बिहार में वाट्सएप से जूम एप तक चुनावी समर

अमरनाथ झा
बिहार चुनाव 2020 Updated On :

बिहार विधानसभा के चुनावों को टालने की जोरदार होती मांगों के बीच लगभग सभी पार्टियां चुनावों की तैयारी में लग गई हैं। पार्टी संगठन को चुस्त-दुरुस्त और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के वर्चुअल उपायों के बाद पाला-बदल का दौर शुरु हो गया है। इसबीच सत्तापक्ष और विपक्ष के गठबंधनों में सीटों के बंटवारे को लेकर गुपचुप बातचीत भी आरंभ हुई है। अभी दोनों गठबंधनों में कुछ समस्याएं हैं, जिन्हें सुलझाना भी जरूरी है।

बिहार की सत्ता पर अभी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कब्जा है। इस गठबंधन का एक छोटा साझीदार लोकतांत्रिक जनता पार्टी (लोजपा) भी है जिसके नेता चिराग पासवान ने विभिन्न मुद्दों पर असहमति जताकर गठबंधन में समस्या खड़ी कर दी है। वैसे भाजपा और जदयू के बीच भी सब कुछ ठीक नहीं है, लेकिन इन अड़चनों को अधिक सीटों पर दावा करने के पेंच के रूप में देखा जा सकता है। असली समस्या विपक्षी महागठबंधन में है जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पास है और कांग्रेस निकट सहयोगी की भूमिका में है। लेकिन इस गठबंधन में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हम, पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा और मुकेश साहनी की वीआईपी भी शामिल हैं। इन सबके बीच सीटों का बंटवारा आसान नहीं है। इनके अलावा वाम दलों खासकर भाकपा और माले के भी अपने-अपने आधार क्षेत्र हैं। उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वर्तमान विधानसभा में माले के तीन विधायक हैं। इसलिए विपक्षी गठबंधन को निर्णायक बनाना आसान नहीं है। इन मुख्य खिलाड़ियों के अलावा पूर्व सांसद पप्पू यादव और पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिंहा की पार्टियां भी चुनाव मैदान में होगी।

वर्चुअल कार्यक्रमों के दौर में भाजपा सबसे आगे है। उसके नेता रोजाना 4-5 वर्चुअल बैठकें कर रहे हैं। विधानसभा क्षेत्र के स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलन हो चुके हैं। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की वर्चुअल रैली से आरंभ कर पार्टी के राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेताओं ने दर्जनों बैठकें की है। पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में दर्जनभर लोगों की आईटी सेल कार्यरत है जो वर्चुअल माध्यमों से पार्टी कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखने में जुटा है।

जदयू ने जिला, प्रखंड और पंचायत स्तर के नेताओं और कार्यक्रताओं को चुनाव के लिए तैयार किया। पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वयं बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ वर्चुअल बैठकें की। एक मई से 30 जुलाई तक इसके लिए बकायदा अभियान चलाया गया। इसी दौरान राज्यभर के प्रमुख कार्यकर्ताओं के वाटसएप से जोड़ा गया। इसका पार्टी को यह लाभ है कि पार्टी मुख्यालय से गया संदेश फौरन गांव-गांव तक पहुंच सकता है। फिर पार्टी महासचिव आरसीपी सिंह ने 7 जुलाई से लगातार दस दिनों में विभिन्न प्रकोष्ठों के साथ मंत्रणा की। फिर सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं के साथ वर्चुअल बैठक हुई। हालांकि 7 अगस्त को प्रस्तावित वर्चुअल रैली कोरोना संकट और बाढ़ की वजह से टालनी पड़ी। पर पार्टी ने 15 साल बनाम 15 साल के मुद्दे पर चुनाव मैदान में उतरने जा रही है। इसे हर कार्यकर्ता को समझा दिया गया है।

मुख्य विपक्षी दल राजद वर्चुअल माध्यमों से चुनाव प्रचार का विरोध भले करें पर उसने भी अपने कार्यकर्ताओं का वाट्सएप ग्रुप तैयार किया है। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर पार्टी का एक छोटा-सा वार रुम लोकसभा चुनाव के समय से ही कार्यरत है। उसने बूथ स्तर तक वाटसएप ग्रुप बना लिया है। कांग्रेस की भी यही स्थिति है। वह वर्तमान परिस्थितियों में चुनाव कराने के खिलाफ है, पर वर्चुअल माध्यम में अपनी उपस्थिति भी बना रही है। वामदलों ने भी जूम एप के पार्टी का विभिन्न कमेटियों की बैठक करना आरंभ कर दिया है। वाट्सएप ग्रुप भी बनाए जा रहे हैं। भाकपा माले ने तो 20 हजार वाट्सएप ग्रुप बनाकर बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को जोड़ा है। वामदलों के नेता-कार्यकर्ता अब सोशल मीडिया पर भी सक्रिय होने लगे हैं।

वर्चुअल माध्यम के बढ़े हुए प्रयोग को देखते हुए भाजपा ने चुनाव आयोग से चुनाव खर्च की सीमा बढ़ाने की मांग की है। अभी विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा 14 लाख रुपए तय है। पार्टी ने कहा है कि कोरोना काल में सोशल डिंस्टेंसिग का पालन करना जरूरी है, इसलिए वर्चुअल माध्यमों के अलावा चुनाव प्रचार में अधिक गाड़ियों की जरूरत होगी। स्टार प्रचारकों के साथ चलने वाले सुरक्षाकर्मियों के लिए अलग गाड़ियों की व्यवस्था करनी होगी।