उत्तर प्रदेश के उस चेहरे से मिलिए जिन्होंने पिछले एक दशक से अधिक समय से जनता के मुद्दों पर संघर्ष कर उन्हें राजनीति के केंद्र में लाया. ‘रिहाई मंच’ के महासचिव राजीव यादव पिछले करीब 17 वर्षों से लगातार दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के मसलों पर लड़ रहे हैं. राजीव रिहाई मंच के जरिये बेगुनाहों, वंचितों, शोषितों के मानवाधिकारों-लोकतांत्रिक अधिकारों, संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के मुद्दों को पूरी सक्रियता के साथ उठा रहे हैं. मानवाधिकार संगठन के तौर पर दिखने वाला रिहाई मंच दरअसल सामाजिक न्याय और संविधान सम्मत अधिकारों के लिए लड़ने वाला संगठन है.
दरअसल, राजीव यादव आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. वह गरीबों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के मसलों को सदन तक ले जाने के लिए तैयार नजर आ रहे हैं.
फर्जी मुकदमों के खिलाफ मुहिम
2007 में शुरू हुआ ‘रिहाई आन्दोलन’ 2012 में ‘रिहाई मंच’ में तब्दील हो गया. मुहम्मद शुऐब मंच अध्यक्ष और राजीव यादव वर्तमान में इसके महासचिव हैं. आजमगढ़ को आतंकवाद से जोड़ने की साजिश के खिलाफ 2007 से सक्रिय हुए और चर्चित दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद आजमगढ़ के मुस्लिम युवाओं के उत्पीड़न के खिलाफ उठने वाली आवाज सूबे ही नहीं पूरे देश में आतंकवाद के नाम पर उत्पीड़न के सवाल पर मुखर हुई. महिलाओं के यौन उत्पीड़न, बलात्कार, हत्या खासकर हिरासत में हत्या जैसे महत्वपूर्ण सवालों को उठाया.
राजीव यादव ने आज़मगढ़ समते पूरे सूबे में फर्जी इनकाउंटर में मारे और घायल दलित-पिछड़ों और मुसलमानों के परिजनों से मिल कर उनकी कानूनी लड़ाई में हर संभव सहयोग किया. इनकांउटर की घटनाओं का दस्तावेज़ीकरण कर कानून व्यवस्था के नाम पर होने वाले इन फर्जीवाड़ों को मीडिया से लेकर राष्ट्रीय मावाधिकार आयोग की दहलीज़ तक पहुंचाया. धर्मांतरण के नाम पर ईसाइयों पर फर्जी मुकदमा कायम किया गया तो राजीव यादव ने उसका तथ्य संकलन कर सच्चाई जनता के सामने लाया.
पढ़ाई और संघर्ष साथ-साथ
राजीव यादव उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के रहने वाले हैं. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की है. पढ़ाई के दौरान वो ऑल इंडिया स्टूडेन्ट एसोसियशन (AISA) के सक्रिय नेता रहे. उनकी सक्रियता को देखते हुए उन्हें इलाहाबाद आईसा का सचिव भी बनाया गया. इसके बाद राजीव ने नई दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन (आईआईएमसी) से पत्रकारिता की पढ़ाई की. इसी दौरान उन्होंने साथियों के साथ फर्जी मुकदमों में फंसाए गए बेगुनाहों की रिहाई का आंदोलन शुरू किया. मानवाधिकार संगठन पीयूएचआर और पीयूसीएल के भी पदाधिकारी रहे.
योगी के खिलाफ कोर्ट पहुंचे
पत्रकारिता की पढ़ाई के पहले से ही वो विभिन्न सामाचार पत्रों में लिख रहे थे. जब वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक प्रथम वर्ष में थे तभी उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म बनाना शुरू किया. ‘सैफ़रॉन वारः ए वार अगेंस्ट नेशन’ और ‘पार्टिशन रिवीजीटेड’ नाम की डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई. सैफ़रॉन वार यूपी की सियासत में काफी चर्चित डॉक्यूमेंट्री है. यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री और गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने इस डॉक्यूमेंट्री के विरोध में राजीव यादव और उनके साथियों को इस्लामिक फंडेड व नक्सलियों का समर्थक बताया. बावजूद इसके राजीव यादव पूरी बहादुरी के साथ पूर्वांचल में साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ते रहे, और योगी आदित्यनाथ की साम्प्रदायिक गतिविधियों के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट भी गए. मुज़फ़्फ़रनगर साम्प्रदायिक हिंसा के बाद संगीत सोम और सुरेश राणा जैसे नेताओं के खिलाफ एफ़आईआर की तहरीर भी दी. राजीव यादव ने 2015 में अपने साथी के साथ मिलकर ‘ऑपरेशन अक्षरधाम’ नामक पुस्तक भी लिखी.
2012 में उत्तर प्रदेश में मथुरा के कोसी कला, प्रतापगढ़ के अस्थान, फैजाबाद, मुजफ्फरनगर समेत विभिन्न सांप्रदायिक घटनाओं के सवालों को प्रमुखता से न सिर्फ उठाया बल्कि पीड़ितों के साथ मुश्किल समय में खड़े रहे. मुजफ्फरनगर के सवाल पर जब राजधानी लखनऊ में जन सुनवाई का आयोजन किया तो तत्कालीन सरकार ने इस पर रोक लगा दी, लेकिन इसके बावजूद दंगा पीड़ितों के साथ विधानसभा मार्च किया.
निमेष कमीशन की रिपोर्ट जारी करायी
18 मई 2013 को आतंकवाद के मामले में फंसाए गए खालिद मुजाहिद की हिरासत में मौत के बाद रिहाई मंच ने विधानसभा के सामने 121 दिन लगातार रना दिया. धरना के दबाव में सपा सरकार को आरडी निमेष आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करनी पड़ी. आज तक हाशिमपुरा, मलियाना, मेरठ आदि दंगों की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई पर रिहाई मंच के आंदोलन के दबाव में यूपी सरकार को निमेष आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करनी पड़ी.
रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने विभिन्न अदालतों में आतंकवाद के जो मुकदमे लड़े, उनमें 14 नौजवानों को अदालत ने बाइज्जत बरी किया. मुहम्मद शुऐब, राजीव यादव और रिहाई मंच के साथियों की मुहिम सिर्फ मुकदमे लड़ने तक सीमित नहीं है बल्कि इस तरह के फर्जी मुकदमे दर्ज न हों, जिससे वंचित तबके को सड़क से लेकर अदालतों के चक्कर न काटने पड़ें.
2015 में रिहाई मंच ने हाशिमपुरा के मामले पर एक सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें राजीव यादव और उनके साथियों पर दंगा भड़काने की कोशिश का आरोप लगाकर यूपी पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज कराया. एक रिसर्च के दौरान राजीव यादव और उनके साथी गुजरात के अहमदाबाद में भी डिटेन किए गए, लेकिन पूछताछ के बाद इन्हें छोड़ दिया गया. इस तरह से राजीव यादव लगातार सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर रहे हैं.
2016 में भोपाल में कथित सिमी कार्यकर्ताओं के कथित एनकाउंटर पर भी इन्होंने ज़ोर-शोर से सवाल उठाए और विरोध में लखनऊ में प्रदर्शन का ऐलान किया. पुलिस ने इन्हें पकड़ लिया और मारते-पीटते घंटों तक सिमी आतंकी, मुसलमान, कटुआ और पाकिस्तानी एजेंट बताकर थाने के लॉकअप में बंद रखा. इस दौरान लगातार फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मारने की धमकी दी जाती रही. चोट ज्यादा होने के चलते बाद में इन्हें केजीएमयू के ट्रामा सेंटर में भर्ती किया गया. इस मामले में भी पुलिस ने विधानसभा पर हमले का एफआईआर दर्ज की.
2017 में यूपी के विधानसभा चुनावों के दौरान राजधानी लखनऊ के चर्चित सैफुल्लाह एनकाउंटर और उसके बाद आईएस के नाम पर कानपुर, लखनऊ और बिजनौर से गिरफ्तार लड़कों के सवालों को जिस तार्किक ढंग से उठाया, वह बहुत महत्वपूर्ण रहा. वहीं दिसंबर 2015 में संभल, जुलाई 2021 में लखनऊ में अलकायदा के नाम पर हुई गिरफ्तारियों पर भी पीड़ितों के परिजनों के साथ सवाल उठाया.
संयुक्त राष्ट्र में उठा राजीव यादव का मसला
यूपी में भाजपा शासित योगी सरकार में दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के खिलाफ मॉब लिंचिग, एनकाउंटर, गुंडा एक्ट, गैंगेस्टर, रासुका जैसे सवालों को मजबूती से उठाया. फर्जी एनकाउंटर पर सवाल उठाने की वजह से राजीव यादव को फर्जी मुकदमें में फंसाने और जान से मारने की पुलिस की धमकी को संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) ने भी संज्ञान लिया और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मामले की जांच की.
राजीव यादव उत्तर प्रदेश में दलित उत्पीड़न के सवालों पर लगातार सक्रिय हैं, चाहे वो पूर्वांचल का सवाल हो या बुंदेलखंड का. दलितों-पिछड़ों-मुसलमानों की हिरासत में मौत जैसे सवालों को प्रमुखता से उठाया, और इन सवालों को लेकर कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया. रिहाई मंच, पूरी प्रक्रिया में अपने आप को मानवाधिकार संगठन से आगे बढ़कर सामाजिक न्याय और संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्षरत संगठन के रूप में जाना जाता है.
2015 में रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बाद लखनऊ में ‘मोदी गो बैक’ के नारे लगाने वाले अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के छात्रों को सम्मानित करना हो या फिर जेएनयू में नारेबाजी प्रकरण, इन सभी सवालों पर रिहाई मंच यूपी में प्रमुखता से खड़ा रहा. रोहित वेमुला को लेकर मनुवाद-ब्राह्मणवाद विरोधी बहस को सामाजिक न्याय की बहसों से जोड़ते हुए मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने और जातिगत जनगणना के सवाल पर लगातार सक्रियता रही. 2017 में शब्बीरपुर, सहारनपुर में हुई दलित विरोधी हिंसा के मुद्दे को न सिर्फ प्रमुखता से उठाया बल्कि राजधानी लखनऊ में पीड़ित दलित परिवारों के समर्थन में कॉन्फ्रेंसों का भी आयोजन किया.
आरक्षण के मुद्दे पर सक्रिय
2018 में सवर्ण आरक्षण, 13 प्वाइंट रोस्टर के खिलाफ, नीट में आरक्षण जैसे सामाजिक न्याय के सवालों पर लगातार सक्रिय रहे. सवर्ण आरक्षण के खिलाफ राजधानी लखनऊ में धरने का आयोजन करते हुए विभिन्न संगठनों के साथ दो दिवसीय प्रतिवाद का भी आयोजन किया. 13 प्वाइंट रोस्टर के लिए आयोजित भारत बंद के आयोजन में रिहाई मंच की यूपी में अहम भूमिका थी.
एससी/एसटी एक्ट को कमजोर करने के खिलाफ 2 अप्रैल 2018 को हुए भारत बंद, 2019 में नागरिकता आंदोलन और 2020 में किसान आंदोलन में भागीदारी की. 2019 में नागरिकता आंदोलन के दौरान लखनऊ समेत पूरे सूबे में हुई हिंसा को लेकर रिहाई मंच निशाने पर आया और उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ जिसमें रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब समेत कई लोग महीनों जेल में भी रहे. योगी सरकार ने मंच पर कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय तक को लिखा. इन सब कार्रवाइयों के दौर में भी रिहाई मंच लगातार सक्रिय रहा.