदन दिया है। पुलिस वास्तविक खतरे की स्थिति और कानून के मुताबिक जरूरी कदम उठाए। कोर्ट ने इसी टिप्पणी के आधार पर याची श्रीमती श्रेया केसरवानी व अन्य की याचिका को निस्तारित कर दिया है। याचिका में याचियों के शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में विपक्षियों को हस्तक्षेप करने से रोकने की मांग की गई थी।
कोर्ट ने कहा याचिका के तथ्यों से कोई गंभीर खतरा नहीं दिखाई देता है, जिसके आधार पर उन्हें पुलिस संरक्षण दिलाया जाये। विपक्षियों द्वारा याचियों पर शारीरिक या मानसिक हमला करने कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। याचियों ने विपक्षियों के किसी अवैध आचरण को लेकर एफआईआर दर्ज करने की पुलिस को कोई अर्जी नहीं दी है और न ही बीएनएसएस की धारा 173(3)के तहत केस करने का ही कोई तथ्य है। इसलिए पुलिस सुरक्षा देने का कोई केस नहीं बनता है। मामले की सुनवाई जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की सिंगल बेंच में हुई।