वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता: ‘चंद्रमा की सतह पर मिला पानी’

वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने पहली बार सूर्य से प्रकाशित चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी की पुष्टि की है। यह खोज इस ओर इशारा करती है कि चंद्रमा की सतह पर हर जगह पानी के अणु हो सकते हैं और ये केवल ठंडी तथा छायादार जगहों पर ही नहीं होते जैसा कि पहले समझा जाता था।

अमेरिका के हवाई विश्वविद्यालय समेत अन्य संस्थानों के अनुसंधानकर्ताओं ने नासा की स्ट्रेटोस्फीयरिक ऑब्जर्वेटरी फॉर इन्फ्रारेड एस्ट्रोनोमी (सोफिया) के डेटा का इस्तेमाल करते हुए क्लेवियस क्रेटर में पानी के अणुओं (एच2ओ) का पता लगाया है। यह क्रेटर चंद्रमा पर स्थित सबसे बड़े गड्ढों में से एक है और उसके दक्षिणी गोलार्द्ध पर स्थित है। इसे पृथ्वी से देखा जा सकता है।

इससे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-1 मिशन के दौरान चंद्रमा की सतह पर किये गये अध्ययन समेत अन्य अध्ययनों में हाइड्रोजन के एक प्रकार का पता लगाया गया था, वहीं नासा के वैज्ञानिकों का कहना था कि पानी और उसके करीबी रासायनिक संबंधी हाइड्रॉक्सिल (ओएच) के बीच फर्क स्पष्ट नहीं हो पाया है।

पत्रिका ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी’ में प्रकाशित वर्तमान अध्ययन का ब्योरा से पता चलता है कि क्लेवियस क्रेटर क्षेत्र में 100 से 412 भाग प्रति दस लाख की सांद्रता वाला पानी है जो चंद्रमा की सतह पर फैली धूल के एक घन मीटर आयतन वाले क्षेत्र में है और करीब-करीब 12 औंस की पानी की एक बोतल के बराबर है।

अनुसंधानकर्ताओं ने तुलना के तौर पर कहा है कि सोफिया ने चंद्रमा की सतह पर पानी की जितनी मात्रा का पता लगाया है, सहारा रेगिस्तान में उससे सौ गुना ज्यादा पानी है।

हवाई यूनिवर्सिटी की प्रमुख अध्ययनकर्ता केसी होनीबॉल ने कहा, ‘‘सोफिया के अध्ययन से पहले हम जातने थे कि एक प्रकार का हाइड्रेशन (जलयोजन) होता है। लेकिन हम यह नहीं जानते थे कि कितना होता है और उसमें उस पानी के कितने अणु हैं जो हम रोजाना पीते हैं। या फिर साफ-सफाई में इस्तेमाल होने जैसा पानी ज्यादा है।’’

उन्होंने कहा कि पानी की बहुत कम मात्रा का पता चला है लेकिन यह खोज नये प्रश्न उत्पन्न करती है कि पानी का सृजन कैसे हुआ और यह बिना हवा वाली चंद्रमा की सतह पर कैसे रहता है।

 

 

First Published on: October 27, 2020 4:24 PM
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