
ब्रसेल्स. कोरोना महामारी से इस समय जहां पूरे यूरोप की जनता त्राही त्राही कर रही है वहीं मुश्किल हालातों का सामना करने के लिए गठित किए गए इन देशों का संगठन यूरोपीय संघ इन दिनों खुद को बचाने के संकट से जूझ रहा है। यूरोपीय संघ (ईयू) के वित्त मंत्रियों ने कोरोना
वायरस वैश्विक महामारी से बुरी तरह प्रभावित यूरोपीय देशों के लिए 550 अरब डॉलर के समझौते पर सहमति
जताई। हालांकि वित्तीय बाजारों से साझा तौर पर कर्ज लेने की इटली और फ्रांस की
मांग को इस समझौते में शामिल नहीं किया गया है।
जरूरतमंदों देशों को आर्थिक सुधार के लिए
प्रतिबद्धता जताने को तैयार करने के अहम सवाल पर नीदरलैंड का रुख नरम होने के बाद
यह कामयाबी हासिल की जा सकी।
द हेग ने दो दिन पहले समझौते को लेकर चल रही
वार्ता को यह कह कर बाधित किया था कि इटली या जो कई अन्य देश फिलहाल जरूरतमंद है
वे सुशासन के लक्ष्यों के अनुरूप योगदान दें। रोम ने स्वास्थ्य संकट के ऐसे समय
में इस मांग को चौंकाने वाला बताया था।
फ्रांस के वित्त मंत्री ब्रूनो ली मायरे ने
वार्ता के बाद ट्वीट किया कि यूरोप ने फैसला कर लिया है और
वह संकट की गंभीरता से निपटने के लिए तैयार है।
सभी बातों पर समझौता करते हुए अंतिम बयान में स्पष्ट किया गया कि यह समझौता
पूरी तरह कोविड-19 संकट से जुड़े खर्चों के लिए किया गया है
जिसने यूरोप में 65,000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। आपको बता दें कि इस समय कोरोना महामारी से सबसे अधिक यूरोप जूझ रहा है और इस संकट के वक्त बदहाल होती आर्थिक स्थिति को संभालने और वेलआउट पैकेज को लेकर यूरोपीय यूनीयन के देशों में मतभेद साफ तौर पर उसकर सामने आया है। कुछ विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि कभी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चुनौति देने के लिए तैयार यह संगठन कोरोना महामारी के कारण अपने सबसे बुरे वक्त से गुजर रहा है और संगठन का अस्थित्व पर ही सवाल उठने लगे हैं।