हाईकोर्ट का राज्य सरकार को निर्देश, पार्क में कूड़ा फेंकना कानूनन अपराध, लगाएं अर्थदंड


कोर्ट ने कानून एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि पार्कों, खेल मैदानों के अतिक्रमण पुलिस बल से हटाए जाएं और उनका रखरखाव किया जाए। कोर्ट ने कहा कि पार्क में कूड़ा फेंकना कानूनन अपराध है। इसके लिए अर्थदंड लगाया जा सकता है और एक माह के कारावास की सजा दी जा सकती है।


जेपी सिंह
उत्तर प्रदेश Updated On :

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को प्रदेश के सभी पार्कों, खेल मैदानों व खुली जमीन से अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया है। साथ ही कोर्ट ने सभी पार्कों का स्थानीय निकायों के माध्यम से ठीक से रखरखाव कराने का निर्देश भी दिया ताकि आम लोग पार्कों का उपयोग कर सकें। कोर्ट ने कहा कि पार्कों में किसी को भी कूड़ा डालने या एकत्र करने या अन्य उपयोग में लाने की अनुमति न दी जाए।

कोर्ट ने प्रदेश शासन के मुख्य सचिव से सभी पार्कों, खेल मैदानों का सही तरीके से रखरखाव करने के लिए सक्षम प्राधिकारियों को दिशा निर्देश जारी करने को कहा है। साथ ही तीन माह में आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट मांगी है। यह आदेश न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय एवं न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने गाजियाबाद के राम भजन सिंह की याचिका पर दिया है।

कोर्ट ने कानून एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा कि पार्कों, खेल मैदानों के अतिक्रमण पुलिस बल से हटाए जाएं और उनका रखरखाव किया जाए। कोर्ट ने कहा कि पार्क में कूड़ा फेंकना कानूनन अपराध है। इसके लिए अर्थदंड लगाया जा सकता है और एक माह के कारावास की सजा दी जा सकती है।

याचिका के अनुसार गाजियाबाद में विजय नगर के सेक्टर 11 स्थित याची के आवास के सामने नगर निगम के पार्क का अतिक्रमण कर लिया गया है और उसका उपयोग वाहन खड़ा करने के लिए किया जा रहा है जबकि डीएम ने कहा कि पार्क के स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि निगम या प्राधिकरण पार्क के रखरखाव करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य हैं। वे अपने इस वैधानिक दायित्व से बच नहीं सकते।

स्थानीय निकायों की वैधानिक जिम्मेदारी है कि पार्कों, खेल मैदानों की देखभाल करे। कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण राज्य का वैधानिक दायित्व है। रोजगार और राजस्व पर लोक स्वास्थ्य, जीवन एवं पर्यावरण को वरीयता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि देश के स्वस्थ पर्यावरण के लिए यह जरूरी भी है।

संविधान का अनुच्छेद-21 प्रदूषणमुक्त जीवन का अधिकार देता है। विकास के नाम पर उद्योग लगाकर इस अधिकार में कटौती नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 51-ए नागरिकों के कर्तव्य बताता है।



Related