जाने-माने उर्दू लेखक शम्सुर्रहमान फारुकी का निधन


फारुकी ने अंग्रेजी में (एमए) की डिग्री 1955 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। कुछ दिनों तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापन के बाद उनका चयन भारतीय डाक सेवा में हो गया। नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के बाद वे इलाहाबाद में स्थायी रूप से रहने लगे और आजीवन साहित्य सेवा को समर्पित रहे।



प्रयागराज / नई दिल्ली। जाने-माने उर्दू लेखक एवं आलोचक शम्सुर्रहमान फारुकी का इलाहाबाद में आज सुबह निधन हो गया। उन्होंने सुबह 11.20 बजे अंतिम सांस ली। नवंबर में वे कोरोना पॉजिटिव पाये गये थे। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इलाहाबाद के अशोकनगर नेवादा क़ब्रिस्तान में उन्हें दफनाया जायेगा।

शम्सुर्रहमान फारुकी सरस्वती सम्मान से सम्मानित साहित्यकार और उर्दू ज़बान व अदब के नामवर आलोचक हैं। उनको उर्दू आलोचना के टी.एस.एलियट के रूप में माना जाता है और उन्होंने साहित्यिक समीक्षा के नए मॉडल तैयार किए हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना तनक़ीदी अफ़कार के लिये उन्हें सन् 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (उर्दू) से सम्मानित किया गया।

शम्सुर्रहमान का जन्म 30 सितंबर, 1935 को भारत में हुआ था। उनके माता-पिता अलग अलग पृष्ठभूमि के थे -पिता देवबंदी मुसलमान थे जबकि मां का घर काफी उदार था। उनकी परवरिश उदार वातावरण में हुई, वह मुहर्रम और शबे बारात के साथ होली भी मना लिया करता था।

फारुकी ने अंग्रेजी में (एमए) की डिग्री 1955 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। कुछ दिनों तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अध्यापन के बाद उनका चयन भारतीय डाक सेवा में हो गया। नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के बाद वे इलाहाबाद में स्थायी रूप से रहने लगे और आजीवन साहित्य सेवा को समर्पित रहे।

फारुकी को उर्दू साहित्य में पश्चिमी आलोचना के मानदंडों को अपनाने के लिए जाना जाता था, लेकिन यह उर्दू आलोचना में देशी संवेदनाओं को फिट करने के लिए था ना कि तड़का लगाने के लिये था। फारुकी का उर्दू साहित्य में उपन्यासकार के रूप में बहुत बड़ा योगदान रहा और कुछ मायनों में असीम भी।

फारुकी के काम ने 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के भारत-मुस्लिम तरीके से प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने अल्पसंख्यकों के सामने आने वाली भविष्यवाणियों पर लगातार लिखा।

 



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