नई दिल्ली। वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में गैर-पनबिजली अक्षय ऊर्जा की क्षमता में विस्तार 4.2 गीगावॉट रहा, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 2.6 गीगावॉट की क्षमता बढ़ोतरी की तुलना में लगभग 61 फीसदी अधिक रहा। यह जानकारी आज जारी हुए सीईईडब्ल्यू-सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) मार्केट हैंडबुक के नए संस्करण में दी गई है। इस क्षेत्र में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ने के अलावा, क्षमता बढ़ोतरी में इस तेज उछाल के लिए पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में लो बेस इफेक्ट को जिम्मेदार बताया जा सकता है, जब कोविड-19 महामारी संबंधी लॉकडाउन के कारण नई क्षमता स्थापित करने पर नकारात्मक असर पड़ा था।
कुल मिलाकर, मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 4.3 गीगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता जोड़ी गई, जिसमें अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 98 प्रतिशत रही। अगर अक्षय ऊर्जा के विस्तार को देखें तो इसमें सौर ऊर्जा का बोलबाला रहा। 4.2 गीगावॉट के कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता विस्तार में सौर ऊर्जा का हिस्सा 89 प्रतिशत रहा। इसके लिए आंशिक रूप से ग्रिड-स्केल और रूफटॉप सोलर की मजबूत मांग जिम्मेदार रही। हालांकि, पवन ऊर्जा क्षमता में वृद्धि सिर्फ 430 मेगावॉट की रही। नीलाम हुई क्षमता के संदर्भ में बात करें ,तो इस तिमाही में नीलाम हुई 3.15 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता का 48 प्रतिशत हिस्सा हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा और फ्लोटिंग सोलर जैसे नए खरीद प्रारूपों का रहा।
सीईईडब्ल्यू-सीईएफ के निदेशक गगन सिद्धू ने कहा, “पवन ऊर्जा की क्षमता बढ़ोतरी का लगातार कम रहना चिंता का विषय है, क्योंकि भारत के बिजली क्षेत्र में परिवर्तन केवल सौर ऊर्जा पर आधारित नहीं हो सकता है। हालांकि, कुछ उत्साहजनक संकेत भी हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 1,200 मेगावॉट की महत्वपूर्ण पवन क्षमता की नीलामी हुई। इसी अवधि में 1,200 मेगावॉट की पवन-सौर ऊर्जा की हाइब्रिड क्षमता की भी नीलामी हुई। इसके अलावा, हाल ही के सप्ताहों में पवन ऊर्जा को एक नियामकीय समर्थन भी मिला है। इसमें पहला कदम, पवन ऊर्जा से उत्पादित बिजली के लिए कम से कम टैरिफ (बिक्री दर) के लिए होने वाली रिवर्स नीलामियों पर रोक लगाना है। दूसरा कदम, मार्च 2022 के बाद चालू हुई पवन ऊर्जा क्षमता के लिए एक समर्पित रिन्यूएबल परचेज ऑब्लिगेशन (आरपीओ) की शुरूआत करना है। पहला कदम, पवन ऊर्जा क्षेत्र की एक बहुत पुरानी मांग है, जबकि दूसरा कदम, एक नियामकीय मांग को पैदा करेगा।”
सीईईडब्ल्यू-सीईएफ हैंडबुक के अनुसार, जून 2022 में भारत की अधिकतम बिजली मांग (जो पूरी की गई) 211.9 गीगावॉट के नए उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। यह लंबे समय तक लू चलने और मानसून आने में देरी के कारण पहली तिमाही के सभी महीनों में 200 गीगावॉट का आंकड़ा पार कर गई। उत्पादन के संदर्भ में, वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में कुल उत्पादित बिजली 16 प्रतिशत बढ़कर 411 अरब किलोवाट-घंटे (केडब्ल्यूएच) हो गई, जो पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 354 अरब केडब्ल्यूएच थी।
सीईईडब्ल्यू-सीईएफ की प्रोग्राम एसोसिएट रुचिता शाह ने कहा, “इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बिक्री के मामले में, मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में ईवी की बिक्री, पिछले वित्त वर्ष में कुल बिके ईवी के लगभग आधे हिस्से तक पहुंच गई। दोपहिया और तिपहिया (ई-रिक्शा सहित) वाहनों की कुल बिक्री में, बैटरीचालित दोपहिया वाहनों का हिस्सा 3.7 फीसदी और तिपहिया वाहनों का हिस्सा 54.9 प्रतिशत रहा। इस तिमाही में ईवी की सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने उपभोक्ता सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ईवी बैटरी के प्रदर्शन मानकों को जारी किया है। इसके अलावा, नीति आयोग ने अग्रिम लागत घटाने और कम जगह में ईवी चार्जिंग के लिए बैटरी स्वैपिंग पॉलिसी का मसौदा जारी किया। इन उपायों से ग्राहकों को सभी श्रेणी में ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।”
सीईईडब्ल्यू-सीईएफ मार्केट हैंडबुक यह भी बताती है कि आग लगने की विभिन्न घटनाओं के बावजूद, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में 636 प्रतिशत बढ़कर 2 लाख यूनिट से थोड़ा ऊपर पहुंच गई। तिमाही-दर-तिमाही आधार पर देखें तो ईवी की बिक्री में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस तिमाही में बिक्री होने वाले कुल नए वाहनों में ईवी की हिस्सेदारी बढ़कर 4.35 प्रतिश हो गई, जो पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में एक प्रतिशत से भी कम थी।