
यरुशलम। इजराइल का उच्चतम न्यायालय देश को यहूदी राष्ट्र के तौर पर मान्यता देने वाले विवादित कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई करेगा। विपक्ष का आरोप है कि यह कानून अल्पसंख्यकों से भेदभाव करता है।
आलोचकों का कहना है कि इस कानून से अरब अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा और कम होगा। अरब अल्संख्यक देश की आबादी का करीब 20 प्रतिशत हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानून इजराइल को यहूदी राष्ट्र के तौर पर स्थापित कर देगा।
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा मई- 2018 में लाए गए इस कानून का अमेरिका में रह रहे कई बड़े यहूदी संगठन भी कर रहे हैं और अरब अधिकार समूहों और अन्य नागरिक समाज संगठनों के साथ उन्होंने भी इस कानून के खिलाफ इजराइल के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर इजराइल के उच्चतम न्यायालय से कानून को निरस्त करने का अनुरोध किया है।
इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 न्यायाधीशों का पैनल सुनवाई करेगा।
याचिकाकर्ताओं में से एक अरब अल्पसंख्यक अधिकार समूह के संस्थापक हसन जाबरीन ने कहा, ‘‘इजराइल के कानूनी इतिहास में यह पहली बार है जब उच्चतम न्यायालय इजराइल में फलस्तीनी अल्पसंख्यकों के वैधानिक दर्जे पर सुनवाई करेगा।’’
कानून को जुलाई 2018 में इजराइल की संसद नेसेट से मंजूरी मिली थी।
यह कानून इजराइल को ‘‘यहूदी राष्ट्र’’ के तौर पर मान्यता देता है। कानून में अरबी भाषा का दर्जा आधिकारिक राजकीय दर्जा से बाहर निकाल दिया गया है और अरबी को विशेषा भाषा का दर्जा देकर केवल इजराइल में बोली जाने वाली बोली का र्दजा दिया गया है।
यह कानून मुस्लिमों को दूसरे दर्जा का नागिरक बना देगा
इस कानून के बनने के बाद इजराइली मुस्लिम नेताओं का कहना है कि इस प्रकार का कानून देश की आबादी के 20 प्रतिशत मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना देगा।
इस कानून के बनने के बाद इजराइल नेसेट (संसद) में विपक्षी गठबंधन के अरब अल्पसंख्यक नेता अयमान ओहेद ने कहा कि यह कानून यहूदी अधिनायकवादी कानून है। इस कानून के बनने हम देश में हमेशा दूसरे दर्जे के नागरिक ही बने रहेगें।