यह बनारस है, यहां की प्रत्येक चीज़ निराली है। यहां का नाला भी शाही और आम लंगड़ा होता है. आदमी..! उसकी मत पूछिए बात, यदि एक गमछा कमर में है और दूसरा कंधे पर तब तक कोई चिंता नहीं है. हमने देखा है अपना घर बेचकर उसका मलबा गधा से ढोने के लिए ठेका लेने के लिए पैरवी करते लोगों को भाई को पता नहीं और घर बेचकर भांग जमाए गली में कजरी गुनगुनाते हुए जाते मनई को कुछ तो है इस शहर की मिट्टी और जल में..! जो यहां आता है, वह यहीं का हो जाता है।
काशी में जो आ गया, वह यहीं का होकर रह जाता है। जाने का नाम ही नहीं लेता। घर नहीं है तो कोई बात नहीं, गंगाघाट पर आराम से लेटे रहेंगे. चना-चबेना और गंगजल… बस..! और क्या चाहिए. राम-राम भजिए और प्रभु का गीत गाते रहिए।
अब देखिए..! यहां के शाहीनाले की सफाई साल 2016 में पूरी होनी थी लेकिन किसी न किसी कारण से 12 बार समय सीमा बढ़ाई जा चुकी है. इस साल ही मई में जल निगम ने शासन को फरवरी, 2022 तक सफाई पूरी होने की बात कही थी। कार्यदायी संस्था ने सितम्बर, 21 तक काम पूरा होने का लिखित पत्र दिया था, अब दिसम्बर तक मियाद बढ़ा दी गई है।
इसका मतलब यह हुआ कि लोगों को इस साल भी मानसून में जलजमाव झेलना पड़ेगा। दूसरा कोई विकल्प नहीं है. शहर के छोटे-बड़े नालों की सफाई के बाद भी लोगों को राहत मिलने की संभावना कम है क्योंकि ज्यादातर नालों का पानी शाहीनाला के जरिए ही गंगा में जाता है। इसका सीधा मतलब यह है कि आज भी बनारस के लोग बरसात में जलनिकासी के लिए शाही नाले के भरोसे हैं। खबरों के मुताबिक अब तक शाहीनाला की 6.1 किमी सफाई हो चुकी है। 900 मीटर लम्बाई में सफाई बाकी है और इसकी सफाई में अभी दस महीना और लगेगा।
एनजीटी ने बनाई जांच कमेटी
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने गंगा निर्मलता संबंधी याचिका पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में गंगा की सहायक नदियों वरुणा और अस्सी के पुनरुद्धार के लिए एक समिति का गठन किया है. याचिका अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने दायर की थी। यह फैसला अशोधित मलजल और अनधिकृत निर्माण कार्यों का दूषित पानी प्रवाहित किए जाने के मामले में सुनवाई के बाद दौरान किया गया है।
इस समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के सदस्य और जिलाधिकारी वाराणसी शामिल हैं. समिति को 4 अगस्त से पहले अपनी रिपोर्ट फाइल करनी होगी क्योंकि 4 अगस्त को एनजीटी की अगली सुनवाई होगी।
उल्लेखनीय है कि गंगा में काई / शैवाल से पानी का रंग हरा हो जाने पर बनारस के जिलाधिकारी ने भी एक जांच समिति गठित की थी. जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गंगा में काई-शैवाल विंध्याचल, मिर्जापुर और चुनार से आ रहा है और वहां के अधिकारियों पर कार्रवाई की संस्तुति भी की थी। इस जांच समिति ने बनारस में गंगा में गिरने वाले मलजल पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
अब एनजीटी ने जांच कमेटी बनाई है. वैसे हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली में जमुना किनारे जब श्री श्री रविशंकर ने अपना धार्मिक आयोजन किया था, तब भी एनजीटी ने उन पर पांच करोड़ का जुर्माना लगाया था। उनके कार्यक्रम में प्रधानमंत्री समेत कई केंद्रीय मंत्री भी गए थे। धर्मगुरु रविशंकर पर लगाए गए जुर्माने का क्या हुआ ?
केंदीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीरीसीबी) की पहल पर शुक्रवार को भारतीय विषविग्यान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) ने भी गंगाजल का सैंपल गाजीपुर व कैथी के पास लिया है। अगले सप्ताह तक इसकी रिपोर्ट आने की संभावना है। अब गंगा में बढ़ते प्रदूषण की जांच के लिए कई कमेटियां सक्रिय हो गई हैं। देखते चलिए जांच में क्या आता है। उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह नमामि गंगे की टीम ने बनारस में दशाश्वमेध घाट के आसपास जर्मन तकनीक पर तैयार रासायनिक घोल का छिड़काव गंगा में शैवाल खत्म करने के लिए किया था। गंगा में प्रदूषण पहले से अधिक बढ़ा है, इसका प्रमाण है धारा में घाट किनारे काई व शैवाल का लगना, जिससे पानी का रंग हरा हो गया।