जयंती विशेष : भगत सिंह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं, एक विचार है जो हमेशा रहेंगे…

बबली कुमारी बबली कुमारी
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“इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से,
अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ तो इंक़लाब लिखा जाता है।”

इन पंक्तियों को लिखते हैं भगत सिंह उनके इन पंक्तियों से ही पता चलता है की किस कदर देश पर मर मिटने का जज़्बा उनमें था। आज के दिन हिन्दुस्तान की इस जमीन को आज़ाद करने के लिए चेहरे पर बिना किसी सिकंन के हंसते -हंसते फांसी को गले लगाने वाले उस परवाने को याद करने का दिन है जिसके ज़ज्बातों से उसकी कलम इस कदर वाकिफ थी कि उसने जब भी इश्क़ लिखना चाहा तो कलम ने इंकलाब लिखा। आज का दिन बेहद ख़ास है। साल के नौवें महीने के 28 वें दिन को इस धरती को वह लाल मिला जिसने अपने प्राण न्यौछावर कर भारत माता को अंग्रेज़ों से आज़ादी दिलाई। आज के दिन यानि 28 सितंबर को ही देश की आजादी के लिए हंसते -हंसते अपना सब कुर्बान करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह इस मिट्टी पर पैदा हुए।

आज के दिन 23 साल के छोटी सी उम्र में देश के लिए शहीद होने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जन्मदिन के तौर पर इतिहास में दर्ज है। 1907 में 28 सितंबर को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) उनका जन्म हुआ था। पराधीन भारत में पैदा हुए भगत सिंह ने बचपन में ही देश को गुलामी से आज़ाद कराने का ख़्वाब देखा। छोटी उम्र से ही उसके लिए संघर्ष किया और फिर देश में स्थापित ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाकर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया। वह शहीद हो गए लेकिन अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक युवाओं को प्रभावित करता है। ‘मेरी महबूबा तो आजादी है’, लड़कपन की उम्र में यह कहने का साहस और संवेदनशीलता रखते थे शहीद भगत सिंह।

भगत सिंह ने मार्च,1926 में नौजवान भारत सभा की नींव रखी। 17 दिसंबर, 1928 को लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने साथी राजगुरु, सुखदेव और चंद्रशेखर के साथ मिलकर अंग्रेज पुलिस अधिकारी सैंडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। 8 अप्रैल,1929 को उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली स्थित असेंबली हाल में दो बम धमाके किए। सरकार विरोधी पर्चे बांटे और इंकलाब के नारे लगाए। मियांवाली जेल (पंजाब, पाकिस्तान) में कैदियों के साथ हो रहे भेदभाव का विरोध किया और 116 दिन भूख हड़ताल की।

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह पर अमिट छाप छोड़ा। भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और 1920 में महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन में शामिल हो गए। इस आंदोलन में गांधी जी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर रहे थे। भगत सिंह ने लगभग दो वर्ष जेल में बिताया।भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक, लेखक और पत्रकार भी थे। वे हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, उर्दू, बंगला और आयरिश भाषा के बड़े विद्वान थे। जेल में रहते हुए भी किताबों के प्रति उनका लगाव बरकरार था। वे जेल में लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार अपने साथियों तक पहुंचाते रहे। उनके लिखे गए लेख और परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों का आइना हैं।

भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के भी सदस्य थे। लेकिन जब 1921 में हुए चौरा-चौरा हत्याकांड के बाद गांधीजी ने हिंसा में शामिल सत्याग्रहियों का साथ नहीं दिया। इस घटना के बाद भगत सिंह का गांधी जी से मतभेद हो गया। इसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में बने गदर दल में शामिल हो गए। 9 अगस्त, 1925 को सरकारी खजाने को लूटने की घटना में भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई थी। यह घटना इतिहास में काकोरी कांड नाम से मशहू है। इसमें उनके साथ रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद जैसे कई क्रांतिकारी शामिल थे। लाहौर षड़यंत्र केस में उनको राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी की सजा हुई। 24 मार्च, 1931 को फांसी देने की तारीख तय हुई। लेकिन तय तारीख से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को तीनों को शाम साढ़े सात बजे फांसी दे दी गई। भगत सिंह के जयंती के मौके पर पीएम मोदी के साथ कई नेताओं ने भगत सिंह को याद किया।

पीएम मोदी ने शहीद भगत सिंह को याद करते हुए लिखा, “शहीद भगत सिंह का नाम वीरता और संघर्ष का पर्यायवाची है। उनकी साहसिक कार्रवाइयां आज भी लाखों लोगों को प्रेरित कर रही हैं। वह युवाओं के दिलों में हमेशा सबसे लोकप्रिय व्यक्ति रहेंगे। मैं भारत मां के इस महान सपूत को उसके जन्मदिन के मौके पर नमन करता हूं।”

गृह मंत्री अमित शाह ने भी अपने ट्वीट में लिखा कि अपने परिवर्तनकारी विचारों व अद्वितीय त्याग से स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने वाले और देश के युवाओं में स्वाधीनता के संकल्प को जागृत करने वाले शहीद भगत सिंह जी के चरणों में कोटि-कोटि वंदन. भगत सिंह जी युगों-युगों तक हम सभी देशवासियों के प्रेरणा के अक्षुण स्त्रोत रहेंगे।

भगत सिंह शहीद हो गए लेकिन अपने पीछे आज भी क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक सभी युवाओं को हमेशा प्रभावित करता है। आज भी भगत सिंह की बातें देश के युवाओं के लिए उतनी ही प्रासंगिक है और वह किसी प्रतीक की तरह आज भी हमारे समक्ष विधमान है।