रविवार की कविता : गुमनाम प्रेमिकायें…


कवयित्री बीनू का जन्म वाराणसी में हुआ तो शिक्षा-दीक्षा पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय में। इलाहाबाद से एमए., एलएल. बी. किया। पढ़ने-लिखने के अलावा रंगकर्म और देशाटन में रुचि। वर्तमान में दिल्ली में आयकर विभाग में संयुक्त आयकर आयुक्त पद पर कार्यरत।


भाषा भाषा
साहित्य Updated On :

आज वेलेंटाइन डे है। दुनिया भर में प्रेम का यह पर्व बड़े उत्साह से मनाया जा रहा है। प्रेम का यह त्योहार प्रेमी और प्रेमिका मिलकर मनाते हैं। एक दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं। लेकिन अब तक के साहित्य और इतिहास में ‘प्रेमिकाओं’ को वो स्थान नहीं मिला है जिसकी वह हकदार हैं।

प्रेमिकाओं को प्रेम की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, गत-विगत इतिहास को पढ़ने-समझने से तो यही महसूस होता है। प्रेम में प्रेमिकाओं का अस्तित्व या तो खत्म हो जाता है या बहुत सी प्रेमिकाएं गुमनामी के अंधेरे में गुम हो जाती हैं। ऐसी ही गुमनाम प्रेमिकाओं पर पढ़िए कवयित्री बीनू की कविता :

कहाँ ढूँढ़ी जानी चाहिए?
महाद्वीपों के किस किनारे पर?
पूर्वी या पश्चिमी?
क्योंकि अलग अलग हैं दोनों
एक किनारे हैं गर्म हवायें तो दूसरी ओर ठंडी
एक तरफ़ हैं ज्वालामुखी
तो दूसरी तरफ़ बर्फ़ ते पहाड़

किन जंगलों, पहाड़ों, तराई
घाटी, खाई में?

गुम हुई प्रेमिकाएँ
कहीं नहीं छोड़ती कोई चिन्ह
किताबों के वर्क पर
न हाशिये पर
न शब्दों में
न पंक्तियों के बीच में
पड़ी ख़ाली जगहों में।

किसी ने नहीं देखी
इनकी सूरत
न सीरत
न चेहरा
न आवाज़
कैसे सम्भव हुआ ये?
जबकि दूसरी पृथ्वी नहीं है
जहाँ बस जाने का अंदेशा हो !

वो अपने साथ
क्या क्या लेकर विलुप्त हो गयीं?
किस के “महापाप” !
किस का “सम्मान” !

आँगन की हरियाली,
धूप, हवा, पानी
सब सब सब
मौजूद है ….
बेवजूद के !!

इसके बावजूद
हरसिंगार
अक्टूबर में ख़ामोश
झरता हुआ
सितम्बर को याद करता हुआ!
बीतत है
घड़ी की सुइयों
और चाँद-सूरज को
निहारते!

पेड़
हाँ पेड़ों की
जड़, पत्ती, तने
हरियाली छांव
में
शायद
प्रेमिकायें यहाँ छुप गयीं थीं !!

शाम की कुनमुनाई ठंडी हथेली में,
जलते आँसुओं को थामें पुतलियों के पीछे,
सुबह के बाँहों में …ठंडी ख़ामोश !!

उष्मा, आँसुओं में भी होती है
ये सिर्फ़ प्रेमिका महसूस करती थी
अब कोई नहीं जानेगा ये रहस्य,
प्रेमिका एक विलुप्त प्रजाति है!

जो अब क़िस्से
में सिमटी है
वक्रोक्ति
व्यंजना
में

कभी राग
जौनपुरी
कभी
दरबारी
कभी बनारस
कभी आगरा
घरानों में
दालमंडी से ताज तक
कभी बुलंद
कभी ग़ाज़ी

कभी तलवार के मुक़ाबिल
कभी रस्मों से हारी
कभी हाकिम से

कहाँ चली गयीं
कोई नहीं रोक पाया
अपना नहीं पाया ….
बस खुद को ख़ाली किया
और पलट गये
जैसे डस कर
विष छोड़कर
साँप पलट जाते हैं।

गुम हो गयीं प्रेमिकायें
इतिहास को पन्नों से
भूगोल के नक़्शे से।
गणित के प्रमेयों में
कभी समा न पायी
दर्शन की आस्था
और तर्क में नहीं जी पाई।

प्रमिकायें विलुप्त हो गयीं
अब पत्नी होगी
माँ, बेटी, बहन
सब होंगी
बस प्रेमिका नहीं होगी !

एक आँसू भर का दर्द है …।
बस एक आँसू
भाप बन के उड़ जायेगा
पत्थर नहीं बना
ईंट नहीं बना
फूल भी नहीं
नदी, सागर, झरना
तालाब, झील
कुछ भी नहीं था
उसके हिस्से

बस
प्यास थी

रास्ता, मंज़िल,
मील का पत्थर
साथी, हमसफ़र
कोई नहीं था

मौत के लम्हें में
कराहती टूटी आवाज़ में
कोई नाम पुकारे …
किसी आवाज़ में
अपने नाम की पुकार सुने
एक तलाश थी बिनावजह तो नहीं
प्यार ही एक वजह थी

ख़ैर ..!
अब किसी को नहीं तलाश
प्रेमिका की।

तलाश उसकी जो,
रसोई सम्हले
कपड़े सम्हले
बिस्तर सम्हले

प्रेमिका कुछ भी तो नहीं सम्हाल सकती थी
न बाप का नाम
न जाति
न धर्म
न भवदी
वो भांवर में नहीं पड़ी थी
भँवर में डूबो देती
पुरखों का नाम, सम्मान
खेत खलिहान
सब से बेदख़ली
कैसे …..कैसे …..?

नहीं …नहीं चाहिए,
प्रेमिका,
मेरा बेटा राजा नहीं बन सकता
मेरी पत्नी का बेटा ही राजा बन सकता है
इस राजत्व का उत्तराधिकार
मुझे दे जाना है
अपनी पत्नी के बेटे को

प्रेमिका दूर तक के रास्ते का सौदा नहीं
भटकते, बोझिल, उदास पलों में
जब पत्नी से लड़ाई हो
या कि वो पाल रही हो
कोख में मेरी संतान
मुझे प्रेमिका
बहुत अच्छी लगती है
उतनी देर
मैं पाँव भी छू लेता हूँ उसके
लौटते हुए इसके दर से
जैसे राजा रवि वर्मा ने
छू लिये थे पाँव
उस पतित के
जिसे उन्होंने
सरस्वती -लक्ष्मी बना कर
आकार रंग भरे थे
उन चित्रों में

प्रेमिका
वैसे तो कुछ भी नहीं
वैसे
किसी भी तरह
कुछ नहीं

इसलिए विलुप्त हो गयीं
प्रेमिकायें
प्रेमिका तभी जी सकती है
जब उसे
प्रेम मिले
सच्चा, सपनों से भरा
साहस से भरा
निर्णय से भरा
स्वीकृति से परिपूर्ण

प्रेमिका सिंदूर नहीं
एकनिष्ठ प्रेम चाहती थी
उसे प्रेम “ही” वाला चाहिए था
“भी” वाला नहीं

बहुत खुला
ख़तरनाक
खेल में तन्हा है प्रेम
बहुत आकर्षित करता है
बहुत ही ज़्यादा

भूल भी सकता है
घर, पत्नी, बच्चे
माँ बहन सब
मगर …
भूली राह पर
लौटना ही होता है
क्योंकि….प्रेमिका घर नहीं बसाती,
दिल दिमाग बसाती है,
कायनात में बिखर जाती है।

ये नहीं समझ पाया
अभागे कि, प्रेम हो
तो प्रेमिका घर भी बसा सकती है।
वो दुनिया के प्रपंच के लिए
घर नहीं बसाती।
फिर भले ही विलुप्त हो जाए।



Related