अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चाबुक चलाने में वाम और दक्षिणपंथी एकमत


केरल सरकार में शामिल सीपीआई ने भी इसका विरोध किया। दरअसल केरल सरकार का यह कदम वाम पंथ विरोधी दलों के आरोपों को मजबूत करता है, जिसमें वामपंथियों को आवाज दबाने में माहिर बताया जाता है। भाजपा जैसे दल चीन का उदाहरण पेश करते है जहां प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

क्या मान लिया जाए कि कुछ मुद्दों पर भारतीय वाम दलों और दक्षिणपंथी दलों के बीच वैचारिक सहमति है? खासकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मसले पर। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दमन को लेकर पिछले कुछ समय में विभिन्न सरकारों दवारा उठाए गए कदम साफ संकेत देते है कि राजनीतिक दलों के चरित्र और सोच में कोई खास अंतर नहीं है। स्वस्थ लोकतंत्र में विरोध के स्वर को दबाने में राजनीतिक दल एकजुट है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर कोई राजनीतिक दल तभी तक रहता है, जबतक विपक्ष में हो।

हाल ही में केरल की सतारूढ वाम मोर्चा सरकार ने केरल पुलिस अधिनियम में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन कर अभिव्यवक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने की कोशिश की। हालांकि भारी विरोध के बाद सरकार पीछे हट गई। पर अध्यादेश ने वाम मोर्चा की सरकार की कलई खोल दी है। पिनराई विजयन की सरकार के संशोधन अध्यादेश में मानहानि, धमकाने और अपमान से युक्त सामाग्री के प्रकाशन या भेजे जाने पर ही तीन साल तक की सजा का प्रावधान किया गया था।

केरल सरकार का अध्यादेश प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए था। दिलचस्प बात यह है कि यही वामपंथी दल नरेंद्र मोदी की सरकार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का आऱोप लगाते रहे है। भाजपा शासित राज्यों में पत्रकारों पर देशद्रोह के मामलें दर्ज होते रहे है और वाम दल मोदी सरकार की आलोचना करते रहे है।

केरल की वाममोर्चा सरकार की ताजा पहल ने दक्षिणपंथी भाजपा को बोलने का मौका दिया है। भाजपा को यह बताने का मौका मिलेगा का भाजपा को बेवजह बदनाम किया जाता है। वामपंथी भाजपा से कहीं आगे है। केरल की पिनारई विजयन सरकार और राजस्थान में कभी शासन में रही वसुंधरा राजे सरकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सोच को लेकर कोई खास अंतर नहीं है।

केरल की विजयन सरकार ने केरल पुलिस अधिनियम में संशोधन किया था। इस संशोधन सूचना प्रौधोगिकी अधिनियम की दोषपूर्ण धारा 66 ए का विकल्प था। संशोधन के मुताबिक आनलाइन अपमानजनक टिप्पणी अपराध मानी गई, जिसमें किसी व्वक्ति को धमकाने, अपमान करने, बदनाम करने की कोशिश की गई। संचार के किसी भी माध्यम से इस तरह के समाग्री का उत्पादन, प्रकाशन, या प्रचार प्रसार करने वालों को 3 साल तक की सजा या 10 हजार रुपये तक जुर्माना देने का प्रावधान अध्यादेश में किया गया था।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए, प्रेस की आवाज को दबाने के लिए कुछ इसी तरह का अध्यादेश सितंबर 2017 में राजस्थान की तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार लायी थी। वसुंधरा सरकार के अध्यादेश में लोकसेवकों के खिलाफ डयूटी के दौरान की गई कार्रवाई को लेकर सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जांच से संरक्षण दिया गया था। इस अध्यादेश में बिना अनुमति के इस तरह के मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक का प्रावधान अध्यादेश में था। प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोटते हुए अध्यादेश में अनुमति के बिना रिपोर्टिंग पर 2 साल की सजा का प्रावधान था।

वंसुधरा राजे सरकार का काला कानून का जोरदार विरोध हुआ। सरकार बैकफुट पर आ गई। मामले को विधानसभा की प्रवर समिति को सौंप दिया गया। लेकिन अब वसुंधरा राजे का अनुसरण उनके वैचारिक रूप से उनके विरोधी वामपंथी पिनारई विजयन की सरकार ने की है। विजयन से शायद उनकी पार्टी के लोग भी सहमत नहीं थे।

केरल सरकार में शामिल सीपीआई ने भी इसका विरोध किया। दरअसल केरल सरकार का यह कदम वाम पंथ विरोधी दलों के आरोपों को मजबूत करता है, जिसमें वामपंथियों को आवाज दबाने में माहिर बताया जाता है। भाजपा जैसे दल चीन का उदाहरण पेश करते है जहां प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है। जहां ताकतवर शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी में विरोधियों का दमन कर रहे है, भ्रष्टाचार उन्मूलन के नाम पर विरोधियों को खत्म कर रहे है।

केरल पुलिस अधिनियम संशोधन अध्यादेश को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने तुरंत मंजूरी दे दी। उन्होंने वाम मोर्चा सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा। आरिफ मोहम्मद खान की मंजूरी की चर्चा बहुत जरूरी है। आरिफ मोहम्मद खान प्रगतिशील मुस्लिम है, जिन्होंने इस्लामिक कटटरपंथियों का लगातार विरोध किया। मुस्लिम महिलाओं के हकों की लड़ाई वे आगे रहे। फिर उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करने वाले कानून को मंजूरी कैसे दे दी ? कम से कम इस कानून का अध्ययन तो खान करवा ही सकते थे?

दिलचस्प बात यह है कि अपनी प्रगतिशीलता के कारण खान भाजपा की पसंद है। फिर एकाएक भाजपा विरोधी वाम मोर्चा सरकार के अध्यादेश को उन्होंने कैसे मंजूरी दी? क्या खान इस कानून को मंजूरी देकर वाम दलों को फंसा गए, जो लगातार भाजपा पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन को लेकर हमलावर है। क्या खान ने अध्यादेश की मंजूरी देकर वामपंथी दलों के मुंह को बंद करवाने की कोशिश की? केरल निवासी पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की उतर प्रदेश में हुई गिरफ्तारी को लेकर उतर प्रदेश की भाजपा सरकार विरोधियों के निशाने पर है। पत्रकार की गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन बताया जा रहा है।

दिलचस्प स्थिति यह भी है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर केंद्र की भाजपा सरकार दवारा दो राज्यों में लगाए गए राज्यपालों का स्टैंड अलग-अलग है। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पत्रकार अर्ऩव गोस्वामी की गिरफ्तारी के मामले में काफी संवेदनशील नजर आए। गोस्वामी की गिरफ्तारी को उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना था। महाराष्ट्र सरकार से सीधी बात की थी। वहीं केरल में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने राज्य सरकार के उस अध्यादेश को मंजूरी दे दी जो प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला था।