लखनऊ। ब्राह्मणों को रिझाने की जो मुहिम सूबे में चल रही है, अखिलेश यादव उसके अगुवा बनकर उभर रहे हैं। वे खुल कर बोल रहे हैं कि सपा ने ब्राह्मणों का हमेशा सम्मान किया है। उनके कहे पर संभवत ब्राह्मण समाज भरोसा भी कर रहा हैं।
उसकी वजह भी है। वे जहां है, वहां बहुत आशा से जुड़े थे। पर माना जा रहा है कि निराशा हाथ लगी है। अच्छा, जो संगठन, ब्राह्मणों के ठेकेदार बने हैं, वे सत्ता पक्ष की गोद में बैठ गए हैं। उनको एक अदद टिकट की दरकार है। इस कारण बिरादरी के हितों से समझौता कर रहे हैं। दूसरी ओर जिनकी गोद में जाकर बैठे हैं, वे बिरादरी को आडे हाथ ले रहे हैं।
कुछ दिन पहले की घटना है, एक साहब ने सोशल मीडिया पर डिप्टी कथा लिखी। उसमें ब्राह्मण समाज के दिग्गज नेता पर व्यंग्य बाण छोड़े गए। वह पढ़कर आश्चर्य हुआ। उसका कारण लिखने वाले व्यक्ति की पृष्ठभूमि है। वे जहां बैठे है, वहां से इस तरह की पोस्ट लिखने का मतलब है कि जमीन पर जो कहा जा रहा है, उसमें सच्चाई है। शायद इसी कारण ब्राह्मण विकल्प खोज रहे हैं।
कांग्रेस हमेशा से उनकी पहली पसंद रही है। लेकिन यह भी सही है कि वह अभी बेहद कमजोर है। उसमें सत्ता के खिलाफ संघर्ष करने का पूरा जज्बा है, मगर उसे बदलने के लिए सीट की जरूरत पड़ती है। उस लिहाज से कांग्रेस में अभी, पहले जैसा दमखम नहीं है। हां, प्रियंका उसमें लगी जरूर है। उनके कारण ही कांग्रेस सूबे में नजर भी आने लगी है। इसमें प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह लल्लू की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सही मायने में मुर्दा हो चूके, प्रदेश संगठन को, उन्होंने जिंदा कर दिया। मगर फिर भी अभी कांग्रेस को बहुत कुछ करना है। इस कारण ब्राह्मण, कांग्रेस की चर्चा तो जरूर कर रहे हैं, मगर उधर जाने से अभी परहेज कर रहे हैं।
कमोवेश यही रवैया बसपा को लेकर भी नजर आ रहा है। एक दौर में बसपा ब्राह्मणों का ठिहा हुआ करती थी। यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है। ब्राह्मणों को लेकर पार्टी ने कई सम्मेलन भी कराए थे। बड़ा समर्थन भी बसपा को मिला था। उस संपर्क अभियान में दिग्गज ब्राह्मण नेता शरीक भी हुए थे। लेकिन अंदरखाने चल रही खींचतान के कारण संपर्क अभियान नेपथ्य में चला गया। इस कारण ब्राह्मण टूटने लगे हैं। उनको लग रहा है कि बसपा उनकी आवाज बनने से परहेज कर रही है।
हालांकि पिछले साल सात विधान सभा सीटों पर हुए उप चुनाव में बसपा के ब्राह्मण नेता बिरादरी की समस्या को लेकर बहुत मुखर दिखे थे। सरकार को आड़े हाथ भी लिया था। इस कारण ब्राह्मणों में एक उम्मीद जगी थी। दिग्गज ब्राह्मण नेताओं का रेला बसपा की तरफ घूमा था। मगर नेतृत्व की निष्क्रियता ने ब्राह्मणों को आहत किया। उन्हें लगने लगा कि जिस सम्मान की लड़ाई, लड़ने में वे जुटे हैं, उसे बचाने के लिए कोई और ठीहा तलाशना होगा।
सपा उस तलाश का अंतिम पड़ाव बन रही है। खबरें यही बयान कर रही हैं। आए दिन ब्राह्मण नेता सपा का दामन थाम रहे हैं। खास कर पूरब की बात करें तो वहां ब्राह्मणों में नाराजगी बहुत ज्यादा है। यही वह इलाका है जिसे गोरक्ष प्रांत कहा जाता है और यही ब्राह्मणों का गढ़ भी है। इस गढ़ में विभिन्न कारणों से नाराजगी का ज्वार उठा है।
वह सत्ता पक्ष को बहा ले जाने के लिए आतुर है। अखिलेश यादव एक चतुर राजनेता की तरह इस बात को समझ रहे हैं। इसलिए उन्होंने ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए बाकायदा एक टीम बना दी है जो प्रदेश भर में दौड़ा कर रही है। उसका असर भी दिखने लगा है। बड़े-बड़े ब्राह्मण क्षत्रप सपा से जुड़ रहे हैं। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि यह सिलसिला कब तक चलता है क्योंकि सपा के भीतर भी सवर्णों को लेकर एक दुविधा तो है ही।