जबरन धर्मांतरण का पुलिस को नहीं मिले सबूत, अदालत ने आरोपियों को बरी करने को कहा

अभियोजन अधिकारी अमर तिवारी ने कहा कि कांठ पुलिस द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि राशिद और उसके भाई सलीम द्वारा जबरन धर्मांतरण कराए जाने के आरोपों से पिंकी के इनकार के बाद उन्हें इस मामले में कोई साक्ष्य नहीं मिले, जिसके बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जेल से दोनों की रिहाई के आदेश दिये।

मुरादाबाद। उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने धर्मांतरण (निषेध) कानून के तहत इस महीने गिरफ्तार किये गए दो भाइयों की रिहाई का आदेश दिया है।

एक अधिकारी ने शनिवार को बताया कि एक हिंदू महिला से अपनी शादी का पंजीकरण कराने के लिये मुरादाबाद में पंजीयक कार्यालय जाने के बाद चार दिसंबर को एक मुस्लिम व्यक्ति और उसके भाई को गिरफ्तार किया गया था। लड़की के घरवालों ने इस मामले में शिकायत दर्ज कराई थी।

बजरंग दल के कार्यकर्ता एक कथित वीडियो में दंपत्ति से यह पूछते नजर आ रहे हैं कि क्या महिला ने जिलाधिकारी कार्यालय में धर्म परिवर्तन की अपनी मंशा को लेकर नोटिस दिया था, जैसा कि नए अध्यायदेश में प्रावधान है।

अभियोजन अधिकारी अमर तिवारी ने कहा कि कांठ पुलिस द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि राशिद और उसके भाई सलीम द्वारा जबरन धर्मांतरण कराए जाने के आरोपों से पिंकी के इनकार के बाद उन्हें इस मामले में कोई साक्ष्य नहीं मिले, जिसके बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जेल से दोनों की रिहाई के आदेश दिये।

जिला कारागार के जेलर, मनीष ने कहा कि उन्हें रिहाई के आदेश प्राप्त हो गए हैं और दोनों को आज रिहा कर दिया जाएगा।

इसबीच, सास का आरोप है कि सरकारी आश्रय गृह में प्रताड़ना के बाद पिंकी का गर्भपात हो गया।

हाल में पारित उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अध्यादेश उन शादियों को निरस्त करता है अगर वे सिर्फ धर्मांतरण के उद्देश्य से की गई हों। प्रदेश सरकार ने 24 नवंबर को मसौदा अध्यादेश को मंजूरी दी थी जिसके तहत उल्लंघन करने वाले को 10 साल की कैद की सजा हो सकती है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अध्यादेश को लेकर दायर एक याचिका पर शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से उसका पक्ष मांगा है।

First Published on: December 19, 2020 3:32 PM
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