बैलेट की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण तत्व है: सुप्रीम कोर्ट


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेखा सिंह के खिलाफ पारित अविश्वास प्रस्ताव को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मतदान के दौरान निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया गया जिससे मतदान की गोपनीयता भंग हुई है।हाईकोर्ट के आदेश को उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई थी।



उच्चतम न्यायालय  ने कहा है कि एक संवैधानिक लोकतंत्र में बैलेट की गोपनीयता का सिद्धांत एक महत्वपूर्ण निर्विवाद तत्व है। जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि चुनाव कानून के मूलभूत सिद्धांतों में से एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव है। बैलेट की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसका उद्देश्य इस लक्ष्य को हासिल करना है।पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।  

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पंचायत अध्यक्षरेखा सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करते समय 25 अक्टूबर 2018 को हुई इलाहाबाद जिला पंचायत की बैठक के मिनट्स को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि कुछ सदस्यों ने बैलेट की गोपनीयता के सिद्धांत का उल्लंघन किया था।पीठ ने माना था कि अविश्वास प्रस्ताव के समय वोट का खुलासा करना कानूनी नियमों का उल्लंघन है और यह चुनावों की पवित्रता को प्रभावित करता है।.

इसे लेकर उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई और याचिकाकर्ता ने कहा कि बैलेट की गोपनीयता का सिद्धांत परम सिद्धांत नहीं है और इस पर छूट लागू है। उन्होंने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 94 का उल्लेख करते हुए कहा कि वोटर स्वैच्छिक स्तर पर बैलेट की गोपनीयता को तोड़ने का फैसला ले सकता है।याचिका में कहा गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये गलत ठहराया है कि अविश्वास प्रस्ताव पर जिला पंचायत के सदस्य वोटिंग के दौरान स्वैच्छिक रूप से बैलेट की गोपनीयता को खत्म कर उसे सार्वजनिक करने का फैसला नहीं ले सकते हैं।

अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत एक पूर्ण सिद्धांत नहीं है , और विशेषाधिकार की स्वैच्छिक छूट अनुमन्य थी। उन्होंने पीपल्स रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट की धारा 94 में यह उल्लेख किया कि मतदाता स्वेच्छा से मतपत्र की गोपनीयता को त्याग  सकता है।  उनहोंने यह तर्क भी दिया कि हाईकोर्ट ने जिला पंचायत का अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में यह गलत ठहराया है कि स्वैच्छिक छूट सिद्धांत सदस्यों के संबंध में मामले में लागू नहीं हो सकता है। 

उच्चतम न्यायालय ने लक्ष्मी सिंह एवं अन्य  बनाम  रेखा सिंह एवं अन्य मामले में कहा कि इस मामले में गोपनीयता की स्वैच्छिक छूट और स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों को लेकर हाईकोर्ट के तर्क में कुछ हद तक कमी है। हालांकि पीठ ने दोनों पक्षों की सहमति पर आदेश दिया कि गोपनीय बैलेट के जरिये प्रस्ताव पर एक बार फिर से वोटिंग की जाए।पीठ ने निर्देश दिया  कि इस फैसले के दो महीने के भीतर जिला जज द्वारा निर्धारित तारीख और समय पर इलाहाबाद के जिला जज या उनकी जगह पर अतिरिक्त जिला जज की मौजूदी में ये कार्यवाही पूरी की जाए।

अब उच्चतम न्यायालय के आदेश पर जिला पंचायत अध्यक्ष प्रयागराज रेखा सिंह के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर फिर से मतदान कराया जायेगा। इससे पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेखा सिंह के खिलाफ पारित अविश्वास प्रस्ताव को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मतदान के दौरान निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया गया जिससे मतदान की गोपनीयता भंग हुई है।हाईकोर्ट के आदेश को उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई थी। 

याची के वकीलों का कहना था कि हाईकोर्ट का आदेश मतदान की गोपनीयता को लेकर सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ द्वारा एस रघुवीर सिंह गिल केस के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। मतों की गोपनीयता का प्रश्न इस बात पर निर्भर करता है कि मतदान निष्पक्ष और भयमुक्त वातावरण में हो और मतदाताओं को विश्वास हो कि उनका मत सार्वजनिक नहीं होगा।याची पक्ष के वकीलों ने अविश्वास प्रस्ताव पर फिर से मतदान कराने का कोर्ट का सुझाव दिया। याची भी इससे सहमत थे। इसे देखते हुए सुप्रीमकोर्ट ने जिला जज इलाहाबाद को निर्देश दिया है कि वह दो माह के भीतर मतदान की नई तिथि घोषित कर स्वयं या किसी अपर जिला जज की निगरानी में अविश्वास प्रस्ताव पर फिर से वोटिंग कराएं। 

रेखा सिंह के खिलाफ 25 अक्तूबर 2018 को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराया गया था। 51 सदस्यों में 48 सदस्यों ने मतदान में भाग लिया। इनमें से दो सदस्यों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया जबकि एक मत निरस्त कर दिया गया।शेष 45 मत अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में पड़े। पीठासीन अधिकारी ने उसी दिन अविश्वास प्रस्ताव आधे से अधिक के बहुमत से पारित घोषित कर दिया। रेखा सिंह ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। कहा गया कि मतदान के दौरान सदस्यों ने गोपनीयता का पालन नहीं किया और एक दूसरे को दिखाकर वोट डाले। इसकी वीडियो रिकार्डिंग भी हाईकोर्ट में पेश की गई। इसके आधार पर हाईकोर्ट ने अविश्वास प्रस्ताव रद्द कर दिया था।