कैसे रुके रेल हादसे और पुलों के टूटने के मामले


असल में ‘ज़ीरो एक्सीडेंट’ एक आदर्श है एक गोल है। लेकिन, इसे हासिल करना तो असंभव है। ज़रूरत इस बात की है कि हादसों को न्यूनतम किया जाए। इसके अलावा कितनी जल्दी से जल्दी हादसे के शिकार लोगों तक उचित मदद पहुंचाई जाए।


आरके सिन्हा
मत-विमत Updated On :

पहले ओडिशा में हुई दर्दनाक रेल दुर्घटना और उसके बाद बिहार में एक पुल का टूटना। इन दोनों घटनाओं के कारण सारा देश उदास भी है और गुस्से में भी है। उदासी मासूमों के मारे जाने पर है और गुस्सा इसलिए है कि ये हादसे थम ही नहीं रहे। पिछली 2 जून को ओडिशा में 3 ट्रेनें आपस में भिड़ गईं। इनमें लगभग तीन सौ मासूम यात्री मारे गए और ना जाने कितने हजार घायल हो गए। यह दुर्घटना भारत में अब तक की सबसे घातक रेल दुर्घटनाओं में से एक है।

ऐसा माना जाता था कि पहली ट्रेन पटरी से उतर गई थी और इसके कुछ डिब्बे पलट गए और विपरीत ट्रैक में गिर गए थे, जहां वे दूसरी ट्रेन से टकरा गए थे। हादसे में एक मालगाड़ी भी चपेट में आ गई। देखिए, यह तो कोई भी मानेगा कि दुनिया भर में हर क्षण कहीं न कहीं कोई न कोई हादसा हो ही रहा है। तेज़ रफ्तार की ज़िंदगी में यह अनहोनी भले हो मगर हो रही है, तो हो रही है।

असल में ‘ज़ीरो एक्सीडेंट’ एक आदर्श है एक गोल है। लेकिन, इसे हासिल करना तो असंभव है। ज़रूरत इस बात की है कि हादसों को न्यूनतम किया जाए। इसके अलावा कितनी जल्दी से जल्दी हादसे के शिकार लोगों तक उचित मदद पहुंचाई जाए।

रेल दुर्घटनाओं में प्राय: देखा गया है कि घटनास्थल पर सरकारी मदद, डॉक्टर नर्स, एक्सीडेंट रिलीफ़ ट्रेन, हेलीकाप्टर, नेताओं से पहले वहां पर तमाशबीन खड़े हो जाते हैं। ये बचाव कार्यों को बाधित भी करते हैं। हां, इन्हीं में से समझदार लोग आनन-फानन में कुछ घायलों की मदद को भी आते हैं। दिल से मदद करते भी हैं। अपनी जी-जान लगा देते हैं। जबकि तमाशबीन सिर्फ वहां पर मदद करने वालों के काम में व्यवधान डाल रहे होते हैं और अपने मोबाइल से वीडियो बना रहे होते हैं ।

इस बीच, एक बात यह भी जान लें कि जीरो एक्सीडेंट की स्थिति तक पहुंचना मुश्किल तो है पर नामुमकिन नहीं है। रेल हादसे कहां नहीं होते। दुनिया के हरेक देश में रेल हादसे होते हैं। पर इन्हें रोका जाना चाहिए। इस लिहाज से कोशिशें भी होती हैं। पर सफलता तो नहीं मिलती। चीन में जुलाई 2011 में हुई रेल दुर्घटना की बात करेंगे। दरअसल, चीन के शहर वेनजुओ में दो हाई-स्पीड ट्रेनों के आमने-सामने से टकराने पर 40 यात्रियों की मौत हो गई थी। इस रेल दुर्घटना में 172 लोग जख्मी भी हुए थे। हादसे के तुरंत बाद चीन के रेल मंत्री को पद से हटा दिया गया। नए रेल मंत्री ने मौके पर पहुंचकर राहत व बचाव कार्य संभाला। इसके बाद दुर्घटना की जांच की गई।

रेल हादसे की जांच में पाया गया कि दुर्घटना रेलवे सिग्नल सिस्टम में खामी की वजह से हुआ। आगे की जांच में पाया गया कि सिग्नल सिस्टम का कॉन्ट्रैक्टर देने के लिए रेल मंत्री और अधिकारियों ने भ्रष्टाचार किया था। इसके लिए ट्रेन और यात्रियों की सुरक्षा से समझौता तक किया गया। इसी कारण यह हादसा हुआ और यात्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

बहरहाल, उड़ीसा रेल हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए सी.बी.आई. जांच शुरू हो गई है। इसके लिए जिम्मेदार लोगों को भी उम्र कैद या मौत की सजा मिलनी चाहिए। जांच पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए। इस लिहाज से किसी भी तरह की किसी को रियायत नहीं मिलनी चाहिए।

अब बिहार में भागलपुर जिले में हुए हादसे का रुख कर लेते हैं। सबको पता है कि गंगा नदी के ऊपर बन रहा एक बड़ा पुल गिर गया। इसका एक स्लैब भी एक साल पहले ही टूट कर गिर गया था। उसी समय सख्त कारवाई होनी चाहिये थी, जो किसी कारण से नहीं की गईं। खगड़िया के अगुवानी-सुल्तानगंज के बीच गंगा नदी पर इस पुल का निर्माण हो रहा है। लेकिन पुल निर्माण भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। इसी का नतीजा है कि यह पुल गंगा नदी में गिर गया। पुल के तीन पिलर भी नदी में समा गए। अब इस केस की भी जांच होगी।

यह दूसरी बार है जब पुल गिरा है। बस इतनी सी गनीमत रही कि जिस वक्त हादसा हुआ, उस वक्त काम बंद हो चुका था। इस वजह से पुल पर कोई मजदूर नहीं था। जैसे ही पुल ताश के पत्तों की तरह गंगा में गिरा, नदी के पानी की कई फीट ऊंची लहरें उठीं। इधर भी उसी नियम के तहत दोषियों पर कार्रवाई हो जैसी रेल हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों पर होगी। देखिए अब देश को करप्शन के मसले पर किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहिए। करप्शन और काहिली देश को दीमक की तरह से खाए जा रही है। जो भी करप्शन करता पकड़ा जाए या अपने काम में काहिली करे उसे तो सीधे टांग देना चाहिए।

आखिर कब तक देश भ्रष्ट और निकम्मे लोगों को लेकर मानवीय रवैया अपनाता रहेगा। यह नहीं चल सकता। इसका अंत तो होना ही चाहिए। करप्शन के सवाल पर देश को जीरो टोलरेंस की नीति पर चलना ही होगा। दूसरा विकल्प हमारे पास नहीं हैं। पिछले साल गुजरात के मोरबी जिले में पुल टूटा था। हादसे के वक्त पुल पर 300 से अधिक लोग मौजूद थे। 233 मीटर लंबा यह पुल करीब सौ वर्ष पुराना था। हादसे में बहुत से लोगों की जानें चली गईं थीं। जिनमें अधिकांश महिलाएं एवं बच्चे थे। यह जान लें कि जब तक देश करप्शन के मामलों पर सख्ती नहीं दिखाएगा तब तक इस तरह के जानलेवा हादसे होते ही रहेंगे।

अगर बात इन मामलों से हटकर करें तो करप्शन के कारण हमारे सरकारी बैंकों का हजारों करोड़ का लोन फंस गया। केन्द्र में मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद बैंकिंग क्षेत्रों में लंबे समय से व्याप्त अराजकता और अव्यवस्था को रोकने की जब सार्थक पहल हुई तो एक के बाद घोटालों का पर्दाफाश भी तेजी से होने लगा। बैंकिंग सिस्टम तो साख पर ही चलती है, साख ही नहीं रहा तो फिर बच क्या गया ? दरअसल बैंकों में उल्टे-सीधे लोन दिलवाने का काला धंधा चलता रहा है। लोन दिलवाने के नाम पर कुछ बैंक कर्मी भी फंसे । चूंकि, पहले कोई इस तरह की जवाबदेही नहीं होती थी, इसीलिए चौतरफा लूट जारी थी।

यह स्वीकार करना होगा कि रेल हादसों से लेकर पुल टूटने के मूल में करप्शन ही बड़ा कारण होता है। इसलिए इस पर ही चोट करनी होगी।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)