गुप्तेश्वर पांडे को न खुदा ही मिला, न…..

गुप्तेश्वर पांडे के पहले बिहार पुलिस के महानिदेशक रह चुके तीन अधिकारियों ने राजनीति में किस्मत आजमाना चाहा था, पर किसी को सफलता नहीं मिली।

पटना। राजनीति में आने के लिए पुलिस की सर्वोच्च नौकरी छोड़ चुके गुप्तेश्वर पांडे की हालत न घर के रहे, न घाट के हुए वाली हो गई है। उन्हें किसी पार्टी ने अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच को लेकर जिस बडबोले बयान और पुलिस कार्रवाई को वे अपनी राजनतिक उपलब्धि मान रहे थे, वही मामला उन्हें एनडीए की ओर से उम्मीदवार नहीं बनाए जाने का कारण बन गया।

पुलिस महानिदेशक के पद से रिटायर होने के चार महीने पहले स्वैच्छिक अवकाश लेकर टिकटार्थियों की कतार में शामिल हुए गुप्तेश्वर पांडे ने पिछले महीने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने जदयू की सदस्यता ग्रहण की थी। तभी से यह कयास लगाया जा रहा था कि वे बक्सर क्षेत्र से एनडीए के उमीदवार होंगे। इस सीट से भाजपा उम्मीदवार लगातार चुनाव जीतती रही हैं, पर पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट भाजपा से छीन ली थी।

इसबार एनडीए में सीटों के बंटवारे में यह सीट भाजपा के हिस्से में चली गई। जदयू ने इसे अपने हिस्से में रखने पर अधिक जोर नहीं दिया। जैसाकि उसने पालीगंज में राजद से आए जयवर्धन यादव या झाझा में पूर्व मंत्री दामोदर रावत को उम्मीदवार बनने के लिए किया। यही नहीं जदयू ने पुलिस के एक अन्य महानिदेशक (होमगार्ड) सुनील कुमार को जदयू ने गोपालगंज जिले के भोरे से उम्मीदवार बनाया है। सुनील कुमार पिछले महीने जदयू में शामिल हुए थे।

बक्सर सीट भाजपा कोटे में जाने पर  पांडे के भाजपा में जाने की अफवाह भी उड़ी। पर भाजपा ने यहां से अपने पूर्व चयनित उम्मीदवार की घोषणा करने के साथ ही पड़ोस के शाहपुर सीट के उम्मीदवार की घोषणा भी कर दी जो पांडे की पसंद की दूसरी सीट थी। एक भाजपा नेता ने कहा कि राजनीति में आने के पहले ही पांडे राजनीतिक बयानबाजी करने लगे थे। सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण में तो इसतरह के बयान देने लगे जिस तरह बोलने से मंत्री-विधायक भी परहेज कर रहे थे।

समझा जाता है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में उनके इसी बड़बोलापन और गैर-जरूरी सक्रियता की वजह से एनडीए उन्हें उम्मीदवार बनाने से हिचक गई। बताते हैं कि उनके विधानसभा उम्मीदवार बनाए जाने की खबरों की महाराष्ट्र में गहरी प्रतिक्रिया हुई थी। सुशांत के पिता ने इस मौत के लिए सुशांत की महिला मित्र रिया चक्रवर्ती को जिम्मेवार ठहराते हुए पटना पुलिस में मामला दर्ज कराया था।

मामले की जांच करने के लिए डीजीपी पांडे ने न केवल पटना पुलिस की टीम मुंबई भेज दी, जांच की देखरेख करने के लिए एक आईपीएस अधिकारी को भी भेज दिया। इसे मुंबई पुलिस ने अपने अधिकार क्षेत्र में बेजा हस्तक्षेप माना और बिहार पुलिस टीम के अगुवा विनय तिवारी को महामारी एक्ट के तहत एकांतवास के लिए डाल दिया। इस विवाद के बढ़ने पर  पांडे ने रिया चक्रवर्ती को औकात में रहने की नसीहत दे डाली।

इस पूरे प्रकरण को शिव सेना ने मराठी सम्मान पर हमला करार दिया और जब उनके एनडीए उम्मीदवार बनने की बात हुई तो भाजपा के बिहार चुनाव प्रभारी पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस पर हमला करने लगी। एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने भी मराठा सम्मान का मामला उठाते हुए फडनवीस की आलोचना की। शिवसेना ने पांडे के उम्मीदवार बनने पर उनके खिलाफ अपनी पार्टी का उम्मीदवार देने का ऐलान कर दिया। संभव है कि इन आलोचनाओं के कारण फडनवीस ने पांडे की उम्मीदवारी का विरोध किया हो।

1987 बैच के आईपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडे का भाजपा से पुराना संबंध रहा है। वे 2009 में ही बक्सर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे। इसके लिए स्वैच्छिक अवकाश भी लिया था। पर आखिरी समय में उन्हें भाजपा ने अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। तो फिर वीआरएस का आवेदन वापस लेकर नौकरी करने लगे।

लंबे समय से भाजपा के कब्जे में रही इस सीट से पटना विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुखदा पांडे विधायक होती थी। पर उन्होंने निजी कारणों से राजनीति से संन्यास ले लिया। उनकी जगह भाजपा ने चार बार कांग्रेस विधायक रहे जगत लाल चतुर्वेदी के पुत्र परशुराम चतुर्वेदी को उम्मीदवार बनाया है। स्थानीय सांसद अश्विनी कुमार चौबे की पसंद चतुर्वेदी के नाम की सिफारिश पार्टी की जिला इकाई ने की है। अब देखना यह है कि पूर्व पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे आगे क्या करते हैं।

वैसे बिहार की राजनीति ने कभी पुलिस अधिकारियों को सहन नहीं किया है। गुप्तेश्वर पांडे के पहले बिहार पुलिस के महानिदेशक रह चुके तीन अधिकारियों ने राजनीति में किस्मत आजमाना चाहा था, पर किसी को सफलता नहीं मिली। राजद नेता शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई को लेकर चर्चित डीपी ओझा ने 2004 में बेगुसराय से भाकपा-माले के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। पर बुरी तरह हार गए। फिर आशीष रंजन सिंहा ने राजद से जुड़कर नालंदा से लोकसभा का चुनाव लड़ा, पर जीत का सेहरा नहीं बंध सका। फिर आरआर प्रसाद ने राजनीति में प्रवेश करना चाहा, पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली।

हालांकि आईपीएस अधिकारी ललित विजय सिंह महानिदेशक तो नहीं बन पाए, पर राजनीति में उन्हें कामयाबी जरूर मिली। उन्होंने जनता दल के टिकट पर बेगूसराय से लोकसभा चुनाव जीते और बाद में केन्द्र में राज्यमंत्री बने। उनके बाद कोई पुलिस अधिकारी राजनीति में सफल नहीं हो पाया। अब देखना है कि भोरे से जदयू उम्मीदवार सुनील कुमार के साथ क्या होता है।

First Published on: October 11, 2020 8:12 AM
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