जिनेवा। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) ने मंगलवार को श्रीलंका के मानवाधिकार रिकॉर्ड के खिलाफ एक कड़ा प्रस्ताव पारित किया, जो राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के लिए एक झटका है जिन्होंने इस प्रस्ताव पर मतदान से पहले अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के लिए काफी प्रयास किए थे। यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र निकाय को लिट्टे के खिलाफ गृह युद्ध में देश द्वारा किये गए अपराधों के संबंध में साक्ष्य एकत्रित करने को अधिकृत करता है।
यूएनएचआरसी ने ‘प्रमोशन ऑफ रीकंसिलिएशन अकाउंटैबिलिटी एंड ह्यूमन राइट्स इन श्रीलंका’ शीर्षक वाला प्रस्ताव पारित किया। यहां यूएनएचआरसी के 46वें सत्र के दौरान प्रस्ताव के समर्थन में 47 में से 22 सदस्यों ने मतदान किया जबकि ग्यारह सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया।
भारत और जापान उन 14 देशों में शामिल था, जो मतदान में शामिल नहीं हुए। पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और रूस सहित 11 देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।
यहां श्रीलंका के राजदूत एमसीए चंद्रप्रमा ने मसौदा प्रस्ताव को ‘‘अवांछित, अनुचित और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रासंगिक अनुच्छेदों का उल्लंघन बताया।’’
उन्होंने प्रस्ताव को ‘‘विभाजनकारी’’ बताते हुए खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इससे श्रीलंकाई समाज में ध्रुवीकरण होगा और आर्थिक विकास, शांति और सौहार्द प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा।
राष्ट्रपति राजपक्षे सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय समर्थन के प्रयास करने के बावजूद प्रस्ताव पारित किया गया। प्रस्ताव पर मतदान से पहले गोटबाया और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने विश्व के कई मुस्लिम नेताओं को फोन किये थे।
मतदान से दूर रहने वाले भारत ने कहा कि श्रीलंका में मानवाधिकारों के सवाल पर उसका दृष्टिकोण दो मूलभूत विचारों द्वारा निर्देशित है।
जिनेवा में भारत के स्थायी मिशन के प्रथम सचिव पवन कुमार बधे ने एक बयान में कहा, ‘‘एक श्रीलंका के तमिलों को समानता, न्याय, सम्मान और शांति के लिए हमारा समर्थन। दूसरा श्रीलंका की एकता, स्थिरता और क्षेत्रीय अखंडता सुनिश्चित करना।’’
बधे ने कहा, ‘‘हमने हमेशा माना है कि ये दोनों लक्ष्य पारस्परिक रूप से सहायक हैं और श्रीलंका की प्रगति दोनों उद्देश्यों को संबोधित करते हुए अच्छी से सुनिश्चचित हो सकती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम आग्रह करेंगे कि श्रीलंका सरकार सुलह प्रक्रिया को आगे बढ़ाये, तमिल समुदाय की आकांक्षाओं को संबोधित करे और यह सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ रचनात्मक रूप से संलग्न रहना जारी रखे कि उसके सभी नागरिकों की मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की पूरी तरह से रक्षा हो।’’
उन्होंने कहा कि भारत श्रीलंका सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के इस आह्वान का समर्थन करता है कि वह राजनीतिक प्राधिकार के हस्तांतरण पर अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करे जिसमें प्रांतीय परिषदों के लिए चुनाव जल्दी कराना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि सभी प्रांतीय परिषदें श्रीलंका के संविधान के 13 वें संशोधन के अनुसार प्रभावी ढंग से संचालित हो सकें।
13वें संशोधन में तमिल समुदाय को प्राधिकार के हस्तांतरण का प्रावधान है। भारत 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद लाया गया 13वां संशोधन लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है।
सत्तारूढ़ श्रीलंका पीपुल्स पार्टी के बहुसंख्यक सिंहली कट्टरपंथी 1987 में स्थापित द्वीप की प्रांतीय परिषद प्रणाली को समाप्त करने की वकालत करते रहे हैं।
वहीं बधे ने कहा कि भारत का मानना है कि मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (ओएचसीएचआर) के ह्यूमन आफिस का कार्य संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रासंगिक प्रस्तावों द्वारा दिए गए अधिदेश (मेंडेट) के अनुरूप होना चाहिए।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जनवरी में श्रीलंका की अपनी यात्रा के दौरान श्रीलंका की सुलह प्रक्रिया और एक ‘‘समावेशी राजनीतिक दृष्टिकोण’’ के समर्थन को रेखांकित किया था जो जातीय सद्भाव को प्रोत्साहित करता है।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार निकाय में श्रीलंका के खिलाफ इससे पहले भी तीन बार प्रस्ताव पारित हुए हैं जब गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई और वर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे 2012 और 2014 के बीच देश के राष्ट्रपति थे।
गोटबाया राजपक्षे सरकार पूर्ववर्ती सरकार द्वारा पहले पेश किये गए प्रस्ताव के सह-प्रायोजन से आधिकारिक रूप से अलग हो गई थी। उसमें मई 2009 में समाप्त हुए लगभग तीन दशक लंबे गृहयुद्ध के अंतिम चरण के दौरान सरकारी सैनिकों और लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे), दोनों के कथित युद्ध अपराधों की अंतरराष्ट्रीय जांच का आह्वान किया गया था।
प्रस्ताव में ‘‘(श्रीलंका) सरकार से आह्ववान किया गया है कि वह युद्ध के दौरान कथित मानवाधिकारों के उल्लंघनों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के गंभीर उल्लंघनों से संबंधित सभी कथित अपराधों की पूरी तरह से और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करे और यदि जरूरत हो तो मुकदमा चलाए।’’
प्रस्ताव में ओएचसीएचआर से अनुरोध किया गया है कि वह श्रीलंका में मानवाधिकार पर स्थिति निगरानी बढाये तथा मानवाधिकार परिषद के 48वें सत्र में मौखिक तौर पर तथा 49वें सत्र में लिखित तौर पर अद्यतन जानकारी मुहैया कराये।
प्रस्ताव जिनेवा में यूएनएचआरसी के 46 वें सत्र में श्रीलंका पर कोर समूह ने पेश किया, जिसमें ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, मलावी, मोंटेनेग्रो और नॉर्थ मकदूनिया शामिल हैं।