क्यूबा की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी ने कोरोना वायरस की दवा विकसित करने वाली तकनीक को प्राप्त कर लेने का दावा किया है। कंपनी का दावा है कि वह जल्द कोरोना वायरस को निष्प्रभावी बनाने वाली दवा का आविष्कार कर लेगा। इधर क्यूबा की साम्यवादी सरकार ने यह भी दावा किया है कि जैसे ही कोरोना वायरस को खत्म करने वाली दवा बनेगी हम बिना किसी रुकावट के विश्व मानवता के लिए इसे संक्रमित देशों में भेजना प्रारंभ कर सकते हैं। क्यूबाई सरकार के ठीक कुछ दिन पहले जर्मनी की सरकार ने दावा किया था कि संयुक्त राज्य अमेरिका उनके यहां विकसित किए जा रहे कोरोना वायरस वैक्सीन में लगे वैज्ञानिकों को प्रभावित करने की कोशिश की थी। हालांकि जर्मनी ने यह भी दावा किया है कि उनके वैज्ञानिक अमेरिका के झांसे में नहीं आए और बेहद तन्मयता के साथ कोरोना वायरस पर काम कर रहे हैं। इस खबर को विश्व की जानी-मानी समाचार एजेंसी रॉयटर ने प्रभुखता से स्थान दिया है।
जब कोरोना फैलने लगा था तो पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने दावा किया था कि अमेरिका के कुछ फैजी बुहान आए थे और सबसे पहले उन्हीं फौजियों में कोरोना के लक्षण पाए गए थे। चीन ने अमेरिका पर निशाना साधते हुए कहा था कि चीनी व्यापार को ठप करने के लिए अमेरीकियों ने कोरोना का षड्यंत्र किया है।
यदि सरसरी निगाह से देखें तो कोरोना वायरस वहीं ज्यादा फैला है, जहां अमेरिका के खिलाफ माहौल है। कुल मिलाकर किसी न किसी रूप से जो संयुक्त राज्य अमेरिका के दुश्मन हैं, उन देशों में कोरोना से संक्रमण ज्यादा है। अब अमेरिका के दुश्मनों पर थोड़ा ध्यान देने की जरूरत है। वैसे तो जब दुनिया में साम्यवादी ब्लॉक था तो क्यूबा से लेकर चीन तक अमेरिका के दुश्मन हुआ करते थे। उसमें साम्यवादी जनतांत्रिक रूस भी शामिल था। उन दिनों यूरोप के अधिकतर देश अमेरिकी लॉबी में थे। अमेरिका ने एक नाटो नामक संगठन बनाया था, जिसमें तुर्की तक के देशों को शामिल किया गया था।
अब स्थिति थोड़ी बदल गयी है। अमेरिका का यूरोप के भी अधिकतर देशों के साथ आर्थिक गतिरोध चल रहा है। इसमें इटली, फ्रांस और जर्मनी शामिल है। चूंकि युनाइटेड किंगडम को यूरोपिय संघ से तोड़ कर अमेरिका ने अपने पाले में कर लिया है इसलिए यूके से फिलहाल अमेरिका को खतरा कम है लेकिन इटली, फ्रांस और जर्मनी से अमेरिका को खतरा लगने लगा है। उसी प्रकार चीन से अमेरिका का व्यापारिक झगड़ा चल रहा है। यही नहीं आस्ट्रेलिया, जापान जैसे आर्थिक प्रगति वाले देशों से भी अमेरिका घबड़ाता है। हालांकि रूस में कोरोना के खतरे बहुत ज्यादा सामने नहीं आए हैं क्योंकि रूस इस मामले में बेहद सतर्क देश है और रूस की जलवायु कोरोना जैसे वायरस को सूट नहीं करता है। उसी प्रकार सीरिया आदि देशों में भी यह वायरस प्रभावशाली नहीं हो सकता है। फिर वहां पहले से ही युद्ध की स्थिति बनी हुई है। इसलिए इन देशों में इस बीमारी का खतरा फलहाल कम है लेकिन अन्य अमेरिकी दुश्मन देशों में इस वायरस का खतरा ज्यादा है।
इधर रॉयटर की खबर से यह साफ हो गया है कि अमेरिका कोरोना को लेकर बेहद व्यापारिक सोच रखता है। इस बीमारी से भी वह फायदा उठाना चाह रहा है। दूसरी बात यह है कि इन दिनों उपभोक्ता समानों के उत्पादन में चीन दुनिया का राजा बन गया है। चीन की अर्थव्यवस्था दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इसके कारण चीन दुनिया में अपना प्रभाव भी बढ़ाता जा रहा है। तीसरी बात यह है कि चीन, ईरान और रूस मिलकर एक नया ब्लॉक विकसित कर रहे हैं। इसी ब्लॉक में पाकिस्तान भी शामिल होता जा रहा है। दो-तीन मुस्लिम देशों को छोड़ सारे मध्य-पूर्व के देश ईरानी लॉबी में शामिल होते जा रहे हैं। तुर्की जैसा बेहद विश्वस्त देश भी अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ऐसे में अमेरिका को लग रहा है कि वह कहीं दुनिया के राजनीतिक और आर्थिक मंच से अलग-थलग न पड़ जाए। इसलिए अमेरिका लगातार अमेरिकी विराधी लॉबी के खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है। अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों पर रूस ने एक और हमला बोला है। वह कच्चे प्राकृतिक तेल के दाम में भारी कटौती की है। इसके कारण पेट्रोल पर आधारित सऊदी अरब की अर्थव्यस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। दुनिया में अमेरिका से सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाले देशों में सऊदी का नाम सबसे उपर है। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कहीं न कहीं धक्का लगा है। यही कारण है कि अमेरिकी रणनीतिकार घबड़ाए हुए हैं। कोरोना के कारण अमेरिका को परोक्ष रूप से फायदा होता दिख रहा है। रॉयटर की खबर, क्यूबाई एवं चीनी सरकार के दावे अमेरिकी षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहे हैं।
हालांकि इसी प्रकार का एक आरोप अमेरिका ने भी चीन पर लगाया है। अमेरिकी मीडिया का दावा है कि दुनिया को तबाह करने के लिए चीन ने खुद के लैब में कोरोना को विकसित किया है और अब वह अपने आप को सेफ कर लिया है, जबकि अमेरिका सहित दुनिया के देशों को परेशानी में डाल दिया है। दोनों देशों के दावों में कितनी सत्यता है यह तो गंभीर जांच का विषय है लेकिन फिलहाल इस वायरस के संक्रमण का प्रत्यक्ष और परोक्ष फायदा अमेरिका को ही होता दिख रहा है। इसलिए इस आशंका को बल मिलने लगा है कि संभव है कि अमेरिकी रणनीतिकार अपने विरोधियों को पस्त करेन के लिए वायरस वॉर का सहारा लिया हो।