फिल्मी दुनिया में में शून्य से शिखर तक पहुंचने के कई किस्से हैं …बिल्कुल फिल्मी अंदाज में ऐसा ही कुछ घटित हुआ जयराज के साथ जिनका मूल नाम था पैयादिपति जयराज। 28 सितंबर 1909 में तत्कालीन हैदराबाद राज्य के करीमनगर में जन्मे जयराज तेलुगु भाषी थे लेकिन बंबई पहुंचकर उन्होंने मराठी, गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान खुद प्राप्त किया और इन भाषाओं की फिल्मों में विविध भूमिकाएं भी की। उनके बंबई आने का कारण बने उनके भाई जो लंदन से इंजीनियर बनकर आए थे।
जयराज भी अपने भाई की तरह लंदन जाकर इंजीनियर बनना चाहते थे लेकिन भाई ने माना कर दिया तो वे गुस्सा होकर जेब में 20 रुपए लेकर बंबई आ गए। एक हैदराबाद के दोस्त रंगैया के चलते वे चंद्रमा फिल्म कंपनी द्वारा बनाई जा रही मूक फिल्म “जगमगाती जवानी” (1929) में काम पाने में सफल रहे।
इस फ़िल्म में वे नायक माधवराव के डमी बने थे और उन्होंने कई स्टंट सीन भी किए थे। इस फिल्म के लिए उन्हें कोई मेहनताना नहीं मिला था केवल दोजून की रोटी मयस्सर हुई थी। एक दो साल बाद ही बोलती फ़िल्मों का दौर शुरू हुआ और मूक फ़िल्मों के अधिकांश लोग गुमनामी में डूब गए।
लेकिन अपनी लगन और सेहत के प्रति लगातार सजग रहने के कारण वह सन 2000 तक फिल्मों में सक्रिय रहे । उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और फिल्म के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार दादासाहब फाल्के (1979) से भी नवाजा गया। उनके द्वारा निभाए गए किरदारों में डमी स्टंटमैन से लेकर धार्मिक, सामाजिक और ऐतिहासिक फिल्मों के नायक और फिर खलनायक एवं चरित्र अभिनेता तक के रूप में बड़ी विविधताएं थीं।
जयराज ने 300 से ज्यादा फ़िल्मों में काम किया जिनमें लगभग डेढ़ सौ फ़िल्मों में वे नायक के रूप में थे । उनके समकालीन कलाकारों में पृथ्वीराज कपूर ,चंद्रमोहन, मोतीलाल, मास्टर विट्ठल और जाल मर्चेंट थे । कपूर परिवार से उनका गहरा नाता था।
पचास और साठ के दशकों को उनके कैरियर का स्वर्ण काल माना जा सकता है। उससे पहले की उनकी एक उल्लेखनीय फिल्म थी “जीवन नाटक” (1935)। इस फिल्म की नायिका दुर्गा खोटे थीं और इस फिल्म का निर्माण देवकी बोस ने किया था । इस सामाजिक फिल्म का कुछ हिस्सा ऐतिहासिक भी था। मुबारक, रामप्यारी और अलकनंदा आदि कलाकारों ने भी प्रमुख भूमिकाएं की थीं।
मारुतिराव पहलवान का गाया हुआ गाना इस फिल्म का मुख्य आकर्षण था। बॉम्बे टॉकीज के लिए भी उन्होंने 1938 में “भाभी” और बाद में “हमारी बात “(1947)” चार आँखें” (1944 ) और “बादवान”( 1954) फिल्मों में भी काम किया । उन्होंने इसी संस्था की 1945 में बनी फिल्म “प्रतिभा” का सफल निर्देशन भी किया था। भाभी फिल्म में जयराज के दोस्त की भूमिका ज्ञान मुखर्जी ने निभाई थी। ये वही ज्ञान मुखर्जी थे जिन्होंने “किस्मत” और “संग्राम” के जरिए अपराध फिल्मों का सूत्रपात किया था।
जयराज की पहली ऐतिहासिक फिल्म रंजीत मूवीटोन की “राजपूतानी” (1946) की जिसमें उन्होंने राणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह का रोल किया था । सहगल के साथ वे फिल्म “शाहजहां” (1947) में आए उसके बाद “अमर सिंह राठौर” “टीपू सुल्तान” “वीर दुर्गादास” “चंद्रशेखर आजाद” “शहीद भगत सिंह” “महाराणा प्रताप” “पृथ्वीराज चौहान”आदि फिल्मों में कई ऐतिहासिक चरित्रों को जीवंत किया।
उन्होंने तीन अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्मों रूस की “परदेसी” एमजीएम की “माया” और ट्वेंटिथ सेंचुरी फॉक्स की “नाइन आवर्स टू रामा” में भी काम किया। चरित्र अभिनेता के रूप में उनकी लोकप्रिय फिल्में थीं ” नीलकमल “, “बहारों के सपने”, “गहरी चाल”, “धर्मात्मा”,” काला सोना”, “शोले” , “तूफान”, “शान” और “अजूबा”।
चलते चलते
अपने कैरियर के आरंभिक दिनों में जयराज ने अपने मूल नाम पैयादिपति जयराज की जगह पी जयराज रख लिया था। अब इस पी का अर्थ लोग उस जमाने में अपनी समझ के हिसाब से अलग अलग निकाला करते थे।
जैसे कि उस समय कई पहलवान लोग फिल्मों में सक्रिय थे तो वह उन्हें पहलवान जयराज कहते । क्योंकि वह बीएससी पास और समझदार थे इसलिए कुछ लोग उन्हें पंडित जयराज बुलाते थे।