
नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा मनाए जा रहे एशिया के सबसे बड़े साहित्य उत्सव साहित्योत्सव 2025 का बुधवार, 12 मार्च को शानदार समापन हुआ। इस दिन आयोजित हुए पंद्रह सत्रों में दिव्यांग लेखक एवं साहित्य में रूचि रखने वाले बच्चे भी साहित्योत्सव का हिस्सा बने। 10 भाषाओं के दिव्यांग लेखकों ने विनोद आसुदानी एवं अरविंद पी. भाटीकर की अध्यक्षता में काव्य-पाठ एवं कहानी पाठ प्रस्तुत किया।
आठ विचार-सत्रों में भविष्य के उपन्यास, भारत की सांस्कृति परंपरा पर वैश्वीकरण का प्रभाव, अनूदित कृतियों को पढ़ने का महत्त्व, एकता और सामाजिक एकजुटता, कृत्रिम बुद्धिमता और साहित्यिक रचनाएँ आदि विषयों पर इन विषयों के विशेषज्ञो के साथ विचार विमर्श हुआ।
भारतीय साहित्यिक परंपराएँ: विरासत और विकास विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन भारतीय कविता, दलित साहित्य एवं आध्यात्मिक साहित्य पर गंभीर विचार-विमर्श हुआ। इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, श्यौराज सिंह बेचैन एवं विष्णु दत्त राकेश ने की। बहुभाषी कवि सम्मिलन एवं कहानी-पाठ के भी तीन सत्र हुए।
बच्चों के लिए चित्रकला/रेखांकन प्रतियोगिता एवं भाषण प्रतियोगिताएँ आयोजित की गई जिनमें 15 स्कूलों के 300 से ज्यादा बच्चों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में 12 बच्चों को पुरस्कृत किया गया। एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम ‘लेखक से भेंट’ प्रख्यात बाङ्ला लेखक सुबोध सरकार के साथ किया गया। इस अवसर पर उनकी पुरस्कृत बाङ्ला कविता-संग्रह के हिंदी अनुवाद ‘द्वैपायन सरोवर के किनारे’ का लोकार्पण साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य एवं पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के कर कमलों से हुआ। इस अवसर पर पुस्तक की अनुवादिका अमृता बेरा और साहित्य अकादेमी के सचिव भी उपस्थित थे।
ज्ञात हो कि एशिया के सबसे बड़े साहित्य उत्सव में छह दिनों के दौरान 100 से अधिक सत्रों में 700 से अधिक प्रसिद्ध लेखक और विद्वानों ने भाग लिया, जिसमें देश की 50 से अधिक भाषाओं का भी प्रतिनिधित्व हुआ।